बिहार में चुनावी हिंसा की जड़ें पुरानी, जानें इतिहास
1985 के चुनाव में हुई हिंसा में 69 लोगों की मौत हुई थी. 1370 हिंसक घटनाएं हुई थीं. चुनाव के दिन 310 घटनाएं हुईं, जिनमें 49 लोगों की मौत हुई थी. बूथ लूट की भी कई घटनाएं सामने आई थीं
पटना:
चुनाव के दौरान अतीत में कई ऐसी घटनाएं होती हैं, जिन्हें चुनाव के दौरान फिर से याद किया जाता है. वह भी एक दौर था और यह भी एक दौर है. 2 दशक पहले बिहार में चुनावों के दिन गरीब और कमजोर वर्ग के लोग जान की सलामती के लिए घरों में रहते थे. तब बिहार में चुनाव आयोग के लिए मतदान कराना वाकई लोहे के चने चबाने जैसा था. चौतरफा हिंसा, मारकाट, बूथ लूट और दबंगई का दौर. बिहार में 1985 के विधानसभा चुनाव में हिंसा के बाद एक पूरा दौर हिंसात्मक चुनाव का माहौल बन गया. 1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी जनेश्वर प्रसाद सिंह की मसौढ़ी में उनके कार्यालय में हत्या कर दी गई थी. वहीं, हटिया विधानसभा क्षेत्र के प्रत्याशी आईपीएफ के समर्थन से बतौर निर्दलीय प्रत्याशी विष्णु महतो चुनाव मैदान में उतरे थे, उनकी भी हत्या कर दी गई. दूसरी ओर नालंदा के निर्दलीय प्रत्याशी महेंद्र प्रसाद की हत्या उनके घर मे ही कर दी गई थी. वहीं, बोकारो के निर्दलीय प्रत्याशी बनवारी राम की मौत संदिग्ध परिस्थिति में हो गई थी. जिसके बाद चुनावी हिंसा ऐसी भड़की की हिंसात्मक चुनाव का दौर चल पड़ा.
यह भी पढ़ें : बिहार-झारखंड की ताजा खबरें, बड़ी ब्रेकिंग न्यूज
चुनावी हिंसा में 69 लोगों की हुई थी मौत
1985 के चुनाव में हुई हिंसा में 69 लोगों की मौत हुई थी. 1370 हिंसक घटनाएं हुई थीं. चुनाव के दिन 310 घटनाएं हुईं, जिनमें 49 लोगों की मौत हुई थी. बूथ लूट की भी कई घटनाएं सामने आई थीं. चुनाव के दिन करीब एक हजार लोग गिरफ्तार किए गए थे.
यह भी पढ़ें : बनमनखी विधानसभा सीट का जानिए पूरा हाल, इस बार किसकी नैय्या होगी पार
1991 में लोकसभा में बूथ लूट की घटनाएं हुईं
1991 में लोकसभा का मध्यावधि चुनाव हुआ. मतदान के दिन बड़े पैमाने पर बूथ लूट की घटनाएं हुईं. आयोग ने पटना लोकसभा का चुनाव ही रद्द कर दिया. इसके बाद उस वक्त के चुनाव आयुक्त शेषन ने बिहार में चुनाव आयोग की ताकत का इस्तेमाल किया. 1995 के विधानसभा चुनाव में शेषन ने कहा कि हर बूथ पर मतदान तभी कराया जाएगा, जब वहां अद्र्धसैनिक बल की तैनाती होगी. इसके चलते राज्य में चार बार वोटिंग टली. नौबत यहां तक आई कि तय समय में चुनाव न होने पर एक सप्ताह के लिए राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा.
यह भी पढ़ें : धमदाहा विधानसभा क्षेत्र में MY समीकरण प्रभावी, जानें इस बार किसके साथ
बिहार में चुनावी हिंसा की जड़ें पुरानी
बिहार में चुनावी हिंसा की जड़ें पुरानी हैं. पहले गांव के जमींदार अपने कारिंदों के जरिये पसंद के उम्मीद्वार को ज्यादातर वोट डलवा देता था. क्योंकि उस वक्त की ग्रामीण व्यवस्था एक हद तक जमींदार के इर्द-गिर्द घूमती थी. उसकी ऊपर शासन-प्रशासन तक पहुंच होती थी, इसलिए आमलोग विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे. बाद के दौर में जमींदारों की जगह बड़ी जोत वाले धनाड्य किसानों और दबंगों ने ले ली. यह एक प्रकार से साइलेंट बूथ कैप्चरिंग थी. बाद के दौर में तो कई गुंडे-बदमाशों ने इसे अपना पेशा तक बना लिया.
यह भी पढ़ें : कसबा विधानसभा सीट पर बीजेपी-कांग्रेस में रहती है टक्कर
चुनाव में अपराधियों का दबदबा
चुनाव लड़ने वाले नेताओं ने अपराधियों का अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. यही दौर राजनीति के अपराधीकरण का भी था. चुनाव में अपराधियों के दबदबे के बाद ऐसा भी दौर आया, जब कुछ जातीय और वर्ग समूहों ने इस काम को सामूहिक रूप से अंजाम देना शुरू कर दिया. इस दौर में चुनावी हिंसा भी जमकर हुई. बूथ लूट और चुनावी बदले के चलते कई लोगों को जान गंवानी पड़ी. कई इलाकों में लोग डर के मारे चुनाव बूथ तक जाने से परहेज करने लगे. 2001 में 23 साल बाद बिहार में पंचायतों के कई चरणों में हुए चुनाव में सौ से अधिक लोग मारे गए थे.
वीडियो
IPL 2024
मनोरंजन
धर्म-कर्म
-
Rang Panchami 2024: आज या कल कब है रंग पंचमी, पूजा का शुभ मुहूर्त और इसका महत्व जानिए
-
Good Friday 2024: क्यों मनाया जाता है गुड फ्राइडे, जानें ये 5 बड़ी बातें
-
Surya Grahan 2024: सूर्य ग्रहण 2024 किन राशि वालों के लिए होगा लकी
-
Bhavishya Puran Predictions: भविष्य पुराण के अनुसार साल 2024 की बड़ी भविष्यवाणियां