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Khudiram bose katghara Photograph: (social)
Khudiram Bose: भारत की आजादी की लड़ाई में कई ऐसे क्रांतिकारी हुए जिन्होंने मातृभूमि के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर दिया. इन्हीं में से एक थे अमर शहीद खुदीराम बोस, जिन्होंने 19 साल की उम्र में हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूमा. खुदीराम ने प्रफुल्ल चाकी के साथ मिलकर ब्रिटिश जज किंग्सफोर्ड को मारने की योजना बनाई थी. इसके लिए वे मेदिनीपुर से मुजफ्फरपुर पहुंचे और यूरोपियन क्लब के पास बम फेंका. हालांकि, किंग्सफोर्ड बच गया लेकिन घटना में ब्रिटिश बैरिस्टर प्रिंगल कैनेडी की पत्नी और बेटी की मौत हो गई. इसी घटना ने खुदीराम को अंग्रेजों की आंखों का कांटा बना दिया.
गिरफ्तारी के बाद यहां हुई पेशी
गिरफ्तारी के बाद उनकी पेशी उस समय के मुजफ्फरपुर जिला कोर्ट में हुई, जो वर्तमान में जिला खनन कार्यालय के रूप में इस्तेमाल हो रहा है. इसी अदालत में बने कठघरे में खड़े होकर खुदीराम ने मुकदमे का सामना किया था. ऐतिहासिक महत्व वाला यह कठघरा आज खनन कार्यालय के गोदाम में टूटी-फूटी कुर्सियों और अलमारियों के बीच उपेक्षा का शिकार पड़ा हुआ है. बारिश के पानी और लापरवाही के चलते इसके लकड़ी के हिस्से सड़ने लगे हैं.
1908 का ऐतिहासिक मुकदमा
खुदीराम बोस पर मुकदमे की सुनवाई एक मई 1908 से शुरू हुई थी. पहले बयान की रिकॉर्डिंग जिला मजिस्ट्रेट एचसी उडमैन की अदालत में हुई. इसके बाद 23 मई को प्रथम मजिस्ट्रेट ई.डब्ल्यू. ब्रेटेहाउड के सामने दूसरा बयान दर्ज किया गया. आठ जून से मुकदमे की अंतिम सुनवाई शुरू हुई और बांकीपुर, पटना से आए जज मि. कार्नडफ ने 13 जून 1908 को उन्हें फांसी की सजा सुना दी. इसी कठघरे में खड़े होकर खुदीराम ने साहस और निर्भीकता के साथ अंग्रेजी हुकूमत को ललकारा था.
विरासत को बचाने की मांग
इतिहासकारों और स्थानीय बुद्धिजीवियों का कहना है कि यह कठघरा भारत की स्वतंत्रता संग्राम की अमूल्य धरोहर है. इसे उपेक्षा में छोड़ देना शहीदों का अपमान है. इतिहासकार आफाक आजम ने मांग की है कि खनन कार्यालय को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जाए और यहां एक संग्रहालय बनाया जाए. इसमें खुदीराम बोस से जुड़े मुकदमे का ब्योरा, जिले के 103 शहीदों के चित्र और जीवन परिचय प्रदर्शित किए जाएं ताकि आने वाली पीढ़ियां स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानी से परिचित हो सकें.
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