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कौन होगा JDU का अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष? अपने फैसले से फिर चौंका सकते हैं नीतीश कुमार

2010 में जेडीयू राज्य की पहले नंबर की पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन इस एक दशक के दौरान पार्टी का प्रदर्शन काफी गिरा है

Updated on: 23 Jul 2021, 09:10 PM

पटना:

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ( Bihar CM Nitish Kumar ) कई बार लोगों को अपने फैसलों से चौंका देते हैं. हो सकता है कि इस बार भी नीतीश का कोई फैसला आपको चौंका दे. सूत्रों के अनुसार सीएम नीतीश कुमार अपने ऊपर लग रहे कास्ट बेस्ड पॉलिटिक्स ( cast based politics) से परेशान हैं. इसलिए JDU राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में वह सारी अटकलों को दरकिनार करते हुए किसी ऐसे नाम को फाइनल कर सकते हैं, जो शायद आपने सोचा भी नहीं होगा. जेडीयू सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जेडीयू के सीनियर लीडर राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को पार्टी का नया अध्यक्ष बनाया जा सकता है. राजीव रंजन जनता दल युनाइटेड के कद्दावर नेता हैं और बिहार सरकार में पूर्व जल संसाधन मंत्री रह चुके हैं.

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इस नेता के नाम पर लग सकती है मुहर

दरअसल, बिहार के सातवीं बार मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार फिलहाल पार्टी के प्रदर्शन को लेकर चिंतित हैं. उनकी चिंता का सबसे बड़ा कारण बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू का तीसरे नंबर की पार्टी बनना है. क्योंकि 2010 में जेडीयू राज्य की पहले नंबर की पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन इस एक दशक के दौरान पार्टी का प्रदर्शन काफी गिरा है. यही वजह है कि नीतीश संगठन को मजबूत करने के लिए हर संभव कदम उठा रहे हैं. नीतीश कुमार को इस बात की खबर है कि जेडीयू पर जाति आधारित राजनीति का आरोप पार्टी को कमजोर कर सकता है. ऐसे में वह पार्टी की कमान पूर्व मंत्री राजीव रंजन को सौंप कर विरोधियों की जुबान पर ताला जड़ सकते हैं और साथ ही बिहार की जनता क ो भी मैसेज दे सकते हैं.

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क्यों लगा जाति आधारित राजनीति का आरोप?

दरअसल, लोकसभा चुनाव 2019 में नीतीश कुमार ने इस वजह से मंत्रिमंडल में शामिल होने से इनकार कर दिया था, क्योंकि जेडीयू के एक ही सांसद को म ंत्री बनाया जा रहा था. उस वक्त आरसीपी सिन्हा का नाम मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था और राजीव र ंजन सिंह का पत्ता कट गया था. 2021 मंत्रिमंडल विस्तार में भी आरसीपी सिन्हा को ही जगह दी गई और राजीव एक बार फिर पिछड़ गए. इसको लेकर पार्टी मेें तमाम सवाल खड़े हो गए थे. नीतीश पर आरोप लगा था कि वह अपनी जाति के व्यक्ति का ही मंत्रिमंडल में शामिल करना चाहते थे. इसलिए राजीव रंजन दोनों बार ही मंत्री नहीं बन पाए.