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IPL : BCCI को डेक्कन चार्जर्स को देने होंगे 4800 करोड़ रुपये, जानिए क्‍या है पूरा मामला

इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की शुरुआती टीमों में से एक रही डेक्कन चार्जर्स को गलत तरीके से लीग से बर्खास्त करने के एवज में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को 4,800 करोड़ रुपये का हर्जाना चुकाने आदेश दिया गया है.

Updated on: 18 Jul 2020, 07:41 AM

New Delhi:

इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) (IPL) की शुरुआती टीमों में से एक रही डेक्कन चार्जर्स (Deccan Chargers) को गलत तरीके से लीग से बर्खास्त करने के एवज में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) (BCCI) को 4,800 करोड़ रुपये का हर्जाना चुकाने आदेश दिया गया है. बम्बई हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने लंबे समय से चले आ रहे इस विवाद का फैसला शुक्रवार को डेक्कन क्रॉनिकल्स होल्डिंग्स (डीसीएचएल) (DCHL) के पक्ष में सुनाया. बीसीसीआई के एक अधिकारी ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि फैसला पूरी तरह से आश्चर्यजनक है, लेकिन पूरा आदेश देखने के बाद ही इस पर कोई अंतिम निर्णय लिया जाएगा. हालांकि बोर्ड इस आदेश के खिलाफ अपील कर सकती है.

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बीसीसीआई अधिकारी ने कहा, ईमानदारी से कहूं तो यह एक आश्चर्य के रूप में आया है और यह देखना दिलचस्प होगा कि आगे क्या होता है. आर्ब्रिटेटर पर भरोसा किया गया है और कोई आदेश पढ़ने के बाद ही उचित मूल्यांकन कर सकता है. लेकिन आप यह सुनिश्चित मान सकते हैं कि बीसीसीआई इस फैसले के खिलाफ अपील करेगा. मामला 2012 का है, जब बीसीसीआई ने डेक्कन चार्जर्स का अनुबंध खत्म कर दिया था और हैदराबाद की फ्रेंचाइज ने बीसीसीआई के इस फैसले को चुनौती दी थी.

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डेक्कन चार्जर्स ने बम्बई हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और पूरे मामले की जांच के लिए अदालत ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश सीके ठक्कर को इकलौता पंचाट (आर्बिट्रेटर) नियुक्त किया. आईपीएल फ्रेंचाइज समझौते के आधार पर आर्बिट्रेशन की प्रक्रिया शुरू हुई. डीसीएचएल ने 6046 करोड़ रुपये के हर्जाना और ब्याज का दावा किया था. सुनवाई के दौरान बीसीसीआई ने स्पष्ट रूप से इसे समाप्त करने के निर्णय के पीछे पूरा तर्क दिया था और अपना दावा किया था.

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बीसीसीआई ने 2008 में आईपीएल T20 क्रिकेट टूर्नामेंट की रूपरेखा बनाई थी. उस समय डीसीएचएल को डेक्कन चार्जर्स हैदराबाद के लिए सफल बोलीदाता घोषित किया गया था. डेक्कर चार्जर्स और बीसीसीआई के बीच इस बारे में दस साल का करार हुआ. वकील ने बताया कि 11 अगस्त, 2012 को बीसीसीआई ने डीसीएचएल की फ्रेंचाइज रद करने के लिए कारण बताओ नोटिस दिया. नोटिस का जवाब देने के 30 दिन का समय पूरा होने से एक दिन पहले फ्रेंचाइज को रद करने की पुष्टि कर दी गई. इसके बाद डीसीएचएल बंबई उच्च न्यायालय गई. न्यायालय ने सितंबर 2012 को उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश सी के ठक्कर को इस मामले का फैसला करने के लिए एकल मध्यस्थ नियुक्त किया. मध्यस्थ ने शुक्रवार को इस फ्रेंचाइज रद्द करने के फैसले को गैरकानूनी करार देते हुए डीसीएचएल को 630 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति और 4,160 करोड़ रुपये के मुआवजा का भुगतान किये जाने का निर्देश दिया.

(एजेंसी इनपुट)