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टीम इंडिया को विश्‍व विजेता बनाने वाला खिलाड़ी बालकनी से कूदने वाला था, लेकिन....

जब खिलाड़ी खेलता है तो वह रोज नई ऊंचाइयों को छूता है, उसे खूब लाइम लाइट मिलती है, खूब लोग प्‍यार भी देते हैं, लेकिन जब वही खिलाड़ी टीम से बाहर हो जाता है और उसकी ओर किसी का ध्‍यान नहीं जाता तो वह खिलाड़ी डिप्रेशन में चला जाता है.

Updated on: 04 Jun 2020, 01:04 PM

New Delhi:

जब खिलाड़ी खेलता है तो वह रोज नई ऊंचाइयों को छूता है, उसे खूब लाइम लाइट मिलती है, खूब लोग प्‍यार भी देते हैं, लेकिन जब वही खिलाड़ी टीम से बाहर हो जाता है और उसकी ओर किसी का ध्‍यान नहीं जाता तो वह खिलाड़ी डिप्रेशन में चला जाता है और तरह तरह की बातें सोचने लगता है. ऐसा ही कुछ क्रिकेट खिलाड़ियों के साथ भी होता है. हम जिस खिलाड़ी की बात कर रहे हैं, साल 2007 में विश्‍व कप (T20 World Cup 2007) विजेता टीम के मैंबर रहे खिलाड़ी की.  भारत की 2007 T20 विश्व कप विजेता टीम के अहम सदस्य रहे रॉबिन उथप्पा (Robin Uthappa) ने बताया कि अपने कैरियर में वह दो साल तक अवसाद और आत्महत्या के ख्यालों से जूझते रहे, जब क्रिकेट ही एकमात्र वजह थी, जिसने उन्हें ‘बालकनी से कूदने’ से रोका. भारत के लिए 46 वनडे और 13 T20 अंतरराष्ट्रीय मैच खेल चुके रॉबिन उथप्पा को इस साल आईपीएल में राजस्थान रॉयल्स ने तीन करोड़ रूपये में खरीदा था.

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कोरोना वायरस महामारी के कारण आईपीएल स्थगित कर दिया गया है. रॉबिन उथप्पा ने रॉयल राजस्थान फाउंडेशन के लाइव सत्र ‘माइंड, बॉडी एंड सोल’ में कहा, मुझे याद है 2009 से 2011 के बीच यह लगातार हो रहा था और मुझे रोज इसका सामना करना पड़ता था. मैं उस समय क्रिकेट के बारे में सोच भी नहीं रहा था. उन्होंने कहा, मैं सोचता था कि इस दिन कैसे रहूंगा और अगला दिन कैसा होगा, मेरे जीवन में क्या हो रहा है और मैं किस दिशा में आगे जा रहा हूं. क्रिकेट ने इन बातों को मेरे जेहन से निकाला. मैच से इतर दिनों या आफ सीजन में बड़ी दिक्कत होती थी. रॉबिन उथप्पा ने कहा, मैं उन दिनों में इधर उधर बैठकर यही सोचता रहता था कि मैं दौड़कर जाऊं और बालकनी से कूद जाऊं. लेकिन किसी चीज ने मुझे रोके रखा. रॉबिन उथप्पा ने कहा कि इस समय उन्होंने डायरी लिखना शुरू किया. उन्होंने कहा, मैंने एक इंसान के तौर पर खुद को समझने की प्रक्रिया शुरू की. इसके बाद बाहरी मदद ली, ताकि अपने जीवन में बदलाव ला सकूं. इसके बाद वह दौर था जब आस्ट्रेलिया में भारत ए की कप्तानी के बावजूद वह भारतीय टीम में नहीं चुने गए.

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उन्होंने कहा, पता नहीं क्यों, मैं कितनी भी मेहनत कर रहा था, लेकिन रन नहीं बन रहे थे. मैं यह मानने को तैयार नहीं था कि मेरे साथ कोई समस्या है. हम कई बार स्वीकार नहीं करना चाहते कि कोई मानसिक परेशानी है. इसके बाद 2014- 15 रणजी सत्र में रॉबिन उथप्पा ने सर्वाधिक रन बनाए. उन्होंने अभी क्रिकेट को अलविदा नहीं कहा है लेकिन उनका कहना है कि अपने जीवन के बुरे दौर का जिस तरह उन्होंने सामना किया, उन्हें कोई खेद नहीं है. उन्होंने कहा, मुझे अपने नकारात्मक अनुभवों का कोई मलाल नहीं है क्योंकि इससे मुझे सकारात्मकता महसूस करने में मदद मिली. नकारात्मक चीजों का सामना करके ही आप सकारात्मकता में खुश हो सकते हैं.