सिंदूरदान व सप्तपदी शादी हिंदू परंपरा में महत्वपूर्ण : हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने दुराचार के आरोपी के खिलाफ चार्जशीट व सीजेएम शाहजहांपुर द्वारा जारी सम्मन को रद्द करने से इनकार कर दिया है और याचिका खारिज कर दी है.
highlights
- दुराचार के आरोपी के खिलाफ चार्जशीट व सम्मन रद्द करने से इनकार
- कोर्ट ने कहा- कनिष्ठ अभियंता याची को पारिवारिक परंपरा की जानकारी होनी चाहिए
- याची ने कहा था कि सहमति से सेक्स करने पर आपराधिक केस नहीं बनता है
प्रयागराज:
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने दुराचार के आरोपी के खिलाफ चार्जशीट व सीजेएम शाहजहांपुर द्वारा जारी सम्मन को रद्द करने से इनकार कर दिया है और याचिका खारिज कर दी है. HC ने कहा कि आरोपी का पीड़िता के माथे पर सिंदूर लगाना उसे पत्नी के रूप में स्वीकार कर शादी का वादा करना है. कोर्ट ने कहा कि सिंदूर दान व सप्तपदी हिंदू धर्म परंपरा में विवाह के लिए महत्वपूर्ण स्थान है. हाईकोर्ट ने कहा कि सीमा सड़क संगठन में कनिष्ठ अभियंता याची को पारिवारिक परंपरा की जानकारी होनी चाहिए.
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इसके अनुसार वह पीड़िता से शादी नहीं कर सकता था. फिर भी उसने शारीरिक संबंध बनाए. दुराशय से संबंध बनाए या नहीं, यह विचारण में तय होगा, इसलिए चार्जशीट रद्द नहीं की जा सकती है. यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल ने विपिन कुमार उर्फ विक्की की याचिका पर दिया है.
याची का कहना था कि सहमति से सेक्स करने पर आपराधिक केस नहीं बनता है. पीड़िता प्रेम में पागल होकर खुद हरदोई से लखनऊ होटल में आई और संबंध बनाए. प्रथम दृष्टया शादी का प्रस्ताव था. दुराचार नहीं माना जा सकता है, किन्तु सिंदूर लगाने को कोर्ट ने शादी का वादा के रूप में देखते हुए राहत देने से इनकार कर दिया.
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मालूम हो कि दोनों ने फेसबुक पर दोस्ती बढ़ाई और शादी के लिए राजी हुए. पीड़िता होटल में आई और संबंध बनाए. बार-बार फोन काल, मैसेज से साफ है कि पीड़िता के साथ प्रेम संबंध बनाए थे. कोर्ट ने कहा कि भारतीय हिन्दू परंपरा में मांग भराई व सप्तपदी महत्वपूर्ण होती है. शिकायतकर्ता की भाभी अभियुक्त के परिवार की है. शादी का वादा कर संबंध बनाए, यह पता होना चाहिए था कि परंपरा में शादी नहीं कर सकते थे. सिंदूर लगाने का तात्पर्य है कि पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया है. ऐसे में चार्जशीट रद्द नहीं की जा सकती है.
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