logo-image

'ताजमहल में हो सकती है नमाज तो कुव्वतुल मस्जिद पर हमें भी मिले पूजा का अधिकार'

दिल्ली में कुतुब मीनार के पास स्थित कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद (Quwwatul Islam Masjid) का मामला साकेल कोर्ट में पहुंच चुका है. गुरुवार को इस मामले में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने मांग कि मस्जिद को हिंदुओं और जैनों के 27 मंदिरों को तोड़कर बनाई गई है.

Updated on: 24 Dec 2020, 01:48 PM

नई दिल्ली:

दिल्ली में कुतुब मीनार के पास स्थित कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद का मामला साकेल कोर्ट में पहुंच चुका है. गुरुवार को इस मामले में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने मांग कि मस्जिद को हिंदुओं और जैनों के 27 मंदिरों को तोड़कर बनाई गई है, लिहाजा यहां पूजा करने का अधिकार दिया जाए. याचिकाकर्ता ने हवाला देते हुए कहा कि ताजमहल में भी नमाज पढ़ी जाती है तो उन्हें पूजा का अधिकार क्यों नहीं दिया जा सकता है?

याचिका में खुद जैन तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव और भगवान विष्णु को इस मामले में याचिकाकर्ता बनाया गया है. याचिकाकर्ता वकील हरिशंकर जैन ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि इस मामले में इस बात को लेकर कोई विवाद नहीं है कि मंदिरों को ध्वस्त किया गया था. लिहाजा इसको साबित करने की ज़रूरत नहीं. पिछले 800 से ज़्यादा सालों से हम पीड़ित है. अब पूजा का अधिकार मांग रहे है, जो कि हमारा मूल अधिकार है. उन्होंने कहा कि वहां पिछले आठ सौ साल से नमाज नहीं पढ़ी गई. मस्जिद के तौर इसका इस्तेमाल ही नहीं हुआ. 

यह भी पढ़ेंः कोरोना के टीकाकरण के लिए दिल्ली सरकार तैयार- केजरीवाल

जज नेहा शर्मा ने इस पर सवाल किया कि आप पूजा का अधिकार मांग रहे है. स्मारक अभी ASI के कब्ज़े में है. दूसरे तरीके से आप ज़मीन पर कब्ज़ा पा रहे है? इस पर हरिशंकर जैन ने कहा कि हम ज़मीन पर अपना मालिकाना हक़ नहीं मांग रहे है, बिना मालिकाना हक़ के भी पूजा के अधिकार दिया जा सकता है. हम सिर्फ कब्जा मांग रहे हैं. इस साइट की नेचर मंदिर की है पर इसका इस रूप में इस्तेमाल ही नहीं हो रहा है. इसका इस्तेमाल टूरिस्ट प्लेस के रूप में हो रहा है. 

ताजमहल हो या द्वारकाधीश मंदिर का दिया हवाला 
याचिकाकर्ता ने बहुत सारे स्मारक है, जहां बिना मालिकाना हक़ हासिल किए पूजा या नमाज हो रही है. फिर चाहे वो ताजमहल हो या द्वारकाधीश मन्दिर. इस पर जज ने सवाल किया कि आपके इस याचिका को दायर करने का क्या औचित्य है. किस हक़ से आप ये याचिका दायर कर रहे है. क्या आप सेवायत का अधिकार हासिल है? क्या आप ट्रस्ट है. इस पर याचिकाकर्ता ने कहा कि यहां पर सेवायत का रोल नहीं है. लिहाजा भक्त की हैसियत से हम पूजा का अधिकार मांग रहे हैं. 

यह भी पढ़ेंः राहुल का पीएम मोदी पर हमला-देश में नहीं बचा लोकतंत्र, बिल वापस होने तक डटे रहेंगे किसान

हमने खुद देवता और देवता के भक्त, दोनों की ओर से याचिका दायर की है. रामजन्मभूमि केस में भी देवता और देवता के भक्त दोनों थे, दोनों को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली. एक भक्त के याचिका दायर करने के अधिकार को सुप्रीम कोर्ट ने भी मान्यता दी है. आप मेरे याचिका दाखिल करने के अधिकार को खारिज नहीं कर सकती. ये राष्ट्रीय शर्म का विषय है. देशी विदेशी तमाम लोग वहां पहुचते है, देखते है कि कैसे खण्डित मुर्तिया वहां पर है. हमारा मकसद अब वहां किसी विध्वंश के लिए कोर्ट को आश्वस्त करना नहीं है. हम सिर्फ अपना पूजा का अधिकार चाहते हैं. 

6 मार्च को अगली सुनवाई
कोर्ट ने इस मामले में तीन बिंदुओं पर याचिकाकर्ता से लिखित जवाब दाखिल करने को कहा है. पहला सवाल है कि कैसे आप ज़मीन पर मालिकाना हक़ नहीं मांग रहे. दूसरा सवाल कि भक्त की हैसियत से आपका याचिका दाखिल करने का क्या औचित्य है. तीसरा सवाल किया है कि क्या सिविल कोर्ट ट्रस्ट के गठन का आदेश दे सकता है.