...जब अहमद पटेल ने नहीं लिया था इंदिरा और राजीव गांधी का ये तोहफा! जानें सब कुछ
वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पार्टी के कोषाध्यक्ष अहमद पटेल को आज तड़के निधन हो गया. 71 साल की उम्र में अहमद पटेल ने आखिरी सांस ली. कांग्रेस नेता महीनेभर पहले कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए थे.
अहमदाबाद:
वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पार्टी के कोषाध्यक्ष अहमद पटेल को आज तड़के निधन हो गया. 71 साल की उम्र में अहमद पटेल ने आखिरी सांस ली. कांग्रेस नेता महीनेभर पहले कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए थे. जिसके बाद वह कई दिनों से गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती थे. अहमद पटेल के निधन की जानकारी उनके बेटे फैसल पटेल ने ट्वीट कर दी है. डूबती कांग्रेस पार्टी के दौर में अहमद पटेल का साथ छोड़कर चला जाना पार्टी के लिए बड़ा झटका है. क्योंकि अहमद पटेल कांग्रेस के लिए संकटमोचन की तरह थे.
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गांधी परिवार के करीबी थे अहमद पटेल
अहमद पटेल कांग्रेस के उन नेताओं में एक थे जो गांधी परिवार के काफी नजदीक रहे. उनकी राजनीतिक जिंदगी की डोर राजीव गांधी-इंदिरा गांधी से होते हुए सोनियां गांधी और राहुल गांधी के दौर तक बंधी रही. हां इस बीच कई मौकों पर यह डोर मजबूत हुई तो कई बार कमजोर भी दिखाई दी. हालांकि हालात कितने भी क्यों न बदले हों, मगर अहमद पटेल ने गांधी परिवार का साथ कभी नहीं छोड़ा.
समय समय पर बने संकटमोचक
समय-समय पर पार्टी नेतृत्व को संकट से निकालने का उनका कौशल जबरदस्त रहा. जब भी कांग्रेस के लिए समस्या पैदा होती है सभी की निगाहें पटेल पर टिक जाती थीं. इसका उदाहरण इसी साल राजस्थान में देखने को मिला था. राजस्थान में कांग्रेस सरकार को बचाने और बागी नेता सचिन पायलट की पार्टी में वापसी सुनिश्चित कर अहमद पटेल ने एक बार फिर इसे साबित करके भी दिखाया था. वह अभी तक कांग्रेस के लिए एक महत्वपूर्ण वातार्कार थे, इसी की बदौलत उन्होंने मध्य प्रदेश में पार्टी के बुरे अनुभव के बाद राजस्थान में गहलोत सरकार को गिराने के भाजपा के प्रयासों को विफल करके साबित किया.
राजस्थान में निभाई थी अहम भू्मिका
कांग्रेस मध्यप्रदेश में सत्ता खोने के छह महीने के भीतर दूसरा राज्य नहीं खोना चाहती थी और इसलिए अपने दिग्गज नेता की बातचीत के कौशल पर भरोसा जताया. सचिन पायलट के मामले में यह कांग्रेस के कोषाध्यक्ष थे, जिन्होंने तत्कालीन राजस्थान के उपमुख्यमंत्री द्वारा बगावत के पहले दिन चार विधायकों की वापसी कराने में कामयाबी हासिल की थी. पटेल ने पार्टी के बागियों के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व किया और राज्य सरकार को बचाने के लिए अशोक गहलोत का समर्थन किया.
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कांग्रेस संगठन में थी अहमद पटेल की पैठ
इतना ही नहीं, अहमद पटेल की साल 2004 और 2014 के बीच कई दलों के साथ गठबंधन में दो बार यूपीए सरकार के सुचारु रूप संचालन में अहम भूमिका रही. पर्दे के पीछे से राजनीति करने वाले और अपनी सूझबूझ की वजह से अहमद पटेल की गिनती कांग्रेस परिवार के विश्वस्त नेताओं में होती थी. कांग्रेस संगठन के अंदर अहमद पटेल की गहरी पैठ थी. 1980 में कांग्रेस की सत्ता में जबरदस्त वापसी के बाद अहमद पटेल को इंदिरा गांधी कैबिनेट का हिस्सा बनाना चाहती थीं. मगर पटेल ने इस तोहफे को लेने से इनकार करते हुए संगठन से अपना मोह जाहिर किया था. राजीव गांधी के समय में भी यही स्थिति देखने को मिली थी. 1984 के चुनाव के बाद कांग्रेस के दोबारा सत्ता में लौटने पर अहमद पटेल को फिर से मंत्री बनने का ऑफर दिया गया था, लेकिन अहमद पटेल ने पहले की तरह इस बार भी संगठन को ही चुना था.
कांग्रेस में कई पदों पर निभाई जिम्मेदारी
कांग्रेस के अंदर भी उन्होंने कई पदों पर रहते हुए अपनी जिम्मेदारी निभाई. तालुका पंचायत के अध्यक्ष पद से राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले अहमद पटेल को 1986 में गुजरात कांग्रेस की कमान सौंपी गई थी. 1977 में उन्हें यूथ कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया. जबकि 1983 में अहमद पटेल ने ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के ज्वॉइंट सेक्रेटरी की जिम्मेदारी संभाली. 1985 में पटेल को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का संसदीय सचिव भी बनाया गया था. 2001 में उन्हें सोनिया गांधी ने अपना राजनीतिक सलाहकार बनाया था.
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राजनीतिक घराने से था ताल्लुक
राजनीतिक घराने से ताल्लुक रखने वाले अहमद पटेल को सियासी बिसात का होनहार माना जाता था. पटेल को राजनीतिक पहचान पारिवारिक विरासत में मिली. अहमद पटेल के पिता भी कांग्रेसी थे. पिता की बनाई राजनीतिक छवि ने अहमद पटेल को सियासत की बुलंदियों में बहुत तेजी से आगे पहुंचाया. पिता के अनुभव और नसीहतों से अहमद पटेल को बहुत कुछ सीखने को मिला. इसे आप अहमद पटेल के राजनीतिक कद को देखकर समझ सकते हैं.
1977 में बने थे सबसे युवा सांसद
अहमद पटेल तीन बार लोकसभा के सदस्य रहे. 5 बार कांग्रेस की ओर से राज्यसभा भेजा गया. अगस्त 2018 में उन्हें कांग्रेस पार्टी का कोषाध्याक्ष बनाया गया था. अहमद पटेल ने 1977 में पहली बार भरूच से लोकसभा का चुनाव लड़ा था. उस वक्त उनकी उम्र महज 26 साल थी. चुनाव में जीत हासिल कर अहमद पटेल सबसे युवा सांसद बने थे. 1980 में अहमद पटेल ने इसी सीट से 82 हजार 844 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी. 1984 में अहमद पटेल ने 1 लाख 23 हजार 69 वोटों से मुकाबला जीता था.
पटेल के परिवार की राजनीति से दूरी
अहमद पटेल का जन्म 21 अगस्त 1949 को गुजरात के भरूच जिले की अंकलेश्वर तहसील के पिरामण गांव में हुआ. वह मोहम्मद इशकजी पटेल और हवाबेन मोहम्मद भाई के घर जन्मे. 1976 में अहमद पटेल ने मेमूना अहमद से शादी की थी. अहमद पटेल के दो बच्चे हैं, जिनमें एक लड़का और एक लड़की है. पटेल का परिवार अभी तक सक्रिय राजनीति से दूर रहा है. एक बेटा या एक बेटी दोनों ही फिलहाल राजनीतिक दुनिया से दूर हैं.
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