Bihar Election: बिहार विधानसभा चुनाव अब दरवाजे पर दस्तक दे रहा है, बस चुनाव आयोग की ओर से तारीख की घोषणा का इंतजार है. ऐसे में हम आज बात करने जा रहे हैं एक ऐसे महान नेता की, जिनकी पहचान सिर्फ एक राजनेता की नहीं, बल्कि आजादी के सेनानी और समाज सुधारक के रूप में भी रह चुकी है. हम बात कर रहे हैं बिहार के श्रीकृष्ण सिंह की, जिन्होंने पहले प्रधानमंत्री का पद संभाला फिर मुख्यमंत्री की शपथ ली. इन्हें श्री बाबू और बिहार केसरी के नाम से भी जाना जाता है.
प्रधानमंत्री से मुख्यमंत्री बने एकमात्र नेता
साल 1935 में ब्रिटिश संसद की ओर से पारित भारत सरकार अधिनियम के तहत 1937 में बिहार में चुनाव हुए. इस चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला और श्रीकृष्ण सिंह ने बिहार के पहले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली. 1946 में जब कानून में बदलाव हुआ तो प्रधानमंत्री का पद समाप्त कर मुख्यमंत्री पद की शुरुआत हुई. इस तरह श्रीकृष्ण सिंह बिहार के पहले प्रधानमंत्री और पहले मुख्यमंत्री का पद संभालने वाले पहले राजनेता बने.
15 साल तक बिहार की सत्ता में रहे
21 अक्टूबर 1887 को नवादा के खनवा गांव में जन्मे श्रीकृष्ण सिंह ने वकालत छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया और कई बार जेल गए. आजादी के बाद वे 15 वर्षों तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे. उनके शासनकाल में बिहार औद्योगिक विकास के नए शिखर पर पहुंचा. बरौनी रिफाइनरी, सिंदरी खाद कारखाना, हटिया में भारी उद्योग निगम, बोकारो स्टील प्लांट, राजेंद्र पुल, कोसी प्रोजेक्ट और कई विश्वविद्यालयों की स्थापना उनके कार्यकाल की देन है.
दलित उत्थान और समाज सुधार के अग्रदूत
भूमिहार जाति से होने के बावजूद श्रीकृष्ण सिंह ने दलितों के हक में कई क्रांतिकारी कदम उठाए. उन्होंने जमींदारी प्रथा खत्म की, जो उस दौर में बहुत बड़ी सामाजिक क्रांति थी. उन्होंने 700 दलितों के साथ बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर में पूजा कराकर मंदिर प्रवेश दिलाया. यह कदम उस समय ऐतिहासिक माना गया.
सादगी की मिसाल बने श्री बाबू
श्रीकृष्ण सिंह की सादगी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके निधन के समय तिजोरी में केवल 24,500 रुपये थे. इनमें से 20,000 रुपये कांग्रेस पार्टी के लिए, बाकी सहयोगियों और परिजनों की जरूरतों के लिए रखे गए थे. वे हमेशा परिवारवाद से दूर और समाजसेवा के पथ पर अडिग रहे. श्रीकृष्ण सिंह की विरासत आज भी बिहार की राजनीति और समाज में एक प्रेरणा है.
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