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आडवाणी की रथयात्रा के इस सारथी ने ही दिया राममंदिर के धर्म युद्ध को अंतिम रूप

भाजपा के तत्कालीन फायर ब्रांड नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने राम जन्म भूमि आंदोलन को 1990 में एक नई दिशा दी. आडवाणी की रथयात्रा में हार्न पकड़े मोदी के संघर्षों की तस्वीर भुलाई नहीं जा सकती.

Updated on: 04 Aug 2020, 03:44 PM

नई दिल्ली:

भाजपा के तत्कालीन फायर ब्रांड नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने राम जन्म भूमि आंदोलन को 1990 में एक नई दिशा दी. आडवाणी की रथयात्रा में हार्न पकड़े मोदी के संघर्षों की तस्वीर भुलाई नहीं जा सकती. वैसे तो लालकृष्ण आडवाणी की इस रथयात्रा के वैसे तो संयोजक प्रमोद महाजन थे, पर पहले चरण में गुजरात के सोमनाथ से का आरंभ होना था तो इस यात्रा की जिमेवारी नरेंद्र मोदी को सौंपी गयी.

टोयोटा ट्रक को भगवा रंग के रथ का रूप दिया गया था. अयोध्या में राम जन्म भूमि पर राम मंदिर निर्माण की अलख जगाने के भाषणों से गूंजती ये रथ यात्रा जिधर से गुजरती थी वहां राम भक्तों का हुजूम इकट्ठा हो जाता था. रथ पर सवार आडवाणी के बगल में बैठे थे भाजपा के तत्कालीन गुजरात संगठन सचिव नरेंद्र मोदी. जो सारथी जैसी भूमिका में नजर आते थे. आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस वक्त गुजरात राज्य बीजेपी के महामंत्री (संगठन) थे. इस यात्रा के संयोजन ने नरेंद्र मोदी को पार्टी की अगली लाइन में ला दिया. इस लिहाज से सोमनाथ से अयोध्या यात्रा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक जीवन का अभिन्न पड़ाव रही.

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राष्ट्रीय राजनीति पर मोदी के उदय का श्रेय इस यात्रा को ही जाता है. लालकृष्ण आडवाणी की अगुवाई में निकाली गई सोमनाथ से अयोध्या की रथयात्रा ने राममंदिर आंदोलन की दिशा बदल दी थी. इस यात्रा ने पूरे देश में राम लहर का उन्माद पैदा कर दिया. यह 13 सितंबर, 1990 की तारीख थी. इसी तारीख को नरेंद्र मोदी ने रथयात्रा की रूपरेखा देश के सामने रखी.  रथयात्रा 25 सितंबर को सोमनाथ से शुरू होकर 30 अक्तूबर को अयोध्या में पूरी होनी थी. उन्होंने उस दौरान राममंदिर को राष्ट्र की सांस्कृतिक चेतना और संकल्प का हिस्सा बता संघर्ष का मंत्र फूंका. नरेंद्र मोदी राजनीति के इस दूरगामी मिशन के बैकरूम मैनेजर थे. इस रथयात्रा की अपूर्व सफलता ने संगठन में उनका कद एकाएक बड़ा कर दिया. उन्हें मुरली मनोहर जोशी की कन्याकुमारी से कश्मीर तक की एकता यात्रा का भी सारथी घोषित कर दिया गया था.

सोमनाथ को ही क्यों चुना गया

सोमनाथ से रथयात्रा शुरू करने में पार्टी ने हिंदुओं के उस पवित्र शिवमंदिर का प्रतीक रूप में इस्तेमाल किया, जिसे मुस्लिम राजाओ ने बार बार तोड़ा ओर लूटने की कोशिश की . जिसे आजादी के बाद भारत सरकार ने बनवाया था, राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने इसकी नींव रखी थी. इसी वजह से देश भर में भावनाएं जगाने के लिए रथयात्रा यहां से शुरू की गई। 25 सितंबर पार्टी के संस्थापक महासचिव दीनदयाल उपाध्याय का जन्मदिन होता है. 

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25 सितम्बर को गुजरात के सोमनाथ मंदिर में पूजा अर्चना के बाद आडवाणी ने रथ यात्रा आरम्भ की. जो देशभर में दस हजार किलोमीटर का सफर तय करते हुए उत्तर प्रदेश के अयोध्या पंहुचना थी. इस दौरान यात्रा में कई उतार-चढ़ाव आए यात्रा को रोका भी गया देश के कई हिस्सों में दंगे भी हुए और लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी भी हुई.

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यात्रा के बाद देशभर में भारतीय जनता पार्टी का एक हिंदुत्ववादी पार्टी के रूप में उदय हुआ नरेंद्र मोदी गुजरात में महासचिव की भूमिका में थे और राम मंदिर यात्रा की लहर के तहत गुजरात में केशुभाई पटेल की सरकार भी बन गई लेकिन 2001 में आए भूकंप के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने नरेंद्र मोदी को दिल्ली तलब किया और गुजरात की कमान संभालने को कहा ठीक 1 साल बाद यानी 2002 में अयोध्या से गुजरात लौट रहे कारसेवकों की ट्रेन को गोधरा के पास आग के हवाले कर दिया जिसमें 56 जितने कारसेवकों की मौत हो गई. उसके बाद गुजरात में दंगे भी हुए और तब से लेकर करीब 14 साल तक नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर भी रहे.

एक बार फिर जागी करोड़ों हिन्दुओं की उम्मीद

इसके बाद साल 2014 के चुनाव के लिए  नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवााार घोषित किया गया. मोदी 2014 के चुनाव के कैंपेनिंग कमेटी के अध्यक्ष भी थे, लिहाजा उन्होंने राम मंदिर को मेनिफेस्टो में सबसे पहली प्राथमिकता दी और कहा गया कि संविधानिक तरीके से राम मंदिर बनाया जाएगा. 2014 में भारतीय जनता पार्टी प्रचंड बहुमत से नरेंद्र मोदी की अगुवाई में चुनाव जीते और करोड़ों हिंदुओंं को लगा कि अब राम मंदिर बनाने के रास्ते खुल जाएंगे और अब लंम्बी कानूनी लड़ाई के बाद आखिर व्हो दिन आ ही गया कि 5 अगस्त को राममंदिर का शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करने जा रहे है. किसी को क्या मालूम था कि आडवाणी की रथयात्रा का ये सारथी ही भगवान कृष्ण की तरह इस को अंतिम रूप देगा.