जनता के लिए 'ठेला' और 'सरकार' के लिए उड़न खटोला, कितना जायज?
एंबुलेंस को हरी झंडी दिखाते हुए मंत्री जी की तस्वीर अखबारों में चमकती रहती है, मीडिया की सुर्खियां बनी रहती हैं लेकिन बिहार में गरीबों को इलाज के लिए मरीज बनकर या फिर इलाज नहीं मिलने के कारण मौत के बाद लाश बनकर ठेला ही नसीब होता है
जनता के लिए 'ठेला' और 'सरकार' के लिए उड़न खटोला !( Photo Credit : न्यूज स्टेट बिहार झारखंड)
साल बीतने को है, नया साल दस्तक देने को है. हर साल की तरह नए साल के स्वागत के लिए जश्न की तैयारी है. नए साल में लोग अपने जीवन में नई खुशियों की उम्मीद करते हैं. नए साल में सरकार ने भी अपने लिए नया जेट विमान और एडवांस्ड हेलीक़ॉप्टर पर उड़ने की तैयारी की है लेकिन उन गरीबों का क्या? जिनकी ज़िंदगी ठेले पर ही ठिठकी रहती है. दिन बीते, महीने बीते, साल बीते, सरकारें बदली, लेकिन बिहार में कमबख्त ठेले ने गरीबों का साथ नहीं छोड़ा. यहां तक कि आखिरी सांस तक गरीबों का साथ ठेला ही निभाता रहता है, सरकार और स्वास्थ्य महकमे की बात ही ना करें तो ज्यादा ठीक होगा.
एंबुलेंस को हरी झंडी दिखाते हुए मंत्री जी की तस्वीर अखबारों में चमकती रहती है, मीडिया की सुर्खियां बनी रहती हैं लेकिन बिहार में गरीबों को इलाज के लिए मरीज बनकर या फिर इलाज नहीं मिलने के कारण मौत के बाद लाश बनकर ठेला ही नसीब होता है. आए दिन बिहार से ऐसी तस्वीरें सामने आती रहती हैं कि ठेले से मरीज को अस्पताल ले जाया गया. शव को अस्पताल से ठेले पर ले जाया गया और शव के लिए एंबुलेंस नहीं मिली. हुक्मरान भी शायद बोर हो चुके है. तभी तो ठेला के बजाए उन्हें उड़नखटोला दिखता है. ऐसे में सवाल ये है कि साहब आप उड़िए उड़नखटोले से किसी को कई आपत्ति नहीं है लेकिन गरीबों के जीवन से ठेला तो दूर कीजिए. कम से कम बीमार होने पर लोग एंबुलेंस से अस्पताल पहुंच सकें. देहांत होने पर मृतक के परिजनों को शव को पहुंचाने के लिए एंबुंलेंस तो मिल सके.
सरकार एक तरफ आम जनता के 350 करोड़ रुपए से उड़नखटोले पर चढ़ने की तैयारी में लगी है और ये नासमझ जनता है कि जब तब ठेले का मसला लेके आ जाती है. ताजा मामले में एक बार फिर से बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल खड़े हुए हैं. दरअसल, वैशाली में एक मरीज को पहले तो स्वास्थ्य विभाग द्वारा एंबुलेंस नहीं दिया जाता. जैसे तैसे परिजन उसे लेकर स्वास्थ्य केंद्र पहुंचते हैं लेकिन स्वास्थ्य केंद्र पहुंचने पर उसका इलाज ठेले पर ही किया जाता है और नतीजा ये होता है कि मरीज की थोड़ी ही देर बाद इलाज के अभाव में ठेले पर ही मौत हो जाती है. स्वास्थ्य महकमे की बेशर्मी यहीं पर नहीं खत्म होती. वह शव को ले जाने के लिए भी एंबुलेंस नहीं देता, अन्त में परिजनों को ठेले पर ही शव को ले जाना पड़ता है.
इससे पहले 11 दिसंबर को नालंदा से भी ऐसी ही तस्वीर सामने आई थी. प्रसव पीड़ा से कराहती महिला को ठेले पर लाया गया और सीधे सीधे इमरजेंसी वार्ड में ठेल दिया गया. सिस्टम को ठेल ठेल कर स्वास्थ्य मंत्री तेजस्वी बाबू 60 दिनों में मिशन 60 के तहत चमका दिए हैं. तब भी एक ठेले को लेकर शिकायत करने आ जाती है नासमझ जनता. देखो कुछ लोगों ने तो अब शिकायत करना भी बंद कर दिया और ठेले से ही संतुष्ट हैं.
NEWS STATE के सवाल
कब बदलेगी प्रदेश की स्वास्थ्य सेवा ?
विमान के लिए पैसे, एंबुलेंस के लिए क्यों नहीं ?
मरीज को अस्पताल में क्यों नहीं किया गया भर्ती ?
लापरवाह अधिकारियों पर कार्रवाई कब ?
दो एंबुलेंस होने के बावजूद क्यों नहीं दी गई सुविधा ?
कब तक ठेले पर ही जाती रहेगी गरीबों की जान ?
बार-बार ठेले पर मरीज की तस्वीर के लिए जिम्मेदार कौन?
मिशन 60 के तहत व्यवस्था सुधरने के दावे झूठे?
सरकार के लिए 350 करोड़ का विमान, जनता के लिए ठेला?
350 करोड़ में 1500 लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस खरीदी नहीं जा सकती है?
350 करोड़ में 5000 नॉर्मल एंबुलेंस खरीदी नहीं जा सकती है?