GI TAG मिलने से देश दुनिया में गौरव बढ़ाएगा पूर्वांचल का गवरजीत आम
उत्तर प्रदेश सरकार ने जिन 15 कृषि उत्पादों के जीआई (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) टैगिंग के लिए आवेदन दि या है उसमें पूर्वांचल के चुनिंदा जिलों में पाया जाने वाले गवरजीत आम भी है. आम की कई किस्में दुनिया भर में मशहूर हैं लेकिन गंवरजीत का स्वाद अपने आप में अनूठा है. इसको जीआई टैग मिलने से देश दुनिया में गौरव बढ़ाएगा. गवरजीत खास इसलिए भी है क्योंकि इसे कार्बाइड से नहीं पकाया जाता. ठेले पर आम पत्तों के साथ नजर आता है जिससे उसकी अलग पहचान होती है. अपने स्वाद और क्वालिटी के चलते गवरजीत आम की दूसरी किस्मों से महंगा भी होता है.
गोरखपुर:
उत्तर प्रदेश सरकार ने जिन 15 कृषि उत्पादों के जीआई (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) टैगिंग के लिए आवेदन दि या है उसमें पूर्वांचल के चुनिंदा जिलों में पाया जाने वाले गवरजीत आम भी है. आम की कई किस्में दुनिया भर में मशहूर हैं लेकिन गंवरजीत का स्वाद अपने आप में अनूठा है. इसको जीआई टैग मिलने से देश दुनिया में गौरव बढ़ाएगा. गवरजीत खास इसलिए भी है क्योंकि इसे कार्बाइड से नहीं पकाया जाता. ठेले पर आम पत्तों के साथ नजर आता है जिससे उसकी अलग पहचान होती है. अपने स्वाद और क्वालिटी के चलते गवरजीत आम की दूसरी किस्मों से महंगा भी होता है.
भले ही मलिहाबाद (लखनऊ) के दशहरी, पश्चिम उत्तर प्रदेश के चौसा, वाराणसी के लंगड़ा और मुंबई के अलफांसो खुद में नामचीन आम हों, पर गोरखपुर और बस्ती मंडल के किसी भी व्यक्ति से पूछेंगे कि आमों का राजा कौन है? तो वह यही कहेगा गवरजीत. बात चाहे खुश्बू की हो या स्वाद और रंग की, नाम के अनुरूप गवरजीत लोगों का दिल जीत लेता है. पूर्वांचल के गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती और संतकबीरनगर जिलों के लाखों लोगों को आम के सीजन में इसका इंतजार रहता है.
अपनी इन्हीं खूबियों के नाते जून 2016 में लखनऊ के लोहिया पार्क में आयोजित प्रदेश स्तरीय आम महोत्सव में इसे प्रथम पुरस्कार मिला था. इजरायल की मदद से योगी सरकार इसे लोकप्रिय (ब्रांड) बनाने का प्रयास कर रही है. हाल के वर्षों में इसकी लोकप्रियता बढ़ी भी है. अब सीजन में अगर कोई बस्ती के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस से आम के 500 पौध खरीदता है तो उसमें 50 गवरजीत के होते हैं. खरीदने वालों में लखनऊ और अंबेडकर नगर आदि जिलों के भी लोग हैं.
अगर इसकी अन्य खूबियों की बात करें तो यह आम की अर्ली प्रजाति है. इसकी आवक दशहरी के पहले शुरू होती है. जब तक डाल की दशहरी आती है तब तक यह खत्म हो जाता है. मौसम ठीक ठाक रहे तो डाल के गवरजीत की आवक जून के दूसरे हफ्ते में शुरू हो जाती है.
अमूमन यह डाल पर ही पकता है और पत्तियों के साथ बिकता है. मांग इतनी कि इसका सौदा पेड़ में बौर आने के साथ ही हो जाता है. फुटकर खरीदार बाग से ही इसे खरीद लेते हैं. मंडी में यह कम ही आता है. फुटकर दुकानों से ही ग्राहक इसे हाथोंहाथ ले लेते हैं. सीजन में सबसे अच्छे भाव गौरजीत के ही मिलते हैं. पिछले सीजन में फुटकर में प्रति कीलोग्राम बेहतर गुणवत्ता वाले गौरजीत के भाव 200 रुपये थे. गोरखपुर-बस्ती मंडल के करीब 6000 हेक्टेयर में गवरजीत के बागान हैं. बिहार के कुछ जिलों में भी गवरजीत के आम हैं, पर इनको वहां जदार्लु और मिठुआ नाम से भी जाना जाता है.
निदेशक हॉर्टिकल्चर आर.के. तोमर और ज्वाइंट डायरेक्टर हॉर्टिकल्चर (बस्ती) अतुल सिंह का कहना है कि खुश्बू और स्वाद में गवरजीत का कोई जवाब नहीं है. आप कह सकते हैं कि चूस कर खाने वाली यह सबसे अच्छी प्रजाति है. मई के लास्ट या जून के पहले हफ्ते में यह बाजार में आ जाती है. 90 फीसद खपत पूर्वांचल में ही हो जाती है.
पूर्वांचल के गोरखपुर देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीरनगर, बहराइच, गोंडा और श्रावस्ती जिले के लाखों किसानों-बागवानों को इसका मिलेगा. क्योंकि ये सभी जिले एक एग्रोक्लाईमेट जोन (कृषि जलवायु क्षेत्र) में आते हैं. इसका मतलब यह हुआ कि इन जिलों में जो भी उत्पाद होगा उसकी खूबियां भी एक जैसी होंगी.
उल्लेखनीय है कि योगी सरकार ने गौरजीत समेत 15 उत्पादों के जीआई टैंगिंग के लिए आवेदन किया है. ये उत्पाद हैं- बनारस का लंगड़ा आम, पान पत्ता, बुंदेलखंड का कठिया गेहूं, प्रतापगढ़ के आंवला, बनारस लाल पेड़ा, लाल भरवा मिर्च, पान (पत्ता), तिरंगी बरफी, ठंडई, पश्चिम यूपी का चौसा आम, पूर्वांचल का आदम चीनी चावल, जौनपुर की इमरती, मुजफ्फरनगर का गुड़ और रामनगर का भांटा गोल बैगन. इन सबके जीआई पंजीकरण की प्रक्रिया अंतिम चरण में हैं.
जीआई टैग किसी क्षेत्र में पाए जाने वाले कृषि उत्पाद को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है. जीआई टैग द्वारा कृषि उत्पादों के अनाधिकृत प्रयोग पर अंकुश लगाया जा सकता है. यह किसी भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित होने वाले कृषि उत्पादों का महत्व बढ़ा देता है. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में जीआई टैग को एक ट्रेडमार्क के रूप में देखा जाता है. इससे निर्यात को बढ़ावा मिलता है, साथ ही स्थानीय आमदनी भी बढ़ती है तथा विशिष्ट कृषि उत्पादों को पहचान कर उनका भारत के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय बाजार में निर्यात और प्रचार प्रसार करने में आसानी होती है.
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