मुंबई समेत महाराष्ट्र के सरकारी अस्पतालों में रेजिडेंट डॉक्टरों ने हड़ताल शुरू की है. डॉक्टर सरकार के उस फैसले का विरोध कर रहे हैं, जिसमें होम्योपैथी डॉक्टरों को भी महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल में रजिस्ट्रेशन की अनुमति दी गई है.
महाराष्ट्र में करीब 13 से 14 हजार रेजिडेंट डॉक्टर आज हड़ताल पर हैं. मुंबई के सायन अस्पताल से लेकर बीएमसी और अन्य सरकारी अस्पतालों में भी यह स्ट्राइक देखने को मिल रही है. डॉक्टरों का विरोध सरकार के उस नए जीआर (Government Resolution) के खिलाफ है, जिसके तहत होम्योपैथी डॉक्टरों को भी महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल (MMC) में रजिस्ट्रेशन की अनुमति दी गई है.
डॉक्टरों की मुख्य आपत्ति
रेजिडेंट डॉक्टरों का कहना है कि यह फैसला मरीजों की सुरक्षा और मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता के खिलाफ है. एमबीबीएस डॉक्टर 5 साल की पढ़ाई और 3 साल की पोस्ट ग्रेजुएशन करके विशेषज्ञ बनते हैं, जबकि होम्योपैथी डॉक्टर सिर्फ 1 साल का सर्टिफिकेट कोर्स (CCMP) करके एलोपैथिक दवाएं लिखने का अधिकार पा रहे हैं. डॉक्टरों का तर्क है कि इससे मरीजों की जान को खतरा बढ़ेगा और यह एलोपैथिक चिकित्सा की साख को नुकसान पहुंचाएगा.
क्रॉसपैथी पर विवाद
डॉक्टरों ने स्पष्ट किया है कि वे किसी भी पैथी (जैसे होम्योपैथी या आयुर्वेद) के खिलाफ नहीं हैं. उनका विरोध सिर्फ क्रॉसपैथी से है, यानी एक पैथी का डॉक्टर थोड़े से कोर्स के बाद दूसरी पैथी में प्रैक्टिस करने लगे. इससे मिक्सोपैथी की स्थिति बनेगी और मरीज भ्रमित हो जाएंगे कि वे असल में किस पैथी के डॉक्टर से इलाज करा रहे हैं.
मरीजों की चिंता
डॉक्टरों ने कहा कि स्ट्राइक के दौरान इमरजेंसी सेवाएं चालू हैं ताकि मरीजों की जान को कोई खतरा न हो. केवल ओपीडी सेवाएं बंद की गई हैं. उनका मानना है कि अगर यह कानून लागू रहा तो आने वाले समय में एंटीबायोटिक्स और स्टेरॉयड का गलत इस्तेमाल बढ़ेगा, जिससे एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस जैसी गंभीर समस्या खड़ी होगी.
सरकार से मांग
डॉक्टरों की सबसे बड़ी मांग है कि सरकार तुरंत इस जीआर को वापस ले. उनका कहना है कि होम्योपैथी और आयुर्वेद डॉक्टरों की अपनी-अपनी काउंसिल है, जैसे आयुर्वेद के लिए मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन, डेंटल डॉक्टरों के लिए डेंटल काउंसिल और नर्सों के लिए नर्सिंग काउंसिल. ऐसे में सिर्फ होम्योपैथी डॉक्टरों को एलोपैथिक काउंसिल में शामिल करना उचित नहीं है.
डॉक्टरों का कहना है कि यह आंदोलन मरीजों के हित के लिए है. अगर अलग-अलग पैथी को मिलाकर रजिस्ट्रेशन किया गया तो भविष्य में गंभीर दुष्परिणाम देखने को मिल सकते हैं. इसलिए सरकार से अपील है कि इस फैसले पर पुनर्विचार करे और मरीजों की सुरक्षा को प्राथमिकता दे.
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