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कांग्रेस बैठक से वेणुगोपाल, सुरजेवाला की गैरमौजूदगी का संदेश...

बाद कांग्रेस की बड़ी बैठकों में एक कॉमन फैक्टर देखने को मिला करता था. इस बैठक में दो ऐसे नेता मौजूद रहते थे जिन्हें 12 तुगलक लेन की आंख और कान माना जाता है.

Updated on: 20 Dec 2020, 03:51 PM

नई दिल्ली:

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के आवास पर इमरजेंसी या क्राइसस बैठक के दौरान राहुल गांधी के करीबी सहयोगी केसी वेणुगोपाल और रणदीप सुरजेवाला मौजूद नहीं रहे. वेणुगोपाल के करीबी सूत्रों ने कहा कि वह अपनी मां के निधन के बाद कुछ धार्मिक रस्म करने के लिए अपने पैतृक स्थान पर हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या राहुल गांधी ने वेणुगोपाल को जानबूझकर बैठक से दूर रखा, वेणुगोपाल का पार्टी में पद बढ़ाए जाने से असंतुष्टि, असहमति बढ़ी है. गौरतलब है कि 23 नेताओं के समूह ने इस साल अगस्त में सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी नेतृत्व में सुधार की मांग की थी जिसके बाद ये बैठक हुई है.

12 तुगलक लेन की आंख-कान
बता दें कि राहुल गांधी ने जिस दिन से कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया है, इसके बाद कांग्रेस की बड़ी बैठकों में एक कॉमन फैक्टर देखने को मिला करता था. इस बैठक में दो ऐसे नेता मौजूद रहते थे जिन्हें 12 तुगलक लेन की आंख और कान माना जाता है. बता दें कि 12 तुगलक लेन राहुल गांधी का आवास है. ऐसे में शनिवार की मीटिंग से गायब रहने वाले ये दो अहम नेता और राहुल गांधी के लेफ्टिनेंट थे कांग्रेस के मीडिया इंचार्ज रणदीप सुरजेवाला और महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल. इन नेताओं की गैरहाजिरी कई कयासों को जन्म दे गई. 

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सुरजेवाला ने अंतर्विरोधों को मामूली कलह बताया
बता दें कि सुरजेवाला मीटिंग से उस वक्त गायब रहे जब मात्र एक दिन पहले ही उन्होंने कांग्रेस की अंतर्कलह को मामूली कहकर टालने की कोशिश की थी. जबकि इस 'मामूली' कलह को सुलझाने के लिए सोनिया को सक्रिय होना पड़ा और उन्होंने मीटिंग बुलाई. शुक्रवार को रणदीप सुरजेवाला ने दावा किया था कि पार्टी में सब कुछ ठीक है और शनिवार की जिस मीटिंग के बारे में इतनी चर्चा की जा रही है वैसी कई बैठकें कांग्रेस अध्यक्ष आने वाले दिनों में करने वाली हैं. सुरजेवाला के इस बयान ने असंतुष्ट नेताओं को और भी भड़का दिया था. 

लगाए जा रहे हैं कयास
जाहिर है राहुल गांधी के आंख-कान की गैरमौजूदगी से शनिवार को कांग्रेस की अंतर्कलह को खत्म करने के लिए हुई कांग्रेस की बैठक की कई समीक्षाएं बताई जा रही है. माना जा रहा है कि इस बैठक में कांग्रेस के असंतुष्टों की बात सोनिया गांधी ने काफी विस्तार से सुनी. कहा जा रहा है कि इस बैठक के बाद राहुल गांधी के एक बार फिर से कांग्रेस अध्यक्ष बनने का रास्ता साफ हो गया है. वरिष्ठ पार्टी नेता पवन बंसल ने कहा भी, 'राहुल गांधी के साथ किसी को कोई समस्या नहीं है और यह सिर्फ आज के लिए नहीं है. हर किसी ने कहा कि हमें राहुल गांधी के नेतृत्व की जरूरत है. हमें अन्य लोगों के जाल में नहीं फंसना चाहिए जो पार्टी के एजेंडे से ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहे हैं.'

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सोनिया ने सुनी असंतुष्ट नेताओं की बात
चर्चा ये है कि इस मीटिंग से इन दो नेताओं की गैरमौजूदगी इस वजह से सुनिश्चित की गई थी क्योंकि पार्टी हाईकमान चाहता था कि असंतुष्ट नेता अपने मन की बात को बिना झिझक, बगैर लाग लपेटकर खुलकर बोलें. इन दो नेताओं की मौजूदगी और राहुल से उनकी निकटता की वजह से इन्हें अपनी बात खुलकर कहने में झिझक हो सकती थी. दूसरे खेमे के सूत्रों ने कहा कि वेणुकोपाल और सुरजेवाला की अनुपस्थिति को एक संदेश के रूप में देखा जा रहा है कि राहुल गांधी वरिष्ठों के साथ काम करना चाहते हैं, इसलिए पंचमढ़ी की तर्ज पर विचार मंथन का सुझाव दिया जा रहा है, लेकिन पार्टी की स्थिति पर अंतिम विचार करने से पहले सोनिया गांधी अधिकांश नेताओं से मिल लीं.

आजाद का तंज ही बैठक का रुख बताने को काफी
हालांकि जैसा कहा जा रहा है वैसा ही सब कुछ नहीं है. शनिवार को जब मीटिंग खत्म होने को थी तो गुलाम नबी आजाद को सुरजेवाला पर तंज कसते हुए सुना गया, 'जब सब कुछ ठीक ही था तो मीटिंग बुलाई ही क्यों गई, और बुलाई भी गई तो ये पांच घंटे तक क्यों चली.' आजाद ने कांग्रेस नेताओं की नई और पुरानी पीढ़ी के बीच पनपी खाई की भी चर्चा की और कहा कि अब पार्टी को एक होने की जरूरत है. असंतुष्ट नेताओं का एक बड़ा धड़ा मानता है कि कुछ नेताओं ने उनकी मंशा पर सवाल खड़े कर उनके दुख को और भी बढ़ा दिया है. इसकी वजह जी-23 की प्रतिष्ठा भी धूमिल हुई है. बता दें कि मीटिंग में प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी पार्टी में आंतरिक संवाद को मजबूत करने पर जोर दिया.