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पूरा हुआ पंडित नेहरू का गुटनिरपेक्ष रहने का सपना, अब G-20 पर 21 साबित होगा भारत!

2022 में भारत को जी-20 समूह की अध्यक्ष्ता का अवसर मिला और ये सुनहरा अवसर भारत के लिए खुद को 21 साबित करने का बना.

Updated on: 11 Dec 2022, 01:59 PM

highlights

. जागृत होते भारतीय जनमानस

. पूरा हुआ पंडित नेहरू का सपना

Patna:

2022 में भारत को जी-20 समूह की अध्यक्ष्ता का अवसर मिला और ये सुनहरा अवसर भारत के लिए खुद को 21 साबित करने का बना. भारत की स्वतंत्रता से शुरू हुई विदेश नीति जिसमें गुटनिरपेक्षता एक प्रमुख कड़ी रही, उसके सफल होने और उद्देश्य पूर्ति वाली परिस्थिति आज नजर आ रही है. पंडित नेहरू जिस रास्ते से देश को सफलता के शिखर पर ले जाने का सपना देख रहे थे, कह सकते हैं कि आज वो सपना पूरा हुआ. गुटनिरपेक्षता का पक्षधर रहा भारत आज दुनिया के लिए एक ऐसा मंच बन चुका है, जैसे जंगल का वो जलस्त्रोत जहां बाघ-बकरी, शिकार-शिकार एक घाट पर घात होने के खतरे से बचते हुए निश्चिंतता से अपनी प्यास बुझा सकें. भारत एक ऐसा मंच बन कर उभरा है, जहां से रूस-युक्रेन, अमेरिका-चीन, कोरिया-चीन-अमेरिका ही नहीं, इस्लामिक देशों के संगठन को भी भारत के प्रति वो विश्वास दिलाता है, जिसमें पक्षपात, छल-कपट नहीं बल्कि सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय का भाव परिलक्षित होता है.

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गुटनिरपेक्षता की कीमत!
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वैश्विक मानचित्र में कुछ ही दशकों में व्यापक बदलाव देखने को मिला. औपनिवेशिक शक्ति के पतन के साथ नए शास- संचालन वाले राष्ट्रों ने आकार ग्रहण किया. दो खेमे में बंटी दुनिया में ताकतवर देश अपना खेमा मजबूत करने को लेकर दूसरे देशों को अपने साथ लाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते दिखे और युद्ध की विभिषिका झेल चुके राष्ट्र नायकों को गुटों के गठन ने एक और विभिषिका के संकेत दिए. इन परिस्थितियों में ब्रिटिश उपनिवेश के चंगुल से मुक्त हुआ. भारत महात्मा गांधी से प्रेरित सत्य, अहिंसा और आत्मबल से किसी गुट का हिस्सा बने बिना अपनी अलग वैश्विक पहचान स्थापित करने को आतूर था. 

प्रधानमंत्री नेहरू भी इस गुटनिरपेक्षता के प्रबल समर्थक थे. ये भले ही समीक्षा का विषय रहा है कि गुटनिरपेक्षता से भारत को नुकसान ज्यादा हुआ या फायदा, लेकिन इतना तय है कि स्वतंत्रता पश्चात अपने कदमों पर खड़े होकर विश्व के साथ कदमताल करने में भारत को विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ा. भारत के साथ की आस बांधे तब कि वैश्विक शक्तियों में सबसे प्रभावशाली रहे अमेरिका ने मदद का आश्वासन देने के बाद भी हाथ खींच लिया. इस आस में कि अपने ही देशवासियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे देश के नेता वित्तीय सहायता के लिए समझौता कर लेगें, पर नेहरू अपने गुटनिरपेक्ष रहने के निर्णय पर डटे रहे. 

प्रतिबंधों का सामना किया, दबंग देशों का धौंस भी झेला, मदद के नाम पर मतलब निकालने वालों के साथ तालमेल मिला कर चलने को मजबूर दिखे, अपने हित में लिए जाने वाले फैसलों के लिए भी दूसरों की सहमति और स्वीकृति के लिए लालायीत रहा, लेकिन अब ऐसा नहीं है.

अब हुआ देश सही में गुटनिरपेक्ष?
अब भारत उस स्थिति में है. जहां से वैश्विक राजनीति, कूटनीति, अर्थव्यवस्था और आदान-प्रदान में सामंजस्य बिठाकर अपने हित को प्राथमिकता देता है. एक समय था, जब हम गुटनिरपेक्ष होने के बाद भी अपनी दाल रोटी से लेकर संप्रभुता की सुरक्षा के लिए भी पश्चिम की ओर टकटकी लगाए देखते थे, पर अब ऐसा क्या बदल गया जो पूरी दुनिया भारत की ओर भविष्य के लिए उम्मीद की किरण के तौर पर देख रही है.

भारत अब उस स्थिति में है, जहां उसे मजबूर करने का माद्दा दुनिया की किसी ताकत में नहीं, ये नया भारत है, आत्मनिर्भर भारत है. अहिंसा का पैरवीकार वसुधैव कुटुम्बकम का भाव रखने वाला भारत है. भारत का आत्मनिर्भर होना इसे वो आत्मबल देता है, जो दुनिया के सामने याचक के बजाए निर्णायक शक्ति के तौर पर प्रस्तुत करता है और इन सबके केंद्र में है. 

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जागृत होते भारतीय जनमानस

केंद्र की नीतियों ने कोरोना काल के बाद वैश्विक बदहाली के दुष्प्रभाव से भारत को काफी हद तक सुरक्षित रखते हुए अर्थव्यवस्था को गति देने में कामयाब रहा. दुनिया के टॉप 5 अर्थव्यवस्था में शामिल होकर भारत ने सब को चौंका दिया. वैश्विक मंच पर मदद की आस लगाए हाथ बांधे खड़ा रहने वाला राष्ट्र आज दुनिया को नई दिशा दिखा रहा है. संक्षेप में कहें तो भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत है, बाजार गतिशील है, विदेशी मुद्रा का भंडार रिकार्ड स्तर पर है, खाद्य संकट की संभावना को समाप्त कर दिया गया है. आंतरिक और सीमाई सुरक्षा को लेकर अभूतपूर्व काम किए गए, आंतरिक सुरक्षा स्थापित हुई, सीमाओं पर आंख तरेरने वाले हमारा तेवर देख दंग है. यानि भारत दुनियाभर का साझेदार तो है पर किसी पर निर्भर नहीं होना, इसे सही मायने में गुटनिरपेक्ष होने के मापदंड पर खरा साबित करता है और यहां से भारत नए सपने, नए लक्ष्य के साथ आगे बढ़ सकता है. वो भी ऐसी स्थिति में जहां वो किसी गुट में शामिल होने को लालायित तो नहीं, पर जरूरत पड़े तो सबसे बड़े मजबूत और एक जैसे हित वाले देशों के गुट का गठन कर सकता है.