क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट? जिसने खत्म किए धार्मिक स्थलों से जुड़े विवाद

पूजास्थल कानून सितंबर 1991 (Places of Worship act 1991) में लागू किया गया. इसमें कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 के बाद जो धार्मिक स्थल जहां पर है, उसे दूसरे धर्म के स्थल में तब्दील नहीं किया जा सकता.

पूजास्थल कानून सितंबर 1991 (Places of Worship act 1991) में लागू किया गया. इसमें कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 के बाद जो धार्मिक स्थल जहां पर है, उसे दूसरे धर्म के स्थल में तब्दील नहीं किया जा सकता.

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Kuldeep Singh
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काशी विश्वनाथ और श्रीकृष्ण जन्मभूमि ( Photo Credit : फाइल फोटो)

अयोध्या मामले का सुप्रीम कोर्ट के फैसला आने और विवाद के हमेशा के लिए खत्म होने के बाद अब मथुरा और काशी को लेकर नए विवाद शुरू हो गए हैं. मथुरा मामले में कोर्ट में एक याचिका दायर की गई जिस पर कोर्ट ने सुनवाई से इनकार कर दिया. आज काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद को सुनवाई होनी है. ऐसे में आपको बार-बार प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न) एक्ट, 1991 के बारे में सुनने को मिलता होगा जिसके कारण धार्मिक स्थलों से जुड़े विवाद हमेशा के लिए खत्म हो गए हैं.

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क्या है प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न) एक्ट, 1991
पूजास्थल कानून सितंबर 1991 में लागू किया गया. इसमें कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 के बाद जो धार्मिक स्थल जहां पर है, उसे दूसरे धर्म के स्थल में तब्दील नहीं किया जा सकता. इसके अलावा, न ही किसी स्मारक का धार्मिक स्थल की तरह रखरखाव किया जा सकता है. हालांकि यह मान्यता प्राप्त प्राचीन स्मारक स्थलों पर लागू नहीं होता. राममंदिर- बाबरी मस्जिद विवाद को भी इस एक्ट के दायरे से बाहर रखा गया है. इसके पीछे कारण यह था कि राममंदिर विवाद उस वक्त कोर्ट पहुंच चुका था, जब यह एक्ट बना.

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अयोध्या से मथुरा कोर्ट तक इस कानून की गूंज
जानकारी के मुताबिक 30 सितंबर को मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान से सटी ईदगाह को हटाने के केस को खारिज करते हुए सिविल जज सीनियर डिविजन कोर्ट ने भी इस कानून का जिक्र किया. कोर्ट का कहना था कि 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत सभी धर्मस्थलों की स्थिति 15 अगस्त 1947 वाली रखी जानी है. इस कानून में सिर्फ अयोध्या मामले को अपवाद रखा गया था.

क्यों बनाना पड़ा यह कानून?
इस कानून को बनाने के पीछे मंशा थी कि देश में धार्मिक स्थलों को लेकर नए विवाद सामने न आए. 1991 में जब बाबरी मस्जिद-रामजन्मभूमि विवाद अपनी ऊंचाई पर था. विश्व हिंदू परिषद और दूसरे हिंदू धार्मिक संगठनों ने नया अजेंडा ले लिया. उनका कहना था कि सिर्फ रामजन्मभूमि ही नहीं, 2 और धार्मिक स्थलों से मस्जिदों को हटाने का काम किया जाएगा. बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद, और मथुरा की शाही ईदगाह. ऐसे माहौल में केंद्र की पीवी नरसिम्हा राव की सरकार हरकत में आई. सितंबर 1991 में एक खास कानून लया गया. इसमें हर धार्मिक स्थल को 15 अगस्त 1947 की स्थिति में ही बनाए रखने की व्यवस्था की गई. इस कानून से अयोध्या मंदिर-मस्जिद विवाद को इसलिए भी अलग रखा गया क्योंकि यह केस लंबे वक्त से कोर्ट में था और दोनों ही पक्षों से बातचीत करके मसले का हल निकालने की भी कोशिशें हो रही थीं.

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इस कानून में क्या सजा का भी प्रावधान है?
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 में आईपीसी की धारा भी जोड़ी गई है. एक्ट के उल्लंघन को अपराध की श्रेणी में रखा गया है. अगर कोई भी इस कानून का उल्लघंन करता है तो उसे तीन साल की सजा निर्धारित की गई है.

Source : Kuldeep Singh

Kashi Vishwanath Temple Krishna Temple in Mathura Places of Worship Act काशी विश्वनाथ मथुरा प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991
      
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