Bihar News: बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले चल रहे स्पेशल इन्वेस्टिगेशन रिवीजन (SIR) अभियान पर सवाल उठने लगे हैं. हाजीपुर और मुजफ्फरपुर जैसे जिलों में बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) द्वारा बिना जरूरी दस्तावेजों के लोगों के नाम वोटर लिस्ट में जोड़ने के मामले सामने आए हैं. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, कई बीएलओ केवल पहचान या सिफारिश के आधार पर फॉर्म भरकर फॉर्म ऐप के जरिए आगे बढ़ा रहे हैं.
क्या कहते हैं नियम
जबकि नियमों के अनुसार, किसी भी नए नाम को जोड़ने से पहले आधार कार्ड या अन्य वैध पहचान दस्तावेजों की जांच अनिवार्य है. BLO खुद यह स्वीकार कर रहे हैं कि वे पहले फॉर्म ले लेते हैं और दस्तावेज बाद में मांगते हैं. वहीं, कुछ BLO मोबाइल ऐप के जरिए सिर्फ नाम, जन्मतिथि और फोटो स्कैन करके फॉर्म को रिकमेंड कर रहे हैं, जिससे पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं.
SIR का मकसद डुप्लीकेट नाम हटाना
एसआईआर का मकसद पुराने रिकॉर्ड और 2003 की मतदाता सूची की तुलना करके डुप्लीकेट या गलत नाम हटाना और नए सही नाम जोड़ना है. लेकिन मौजूदा स्थिति में यह उद्देश्य कहीं खोता नजर आ रहा है.
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एसआईआर प्रक्रिया पर रोक तो नहीं लगाई, लेकिन निर्वाचन आयोग से तीन अहम सवालों पर जवाब मांगा है —
1. क्या चुनाव आयोग को यह अभियान चलाने का अधिकार है?
2. क्या यह चुनाव कानून के अनुरूप है?
3. क्या चुनाव से ठीक पहले यह प्रक्रिया निष्पक्ष मानी जा सकती है?
21 जुलाई तक मांगा जवाब
इसके अलावा, कोर्ट ने पूछा है कि आधार, राशन कार्ड और वोटर आईडी जैसे दस्तावेजों को खारिज क्यों किया जा रहा है. निर्वाचन आयोग को 21 जुलाई तक अपना जवाब दाखिल करना है और अगली सुनवाई 28 जुलाई को होनी है.
वहीं, जमीनी स्तर पर BLO का कहना है कि कई लोग दस्तावेज देने से डर रहे हैं क्योंकि उन्हें यह प्रक्रिया एनआरसी जैसी लग रही है. इस कारण वे दस्तावेज देने में हिचक रहे हैं और BLO फॉर्म आगे बढ़ा रहे हैं.
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