Dev Deepawali 2025: क्यों मनाई जाती है देव दीपावली? यहां जानिए

देव दीपावली हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है. यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत और धर्म व सत्य की विजय का प्रतीक है. इस वर्ष देव दीपावली बुधवार (5 नवंबर) को मनाई जाएगी.

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Deepak Kumar
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देव दीपावली हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है. यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत और धर्म व सत्य की विजय का प्रतीक है. इस वर्ष देव दीपावली बुधवार (5 नवंबर) को मनाई जाएगी.

देव दीपावली हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है. कार्तिक महीने की पूर्णिमा तिथि को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक तीन राक्षसों का वध किया था. इस विजय के उपलक्ष्य में देवताओं ने काशी में दीप जलाकर उत्सव मनाया, तभी से इसे देव दीपावली कहा जाने लगा. यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत और धर्म व सत्य की विजय का प्रतीक है. इस वर्ष देव दीपावली बुधवार (5 नवंबर) को मनाई जाएगी. तो आइए विस्तार से जानते हैं कि देव दीपावली क्यों मनाया जाता है.

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पौराणिक कथा के अनुसार

कहा जाता है कि बहुत समय पहले तीन असुर भाई- तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने ब्रह्मांड पर अधिकार करने की ठानी थी. वे ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप करने लगे. जब ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए, तो उन्होंने उन्हें वरदान मांगने को कहा. तीनों ने अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्मा जी ने मना कर दिया. तब उन्होंने एक अलग वरदान मांगा- उनके लिए तीन नगर बनाए जाएं: एक सोने का, एक चांदी का और एक लोहे का, जो आकाश में रहें और हर हजार साल में अभिजीत नक्षत्र के समय एक सीध में आएं. केवल वही व्यक्ति उन्हें मार सके जो एक ही बाण से तीनों नगरों को एक साथ नष्ट कर दे.

ब्रह्मा जी ने यह वरदान स्वीकार कर लिया और विश्वकर्मा से तीनों नगर बनवाए. वरदान पाकर तीनों असुर अत्याचारी बन गए. उन्होंने देवताओं को हराकर इंद्रलोक तक पर कब्जा कर लिया. परेशान देवता भगवान शिव के पास सहायता के लिए पहुंचे. तब शिव जी ने त्रिपुरासुर का अंत करने का निश्चय किया.

भगवान शिव ने एक दिव्य रथ बनवाया जिसमें सभी देवताओं का योगदान था- सूर्य और चंद्रमा पहिए बने, इंद्र, यम, वरुण और कुबेर घोड़े बने, हिमालय धनुष बना, शेषनाग प्रत्यंचा बने और भगवान विष्णु बाण बने. जैसे ही तीनों नगर एक साथ आए, शिव जी ने उस दिव्य बाण से उन्हें नष्ट कर दिया.

तीनों राक्षसों के अंत के बाद देवताओं ने आनंद मनाया और काशी में दीप जलाकर उत्सव किया. तभी से इस दिन को देव दीपावली कहा जाता है. त्रिपुरारी पूर्णिमा हमें सिखाती है कि अंततः सत्य, धर्म और न्याय की ही विजय होती है, चाहे बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो.

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