योगी सरकार को मजबूत विपक्ष का अहसास कराने की कवायद में अखिलेश
अगर ऐसा होता है तो 2009 के बाद प्रदेश में वह ऐसे पूर्व मुख्यमंत्री होंगे जो नेता प्रतिपक्ष की भूमिका का निर्वाहन करेंगे. उनसे पहले उनके पिता मुलायम सिंह ने नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाई थी.
highlights
- समाजवादी पार्टी के निर्वाचित विधायकों की पहली बैठक आज
- नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव के नाम पर लग सकती है मुहर
- चुनाव परिणामों के बाद शिवपाल सिंह के नाम की थी चर्चा
लखनऊ:
लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा देकर सपा मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने यह संकेत दे दिया है कि अब उनका पूरा ध्यान यूपी की सियासत पर होगा. इस इस्तीफे को वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव (2024 Lok Sabha Elections) से जोड़कर भी देखा जा रहा है. संभावना है कि वह नेता प्रतिपक्ष की भूमिका संभालेगे. अखिलेश को सरकार बनाने का मौका भले न मिला हो, पर वह सदन में भाजपा सरकार को मजबूत विपक्ष की भूमिका का अहसास जरूर कराएंगे. सपा के सूत्र बताते हैं कि अखिलेश ही विधायक दल के नेता होंगे, तो वही मुख्य विपक्षी दल होंने के नाते नेता प्रतिपक्ष भी होंगे. गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने और सदन का नेता बनने के बाद अब आज नेता विपक्ष के नाम पर समाजवादी पार्टी की मुहर लगा सकती है. क्योंकि आज समाजवादी पार्टी (SP) के नवनिर्वाचित विधायकों की पहली बैठक 26 मार्च को होने जा रही है.
नेता प्रतिपक्ष बनने वाले मुलायम के बाद होंगे पहले सीएम
अगर ऐसा होता है तो 2009 के बाद प्रदेश में वह ऐसे पूर्व मुख्यमंत्री होंगे जो नेता प्रतिपक्ष की भूमिका का निर्वाहन करेंगे. उनसे पहले उनके पिता मुलायम सिंह ने नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाई थी. हालांकि पहले कयास लगाए जा रहे थे कि शिवपाल सिंह यादव को नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है.
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2024 की कवायद में जुटे अखिलेश
प्रदेश में सपा को बहुमत न मिलने के बाद से कयास लगाए जा रहे थे कि अखिलेश यादव विधायक पद से इस्तीफा दे देंगे, लेकिन अखिलेश ने अपने फैसले से सबको चौंका दिया. उन्होंने आजमगढ़ सीट से लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. आने वाले पांच साल तक अखिलेश यादव करहल के अखाड़े से ही उत्तर प्रदेश की सियासत करेंगे. 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव और आगामी विधानसभा चुनाव की पृष्ठभूमि भी करहल से ही तैयार करेंगे.
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विधानसभा चुनाव में सपा का वोट शेयर बढ़ा
सपा सत्ता में भले न आयी हो, लेकिन पार्टी का वोट का शेयर बढ़ा है. कोर वोटर भी इनके साथ पूरी ताकत से जुड़ा हुआ है. विधानसभा के नतीजों को देंखें तो 23 सीटों लोकसभा सीटों को सपा को बढ़त मिलती दिखाई दे रही है. पश्चिमी यूपी से पूर्वांचल तक सपा का प्रदर्शन निश्चित तौर से काफी अच्छा रहा है. वोटर का साथ बनाए रखने के लिए सपा उनके लिए संघर्ष करती हुई दिखनी चाहिए. अगर अखिलेश इनके लिए खुद संघर्ष करेंगे, तो इनका वोट बैंक छिटकने से बच जाएगा. साथ ही, संगठन भी मजबूत होगा. नई पीढ़ी की राजनीति को भी बढ़ावा मिलेगा. सदन से लेकर सड़क तक अपनी मौजूदगी बढ़ाकर 2024 के लोकसभा चुनाव से लेकर 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में काफी आसानी होगी.
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आजमगढ़ सीट सपा को मिलने का भी भरोसा
समाजवादी पार्टी का आजमगढ़ की विधानसभा सीटों पर अच्छा प्रदर्शन रहा है. ऐसे में अखिलेश को भरोसा है कि उपचुनाव में यह सीट फिर से सपा के खाते में ही जाएगी. 2017 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद अखिलेश केंद्र की राजनीति करने लगे थे. इसके बाद ऐसा माना गया कि यूपी में विपक्ष कमजोर पड़ गया है. यूपी में लोकसभा की 80 सीटें हैं इसलिए अखिलेश 2024 के लिए सियासी जमीन को मजबूत करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं.
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