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Jammu-Kashmir: PSA के तहत महबूबा मुफ्ती की हिरासत तीन महीने के लिए बढ़ी

जम्मू कश्मीर (Jammu-Kashmir) की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती (Mehbooba Mufti) के विरुद्ध जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत उनकी हिरासत की मियाद मंगलवार को तीन महीने के लिए बढ़ा दी गई.

जम्मू कश्मीर (Jammu-Kashmir) की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती (Mehbooba Mufti) के विरुद्ध जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत उनकी हिरासत की मियाद मंगलवार को तीन महीने के लिए बढ़ा दी गई.

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Deepak Pandey
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पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती (Mehbooba Mufti)( Photo Credit : फाइल फोटो)

जम्मू कश्मीर (Jammu-Kashmir) की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती (Mehbooba Mufti) के विरुद्ध जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत उनकी हिरासत की मियाद मंगलवार को तीन महीने के लिए बढ़ा दी गई. पीएसए के तहत हिरासत की अवधि समाप्त होने के कुछ घंटे पहले जम्मू कश्मीर प्रशासन के गृह विभाग ने मुफ्ती की हिरासत बढ़ाए जाने से संबंधित एक संक्षिप्त आदेश जारी किया. पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान निरस्त किए जाने के बाद पांच अगस्त को मुफ्ती को हिरासत में लिया गया था.

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दो ‘उप-जेलों’ में आठ महीने हिरासत में रहने के बाद मुफ्ती को सात अप्रैल को उनके घर में नजरबंद कर दिया गया था. मुफ्ती पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष हैं. शुरुआत में उन्हें एहतियातन हिरासत में रखा गया था. बाद में इस साल पांच फरवरी को उन पर जन सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई की गई थी. महबूबा की बेटी इल्तिजा ने अपनी मां को हिरासत में लिए जाने के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में फरवरी में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी. न्यायालय ने सुनवाई के लिए 18 मार्च की तारीख तय की थी लेकिन कोरोना वायरस फैलने के चलते सुनवाई नहीं हो पाई.

तहत नजरबंदी को चुनौती देने वाली याचिका पर जम्मू कश्मीर प्रशासन को नोटिस जारी किया था. न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति एम आर शाह की तीन सदस्यीय पीठ ने पीडीपी मुखिया की पुत्री इल्तिजा मुफ्ती (Iltija Mufti) से कहा था कि वह लिखित में यह आश्वासन दें कि उन्होंने अपनी मां की नजरबंदी के खिलाफ उच्च न्यायालय सहित किसी अन्य न्यायिक मंच पर कोई याचिका दायर नहीं की थी.

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इल्तिजा ने महबूबा मुफ्ती को जन सुरक्षा कानून के तहत नजरबंद करने के सरकार के पांच फरवरी के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में बन्दी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर रखी थी. बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के माध्यम से किसी ऐसे व्यक्ति को न्यायालय में पेश करने का निर्देश देने का अनुरोध किया जाता था, जिसे कथित रूप से गैरकानूनी तरीके से हिरासत में रखा गया हो. पीठ ने इल्तिजा की वकील नित्या रामकृष्णन से सवाल किया कि उन्होंने उच्च न्यायालय में याचिका क्यों नहीं दायर की थी.

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