Cloud Seeding: क्या है क्लाउड सीडिंग, कैसी कराई जाती है कृत्रिम बारिश, इन केमिकल से होती है आर्टिफिशियल रेन

Cloud Seeding: दिल्ली में वायु प्रदूषण को कम करने किए सरकार क्लाउड सीडिंग पर विचार कर रही है. ऐसे में हर कोई ये जानना चाहता है कि आखिर क्लाउड सीडिंग और आर्टिफिशियल रेन क्या होती है. तो चलिए जानते हैं.

Cloud Seeding: दिल्ली में वायु प्रदूषण को कम करने किए सरकार क्लाउड सीडिंग पर विचार कर रही है. ऐसे में हर कोई ये जानना चाहता है कि आखिर क्लाउड सीडिंग और आर्टिफिशियल रेन क्या होती है. तो चलिए जानते हैं.

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Suhel Khan
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दिल्ली में कराई जाएगी क्लाउड सीडिंग! Photograph: (ANI)

Delhi Cloud Seeding: राजधानी दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण के चलते सरकार कई उपाय कर रही है. बीच सरकार ने राजधानी में क्लाउड सीडिंग यानी कृत्रिम बारिश कराने का फैसला लिया है. दिल्ली में कृत्रिम बारिश कराने का पहला परीक्षण मंगलवार (28 अक्टबर) को कराया जा सकता है. जिसे लेकर दिल्ली के मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कुछ जानकारियां दी हैं. दिल्ली के मंत्री ने कहा कि जैसे ही कानपुर में मौसम साफ होगा, हमारा एयरक्राफ्ट वहीं से उड़ान भरेगा. अगर ये उड़ान सफल रहती है तो दिल्ली में मंगलवार को कृत्रिम बारिश कराई जाएगी. जिसके जरिए दिल्ली में बारिश कराई जाएगी.

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जानें कैसे कराई जाती है कृत्रिम बारिश?

दरअसल, कृत्रिम बारिश या आर्टिफिशियल रेन को एक विशेष प्रक्रिया के तहत बादलों की भौतिक अवस्था में कृत्रिम तरीके से बदलाव किया जाता है. जिससे वातावरण बारिश के अनुकूल हो जाता है. बादलों में होने वाले इस बदलाव को ही क्लाउड सीडिंग कहा जाता है. कृत्रिम बारिश यानी क्लाउड सीडिंग की ये प्रक्रिया तीन चरणों में कराई जाती है.

पहले चरण के तहत केमिकल्स का इस्तेमाल कर उस इलाके के ऊपर वायु के द्रव्यमान को ऊपर की तरफ भेजा जाता है, जिससे वे बादल में परिवर्तित हो जाते हैं. इस प्रक्रिया के लिए कैल्शियम क्लोराइड, कैल्शियम कार्बाइड, कैल्शियम ऑक्साइड, नमक और यूरिया के यौगिक के अलावा यूरिया और अमोनियम नाइट्रेट के यौगिक का इस्तेमाल किया जाता है. ये यौगिक हवा से जलवाष्प को सोख लेते हैं. उसके बाद संघनन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. जबकि दूसरे चरण में नमक, यूरिया, अमोनियम नाइट्रेट, सूखी बर्फ और कैल्शियम क्लोराइड का प्रयोग कर बादलों के द्रव्यमान को बढ़ाया जाता है.

कैसे होता है बादलों में केमिकल का छिड़काव?

इसके बाद तीसरे और आखिरी चरण को तब शुरू किया जाता है, जब बादल पहले से बन जाएं या उन्हें कृत्रिम तरीके से बनाया जाए. इस चरण में सिल्वर आयोडाइड और सूखी बर्फ जैसे ठंडा करने वाले केमिकल्स का बादलों में छिड़काव किया जाता है. ऐसा करने से बादलों का घनत्व बढ़ जाता है और उससे बाद बर्फीला रूप ले लेते हैं. इस दौरान बादल इतने भारी हो जाते हैं कि कुछ देर भी आसमान में नहीं लटके रह सकते हैं और बारिश के रूप में बरसने लगते हैं. बता दें कि इस दौरान सिल्वर आयोडाइड को निर्धारित बादलों में छिड़कने के लिए हवाई जहाज, विस्फोटक रॉकेट्स या गुब्बारे का इस्तेमाल किया जाता है. इसी प्रक्रिया का इस्तेमाल कृत्रिम बारिश कराने के लिए ज्यादा किया जाता है.

आखिर क्या है क्लाउड सीडिंग?

बता दें कि क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक तकनीक है, जिसके तहत बादलों में सिल्वर आयोडाइड, नमक के साथ अन्य प्रकार के रसायनों का छिड़काव किया जाता है. इससे बादलों में मौजूद नमी बूंदों या बर्फ के कणों के रूप में इकट्ठी हो जाती है. इस प्रक्रिया का इस्तेमाल फसलों की सिंचाई के अलावा वायु प्रदूषण से निपटने के लिए किया जाता है.

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