Pilibhit: सावन की रिमझिम बूंदें आमतौर पर हरियाली और उमंग लेकर आती हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के पीलीभीत स्थित वाल्मीकि नगर इलाके के घुंघचाई और शिवनगर गांव के 29 परिवारों के लिए सावन का यह मौसम हर साल एक पुराने जख्म को फिर से हरा कर जाता है. 31 जुलाई 1992 की वह काली रात आज भी इन परिवारों की यादों में जिंदा है, जब आतंकवादियों ने जंगल से कटरुआ बीनने गए 29 लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी थी.
नदी के पास से 29 शव बरामद
यह सभी ग्रामीण माला जंगल (अब वाल्मीकि टाइगर रिजर्व) के गढ़ा रेंज में कटरुआ (एक जंगली सब्ज़ी) बीनने गए थे. उस दिन हरियाली तीज से एक दिन पहले, वे शाम को सब्जी बेचने के बाद त्योहार मनाने की तैयारी कर रहे थे. लेकिन वे कभी लौटे नहीं. उनके स्वजन ने जब खोजबीन शुरू की, तो दो दिन बाद तीन अगस्त को खन्नौत नदी के पास से 29 शव बरामद हुए. उस दिन नाग पंचमी का पर्व था, लेकिन गांव में मातम पसरा हुआ था.
इस नरसंहार से सिहर उठा पूरा इलाका
आतंकियों की ओर से किए गए इस जघन्य नरसंहार ने पूरे इलाके को झकझोर दिया था. उस दौर में न तो टीवी था और न ही सोशल मीडिया, लेकिन अखबारों के जरिए यह खबर देशभर में सुर्खियों में आ गई थी. कटरुआ, जो कभी सिर्फ़ एक सब्ज़ी था, अब उस दर्दनाक घटना की पहचान बन चुका है.
33 साल बाद भी हरे हो जाते हैं जख्म
आज 33 साल बाद भी घुंघचाई और शिवनगर के ये 29 परिवार हरियाली तीज और नाग पंचमी नहीं मनाते. इन त्योहारों के आते ही दर्दनाक यादें उन्हें भीतर तक झकझोर देती हैं. जहां आसपास के गांवों में लोग तीज की पूजा और नाग देवता की आराधना में व्यस्त होते हैं, वहीं इन परिवारों में सन्नाटा और आंसुओं का माहौल होता है.
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