यूपी में मोहर्रम के संबंध में जारी गाइडलाइन में प्रशासन की भाषा को लेकर विवाद
गाइडलाइन में लिखी भाषा से शिया समुदाय की धार्मिक भावनाओ को ठेस पहुंची है. गाइडलाइन में मोहर्रम व शिया समुदाय पर सीधे तौर पर इल्ज़ाम लगाए गए. गाइडलाइन को लेकर शिया धर्मगुरुओं ने आवाज़ बुलंद की.
highlights
- मोहर्रम के संबंध में पुलिस प्रशासन द्वारा जारी गाइडलाइन में प्रशासन की भाषा को लेकर विवाद
- ड्राफ्ट में भाषा के इस्तेमाल को लेकर शिया समुदाय में रोष
- गाइडलाइन के ड्राफ्ट को तुरंत बदलने की माँग की गई
लखनऊ:
उत्तर प्रदेश में 19 अगस्त को मोहर्रम का पर्व मनाया जाएगा, जिसके लिए उत्तर प्रदेश पुलिस प्रशासन ने गाइडलाइन जारी कर दी है. चन्द्र दर्शन के अनुसार, इस वर्ष मोहर्रम 10 अगस्त से शुरू होकर 19 अगस्त को पूरा होगा. यह मुस्लिमों के दोनों समुदायों (शिया-सुन्नी) द्वारा मोहर्रम मनाया जाता है. इसके लिए पुलिस प्रशासन की ओर से गाइडलाइन जारी कर दी गई है. मोहर्रम के संबंध में पुलिस प्रशासन द्वारा जारी गाइडलाइन में प्रशासन की भाषा को लेकर विवाद शुरु हो गया. ड्राफ्ट में भाषा के इस्तेमाल को लेकर शिया समुदाय में रोष.
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गाइडलाइन में लिखी भाषा से शिया समुदाय की धार्मिक भावनाओ को ठेस पहुंची है. गाइडलाइन में मोहर्रम व शिया समुदाय पर सीधे तौर पर इल्ज़ाम लगाए गए. गाइडलाइन को लेकर शिया धर्मगुरुओं ने आवाज़ बुलंद की. गाइडलाइन के ड्राफ्ट को तुरंत बदलने की माँग की गई. मौलाना सैफ अब्बास, मौलाना कल्बे सिब्ते नूरी सहित कई उलेमाओं ने की ये मांग की. मौलाना सैफ अब्बास ने कहा, मोहर्रम को त्योहार का नाम न दिया जाए. वही सैफ अब्बास ने भी ये कहा कि मोहर्रम कोई त्योहार नही ये एक ग़म की अलामत है. मौलाना सिब्तैन नूरी ने भी इस पर बयान जारी किया, उन्होंने कहा, अगर ड्राफ़्ट को वापस नहीं लिया जाता है तो मोहर्रम के संबंध में होने वाली मीटिंग में मौलाना हिस्सा नहीं लेंगे.
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दरअसल, उत्तर प्रदेश में मोहर्रम के अवसर पर प्रशासन ने जो ड्राफ्ट जारी किया था, उसमे मोहर्रम को त्यौहार कहा गया था, बल्कि, मुसलमानों के लिए इस दिन को मातम का दिन होता है, क्योंकि, मुहर्रम महीन के दसवें दिन हजरत मुहम्मद साहब के नाती हुसैन अली अपने 72 साथियों के साथ कर्बला के मैदान में शहीद हुए थे. इस गम के त्योहार को मुसलिम समुदाय के दो वर्ग शिया और सुन्नी अलग-अलग तरीके से मनाते हैं. शिया समुदाय के लोग मुहम्मद साहब के दामाद और चचेरे भाई हजरत अली और उनके नाती हुसैन अली को खलीफा और अपने करीब मानते हैं. शिया समुदाय के लोग पहले मुहर्रम से 10 वें मुहर्रम यानी अशुरा के दिन तक मातम मनाते हैं. इस दौरान शिया समुदाय के लोग रंगीन कपड़े और श्रृंगार से दूर रहते हैं. मुहर्रम के दिन यह अपना खून बहाकर हुसैन की शहादत को याद करते हैं. सुन्नी समुदाय के लोग अपना खून नहीं बहाते हैं. यह ताजिया निकालकर हुसैन की शहादत का गम मनाते हैं. ह आपस में तलवार और लाठी से कर्बला की जंग की प्रतीकात्मक लड़ाई लड़ते हैं. इस समुदाय के लोगों में रंगीन कपड़े पहनने को लेकर किसी तरह की मनाही नहीं है.
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