बीएसपी को मिला मुस्लिम संगठनों का साथ, क्या सपा से हुआ मोहभंग
लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद विधानसभा चुनावों के वोटिंग के ठीक पहले मुस्लिम संगठनों का ये ऐलान बीएसपी के लिये संजीवनी का काम कर सकता है।
नई दिल्ली:
उत्तर प्रदेश में चुनावी माहौल गरम है और सभी राजनीतिक दल वोटरों को लुभान में लगे हुए हैं। लेकिन राज्य में सबसे बड़ा सस्पेंस मुस्लिम वोटरों को लेकर था और सभी दलों की निगाह भी इन्हीं पर टिकी हुई थी। जैसे ही वोटिंग का दिन निकट आने लगा तमाम मुस्लिम संगठनों और नेताओं की तरफ से बीएसपी को समर्थन देने का ऐलान किया है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 11 फरवरी को पहले चरण का चुनाव होना है और यहां पर मुस्लिम वोटरों की संख्या काफी है। लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद विधानसभा चुनावों के वोटिंग के ठीक पहले मुस्लिम संगठनों का ये ऐलान बीएसपी के लिये संजीवनी का काम कर सकता है।
राज्य की आबादी के 20 फीसद मुस्लिम मतदाताओं को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहे हैं। इसी कोशिश के तहत इस बार के चुनाव में मायावती की कोशिश मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने की है और उन्होंने लगभग 97 मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किये हैं। मायावती ने इस बार के चुनाव में जीत का फॉर्मूला ही दलित-मुस्लिम गठजोड़ को बनाया है।
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समाजवादी पार्टी से मुस्लिम मतदाताओं को इस बार की अखिलेश सरकार से निराशा ही हाथ लगी है। मुज़फ्फरनगर के दंगों के बाद आई जांच रिपोर्ट पर कोई कदम न उठाने और रिपोर्ट को सार्वजनिक न करने से नाराज़गी है। साथ ही नोएडा में बिसाहडा गांव में जिस तरह से गोहत्या के आरोप में मुस्लिम परिवार को परेशानी का सामना करना पड़ा उससे भी मुस्लिम मतदाताओं का मोह भंग हुआ है।
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देखा जाए तो पार्टी की बागडोर मुलायम से अखिलेश के हाथ में आने का भी असर पड़ा है। मुस्लिम वोटर को मुलायम सिंह यादव से उम्मीद रहती थी, लेकिन राज्य में मुस्लिमों के खिलाफ हुई घटनाओं से मुस्लिम वोटर अखिलेश से नाराज़ भी है।
पार्टी में फूट के बाद मुलायम सिंह यादव ने कहा था, 'अखिलेश ने मुस्लिम विरोध में काम किया। एक मौलाना ने मुझे बताया। अखिलेश ने मुस्लिमों के लिए कोई काम नहीं किया है। मैंने जावीद अहमद को डीजीपी बनाया, अखिलेश ने उसका भी विरोध किया।'
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मुस्लिम मतदाता कांग्रेस से पहले से ही दूर हो चुके हैं, बाबरी मस्जिद गिरने के बाद से वो कांग्रेस की बजाय समाजवादी पार्टी की तरफ आ गए थे। मुलायम सिंह के वे पारंपरिक वोटर बन चुके थे। लेकिन कांग्रेस के साथ गठबंधन भी मुस्लिमों के सपा से दूर जाने का एक बड़ा कारण माना जा रहा है। हालांकि कांग्रेस-सपा गठबंधन ने करीब 100 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है।
मुस्लिम मतदाता कभी भी बीजेपी को वोट नहीं देता है ये बात बीजेपी भी जानती है और यही कारण है कि बीजेपी मुस्लिम मतदाताओं में पैठ बनाने के लिये किसी तरह की कोशिश नहीं कर रही है। इस बार के चुनाव में बीजेपी ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है।
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बीएसपी के पक्ष में गरीब नवाज़ फाउंडेशन का समर्थन मिला है। साथ ही जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी ने भी बीएसपी के पक्ष में वोट देने की अपील की है। इसके अलावा नेशनल उलेमा काउंसिल के भी हैं जिसने मायावती के समर्थन में अपने 84 उम्मीदवारों को मैदान से हटाने का फैसला किया है।
इसके अलावा समाजवादी पार्टी के पूर्व महासचिव ने भी मुस्लिम मतदाताओं को बीएसपी के समर्थन में वोट देने की अपील की है।
मुस्लिम कौम के बुद्धिजीवियों का कहना है कि धर्म के सियासी ठेकेदार चुनावी के दौरान मतदाताओं और कौम की नहीं अपने राजनीतिक फायदे को देखकर अपील करते हैं। जहहां तक मतदाताओं की बात है तो वो सिर्फ धर्मगुरुओं और राजनीतिक दलों के हाथों में सिर्फ मोहरा बनकर रह जाते हैं।
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मुस्लिम वोटर किस तरफ जाएंगे और आ रही अपीलों को क्या असर पड़ेगा येह कहना मुश्किल है लेकिन ये तय है कि राज्य की 403 विधानसभा सीट में से लगभग 143 सीटों पर उम्मीदवारों का भविष्य मुस्लिम मतदाता ही तय करते हैं।
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