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बिहार में राम भरोसे उच्च शिक्षा, लेट सेशन, पेंडिंग रिजल्ट ही अब की पहचान

बिहार में शिक्षा व्यवस्था किस कदर लचर हो चुकी है, इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि राज्य की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी में 3 साल का ग्रेजुएशन 5 साल में नहीं हो पा रहा है.

Updated on: 24 Jan 2023, 05:21 PM

highlights

  • बिहार में राम भरोसे उच्च शिक्षा
  • अधिकतर विश्वविद्यालों के सेशन लेट
  • लेट सेशन, पेंडिंग रिजल्ट ही अब पहचान
  • एकेडमिक कैंलेडर जारी नहीं होने से दिक्कतें!
  • विश्वविद्यालयों में सेशन लेट
  • परीक्षाओं में हर साल देरी
  • कुलाधिपति के फरमान की अवहेलना

Patna:

बिहार में शिक्षा व्यवस्था किस कदर लचर हो चुकी है, इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि राज्य की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी में 3 साल का ग्रेजुएशन 5 साल में नहीं हो पा रहा है. इन यूनिवर्सिटीज में एकेडमिक सेशन 1 या दो नहीं बल्कि 12 सालों से लेट चल रहा है. समय पर ना ही परीक्षा होती है और ना ही रिजल्ट आता है. जिसके चलते लाखों छात्रों का भविष्य अधर में लटका है.

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3 साल का ग्रेजुएशन 5 साल में भी नहीं हो पा रहा
बिहार के तमाम विश्वविद्यालय में सेशन लेट चल रहे हैं और शिक्षा मंत्री रामचरितमानस पर सियासत कर रहे हैं. कुलाधिपति फागू चौहान विश्वविद्यालयों के कुलसचिवों को दो साल पहले ही शैक्षणिक सत्र नियमित करने का फरमान जारी कर चुके हैं, लेकिन आज भी कुलाधिपति के आदेश का भी पालन नहीं हो रहा है. हाल तो ये है कि अधिकतर विश्वविद्यालयों में सेशन दो से तीन साल पीछे चल रहा है. वीर कुंवर सिंह यूनिवर्सिटी का ही हाल देख लीजिए. वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के अंतर्गत 18 सरकारी और 62 प्राइवेट कॉलेज का संचालन हो रहा है, लेकिन सेशन लेट है और अधर में विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्र. 

परीक्षा और नतीजों को समय पर कराना चुनौती
परीक्षा और नतीजों को छोड़कर सिर्फ एक चीज ही विश्वविद्यालय में समय पर होती है. वो है सीनेट और सिंडिकेट की बैठक. अब तो छात्र भी इस बैठक में मंथन होने वाले मुद्दों पर सवाल उठा रहे हैं कि आखिर शैक्षणिक सत्र छोड़ समय पर होनी वाली इस बैठक में किन मुद्दों पर चर्चाएं होती है. सेशन तो लेट ही रहता है फिर सीनेट और सिंडिकेट की बैठक के मायने क्या हैं?

बिहार में शिक्षा का बुरा हाल
विश्वविद्यालय में शैक्षणिक सत्र की लेटलतीफी के पीछे कहीं राजभवन और राज्य सरकार के बीच सामंजस्य की कमी तो नहीं है और अगर ऐसा नहीं है तो जिस बिहार में समय पर चुनाव हो जाते हैं, सरकार बदल जाती है, प्रशासनिक फेरबदल होते हैं. वहां के विश्वविद्यालय में पांच-पांच साल सेशन लेट? सत्र की लेटलतीफी के चलते दिक्कतें मधेपुरा के बीएन मंडल विश्वविद्यालय के छात्रों को भी हो रही है. जिस बीएन मंडल विश्वविद्यालय में 2 साल की डिग्री लेने में 4 साल लग जाये और तीन साल की डिग्री के लिए 6 साल.

छात्रों के भविष्य पर मंडरा रहा खतरा
वहां छात्रों का भविष्य क्या होगा. इसका अंदाजा कोई भी लगा ले. मधेपुरा में हाल यही है कि हक के लिए विश्वविद्यालय के छात्रों को सड़कों पर उतरना पड़ता है. विश्वविद्यालय प्रबंधन से आंदोलन के दौरान आश्वासन भी मिलता है, लेकिन दुर्दशा देखिए बीएन मंडल विश्वविद्याल की. तमाम विरोधों के बावजूद यहां की बदहाली नहीं बदली. 

राम भरोसे उच्च शिक्षा
सत्र की लेटलतीफी वाली बदहाली ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा की भी है. LNMU में सेशन लेट होने से यहां छात्रों के बेहतर भविष्य की कामना की उम्मीद बेईमानी है. बड़ी मुश्किल से LNMU में एडमिशन हो पाता है, लेकिन एडमिशन लेते ही छात्रों के लिए यहां मुश्किलों का दौर शुरू हो जाता है. परीक्षायें लेट, सेशन लेट, डिग्री लेट. यानि लेटलतीफी के तले दबा बैठा है LNMU और छात्र जब भी विश्वविद्यालय प्रबंधन तक अपनी आवाज उठाते हैं. उन्हें सिवाय आश्वासन के कुछ नहीं मिलता. समाधान मिले भी कैसे. सालों का ये लेट सेशन चंद सेंकेंड में दूर तो हो नहीं सकता या फिर दूर करने की कोशिश ही नहीं की जाती. सवाल अनेक हैं, लेकिन छात्र बस एक जवाब चाहते हैं LNMU प्रबंधन से कि लेट शैक्षणिक सेशन फर्राटा कब भरेगा?

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अधिकतर विश्वविद्यालों के सेशन लेट
बिहार के विश्वविद्यालयों में सेशन लेट यानी समय से परीक्षा न होना और तय समय सीमा अवधि पर कोर्स पूरा न हो पाना, ये सब कुछ सामान्य हो चला है, लेकिन छात्रों के भविष्य से इन सामान्य हालातों में खिलवाड़ हो रहा है.  बड़ी-बड़ी परीक्षाएं क्लियर करने में सार्थक हैं बिहार के छात्र और उन्होंने इसे साबित भी किया, लेकिन विश्वविद्यालय की इस बदहाली के आगे झुकने के अलावे यहां के छात्रों के पास मानो कोई रास्ता नहीं होता. सालों से एक ही सवाल आज भी है कि बिहार के भविष्य के साथ खिलवाड़ कब तक, कब मिलेंगे समाधान.