दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार से बीमा कंपनियों की ओर से मेडिकल बिलों के सेटलमेंट के लिए व्यवस्था करने के लिए एक तंत्र विकसित करने को कहा है, ताकि इलाज के बाद अस्पतालों से मरीजों को अस्पताल के बिल के चलते परेशानियों का सामना ना करना पड़े. दिल्ली हाईकोर्ट न्यायधीश नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने कहा कि केंद्र और दिल्ली दोनों सरकारों को प्रणाली तैयार करने के लिए बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) और दिल्ली और भारत की चिकित्सा परिषदों के साथ समन्वय में काम करना चाहिए.
बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताई
अदालत ने बिल-निपटान प्रक्रिया के दौरान मरीजों और उनके परिवारों को होने वाले परेशानी की लगातार बढ़ती घटनाओं पर भी चिंता जताई और अस्पतालों और बीमा फर्मों दोनों को देरी और लंबी प्रक्रियाओं के लिए दोषी ठहराया, जो मरीजों के मानसिक परेशानी को बढ़ाते हैं.
जानें क्या है मामला
दरअसल एक याचिकाकर्ता शशांक गर्ग ने मई 2018 में शहर की एक अदालत की ओर से एक निजी अस्पताल के तीन कर्मचारियों को धोखाधड़ी के एक मामले में बर्खास्त करने के फैसले को चुनौती दी थी. याचिका में गर्ग ने कहा कि 2013 में अस्पताल में सर्जरी के बाद उनसे कुल 1.73 लाख रुपये वसूले गए. हालांकि, वे कैशलेस बीमा योजना के तहत कवर थे, लेकिन अस्पताल ने उनसे पूरी राशि सुरक्षा के तौर पर जमा करवा ली और वादा किया कि बीमाकर्ता की ओर से अपना हिस्सा चुकाने के बाद उन्हें वापस कर दिया जाएगा. इसी मामले को लेकर हाइकोर्ट पहुंचे शशांक के मामले में टिप्पणी करते हुए ये बात कोर्ट ने कही.
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