Exclusive: बिहार में लॉकडाउन के बीच प्रशासन की खुली पोल, मजदूरों को ले जाने के लिए बस नहीं, दलाल कर रहे हैं वसूली
वाराणसी के जिलाधिकारी ने स्पष्ट किया कि बिहार सरकार ने नई एसआईपी जारी की है. जिसके अंतर्गत बिहार सरकार बॉर्डर से अपने मजदूर को फिलहाल नहीं ले जा रही है. इसके साथ ही जिलाधिकारी वाराणसी ने पत्र के माध्यम से आग्रह किया है कि बिहार जाने वाले मजदूरों को स
पटना:
वाराणसी के जिलाधिकारी ने स्पष्ट किया कि बिहार सरकार (Bihar Government) ने नई एसआईपी जारी की है. जिसके अंतर्गत बिहार सरकार बॉर्डर से अपने मजदूर को फिलहाल नहीं ले जा रही है. इसके साथ ही जिलाधिकारी वाराणसी ने पत्र के माध्यम से आग्रह किया है कि बिहार जाने वाले मजदूरों को सीधे बिहार तक ट्रेन के द्वारा छोड़ा जाए. इसकी हकीकत जानने जब हम यूपी और बिहार के बॉर्डर (Bihar Border) पर पहुंचे, तब वहां की जमीनी हकीकत कुछ और ही नजर आई. यहां बिहार शुरू होते ही प्राइवेट ट्रक मजदूरों को घर पहुंचाने के नाम पर वसूली कर रही है. वहीं दूसरी तरफ बिहार की प्रशासनिक व्यवस्था पूरी तरह लचर है. भीड़ उमड़ पड़ी है न सोशल डिस्टेंसिंग है न कोई नियम कानून. यूपी बॉर्डर खत्म होने के बाद बिहार की दुर्व्यवस्था की पोल खोलने वाली एक्सक्लुसिव रिपोर्ट.
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लोगों को गांव पहुंचाने के लिए 2500 से 3000 रुपये तक की उगाही
लॉकडाउन के बीच महापालन और उसके ऊपर अव्यवस्था के आलम बिहार के बॉर्डर शुरू होते ही नजर आ जाता है. अब हम जो आपको तस्वीर दिखाने वाले हैं, वो मानवता को शर्मसार तो करती ही है इसके साथ ही कोरोना के संक्रमण काल मे बिहार सरकार की लापरवाही और दुर्व्यवस्था को दर्शाती है. दरअसल उत्तर प्रदेश के चन्दौली के बाद जैसे ही बिहार राज्य की सीमा शुरू होती है, वहां मौजूद भीड़ न्यूज़ नेशन कैमरा देखते ही हमारी तरफ दौड़ती है. जब हमने उनसे बात की, तो पता चला बिहार की सीमा शुरू होने के साथ-साथ ऐसे कुछ दलाल सक्रिय हैं, जो ट्रकों के द्वारा लोगों को उनके गांव पहुंचाने के लिए 2500 से 3000 रुपये तक ले रही है. ये गरीब मज़दूर अपना सब कुछ देकर भी गांव जाना चाह रहे हैं. आलम ये है कि इनके पास खाने तक का पैसा नहीं बचा है और बिहार सरकार इन्हें बस की सुविधा भी दे नहीं रही है. यहां का जायजा लिया और इन लोगों से बात की.
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बिहार बॉर्डर से घर जाने के लिए परेशान मजदूर
दूसरी तरफ पुलिस के सामने लोगों से पैसे लेकर ट्रक द्वारा भेजे जाने का खेल होता रहा है. जब इस मामले पर हमने वहां की सुरक्षा में तैनात इंस्पेक्टर से बात की, तो उन्होंने कहा कि अब बस आ रही है. दोषियों पर कार्रवाई होगी. बस सहाब आ जाए. इसके बाद जब हम आगे पहुंचे, तो बिहार में जो कैम्प बनाये गए हैं. मजदूरों को अपने गतंव्य तक पहुंचाने के लिए वहां का हाल तो बेहद बुरा था. चारों तरफ भीड़ का कब्जा दिखाई दिया. कहीं भी सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है. क्या किसी तरह का नियम यहां दिख ही नहीं रहा था. मानो मछ्ली की मंडी हो लोग चीख पुकार रहे हैं. बिहार सरकार के कर्मचारी काम के नाम पर फर्ज अदायगी कर रहे हैं.
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कैम्प में मात्र दो पुलिसकर्मी नजर आए
इस भारी भरकम भीड़ को संभालने के लिए एक कैम्प में मात्र दो पुलिसकर्मी नजर आए. बिहार के कर्मनाशा में हमें ऐसे मजदूर भी मिले, जो पिछले 24 घंटों से भी ज्यादा का समय हो गया. मुजफरपुर और सीतामढ़ी के लिए बस के लिए खड़े हैं, लेकिन अभी तक इन्हें कुछ भी साधन नहीं मिला. कोरोना के इस संक्रमण काल मे पलायन की ऐसी तस्वीरें दिखाई दे रही हैं, जिसमें मानो लोग अपनी जान की बाजी लगाकर अपने गांव अपने घर पहुंचना चाहता है. कोई पैदल, तो कोई ऑटो में तो कोई ट्रक की छत पर ही अपनी जान जोखिम में डालकर हजारों किलोमीटर यात्रा करने को मजबूर हैं. सबसे ज्यादा भयावह तस्वीरें बिहार में ही देखने को मिल रही हैं.
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