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MP कैबिनेट में शिवराज के करीबियों को नहीं मिली जगह, ताकतवर BJP नेताओं की पकड़ हुई कमजोर

मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में शिवराज सिंह चौहान सरकार (Shivraj Govvernment) के मंत्रिमंडल के दूसरे विस्तार में कई प्रभावशाली नेताओं के करीबियों को जगह नहीं मिली है और यह स्थिति पार्टी में उनकी पकड़ कमजोर होने का संकेत दे रही है.

Updated on: 04 Jul 2020, 09:03 AM

नई दिल्ली:

मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में शिवराज सिंह चौहान सरकार (Shivraj Govvernment) के मंत्रिमंडल के दूसरे विस्तार में कई प्रभावशाली नेताओं के करीबियों को जगह नहीं मिली है और यह स्थिति पार्टी में उनकी पकड़ कमजोर होने का संकेत दे रही है.

शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल के दूसरे विस्तार में 28 मंत्रियों को शपथ दिलाई गई है. इनमें 20 कैबिनेट और आठ राज्यमंत्री हैं. इन मंत्रियों में अगर राजनीतिक सरपरस्ती को देखा जाए तो सबसे ज्यादा स्थान कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों को मिला है. इसमें अगर कांग्रेस से आए अन्य नेताओं को शामिल कर लिया जाए तो यह आंकड़ा 14 पर पहुंच जाता है. यानी 33 सदस्यीय मंत्रिमंडल में 14 सदस्य कांग्रेस से बीजेपी में आने वाले हैं.

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मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर काफी अरसे से तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे थे और संभावना इस बात की जताई जा रही थी कि राज्य के कद्दावर नेताओं के करीबियों को स्थान तो मिलेगा ही. लेकिन केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते, थावरचंद गहलोत और प्रहलाद पटेल व राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के करीबियों को जगह नहीं मिल पाई है. वहीं केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के करीबी भारत सिंह कुशवाहा ही मंत्री बन पाए हैं.

शिवराज सरकार के एक कद्दावर मंत्री ग्वालियर चंबल क्षेत्र के एक ऐसे नेता को मंत्री बनाने के लिए जी जान लगाए हुए थे, जो है तो सिंधिया के खेमे का, मगर मंत्री बनवाकर उसके जरिए वह अपनी सियासी जमावट को मजबूत करने की कोशिश में लगे थे. उन्हें भी मायूसी हाथ लगी है, क्योंकि सिंधिया ने अंतिम समय पर उस नेता का नाम कटवा कर ओ.पी.एस. भदौरिया को राज्य मंत्री बनाने का फैसला लिया.

मंत्री पद की दौड़ में शामिल संजय पाठक का कहना है कि प्रदेश में सरकार ज्योतिरादित्य सिंधिया के कारण बनी है और उनके साथ जो लोग पार्टी में आए हैं, उन्होंने विधायक का पद त्यागा है, लिहाजा उन्हें मंत्री बनाया जाना जरूरी था.

राज्य विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस द्वारा बनाई गई चुनाव अभियान समिति के समन्वयक रह चुके मनीष राजपूत का कहना है, "बीजेपी ने सिंधिया के सम्मान का पूरा ख्याल रखा है और इसके सिंधिया हकदार भी हैं. कांग्रेस ने सत्ता में आने के लिए सिंधिया के चेहरे को आगे रखा था, मगर सत्ता मिलते ही सिंधिया की उपेक्षा शुरू कर दी. सिंधिया ने जनता की आवाज को उठाया तो उन्हें कांग्रेस नेताओं ने चुनौती दे दी. उन्होंने जब जनहित में कदम उठाया तो कांग्रेस की सरकार ही नहीं बची."

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शिवराज मंत्रिमंडल में वरिष्ठ नेताओं को जगह न मिलने पर कांग्रेस लगातार तंज कस रही है. प्रदेश प्रवक्ता अजय यादव का कहना है, "बीजेपी के ऐसे नेताओं को जो 30-40 साल से सेवा कर रहे हैं. छह से सात बार के विधायक हैं, उनकी उपेक्षा की गई है. यह पूरी तरह बेंगलुरू में की गई सौदेबाजी की शर्तो को पूरा करता हुआ मंत्रिमंडल है. आने वाले समय में जनता इन्हें सबक सिखाएगी."

राजनीतिक विश्लेषक अरविंद मिश्रा का कहना है, "बीजेपी की मजबूरी थी कांग्रेस से आए नेताओं को मंत्री बनाना. इससे उन वरिष्ठ नेताओं में असंतोष तो है जो दावेदार थे. आने वाले समय में बीजेपी के सामने इस असंतोष को साधना बड़ी चुनौती होगी. अगर असंतोष विकराल रूप लेता है तो विधानसभा के उप-चुनाव में नुकसान की संभावना को नकारा नहीं जा सकता."