Pakistan में जिहादी कहर... 2022 में भारत की तुलना में 6 गुना अधिक मौतें हुईं आतंकी हमलों में
आतंकवाद का वैश्विक पितामह पाकिस्तान अब खुद उसके चंगुल में फंस चुका है. जहां पिछले दो दशकों में भारत में आतंकी हिंसा में जबर्दस्त कमी आई है, वहीं पाकिस्तान के लिए आतंकी खतरा बढ़ गया है. विशेषकर इसकी उत्तर-पश्चिमी सीमाओं पर सक्रिय TTP जिहादियों से.
highlights
- भारत के खिलाफ पाले गए आतंकवादी संगठन अब पाकिस्तान के लिए ही भस्मासुर बने
- 2022 में ही आतंकी हिंसा में भारत की तुलना में छह गुना अधिक मौतें हुई पाकिस्तान में
- अफगान तालिबान और आईएस प्रेरित और संबद्ध टीटीपी फैला रहा आतंक ही आतंक
नई दिल्ली:
इस्लामाबाद स्थित गैर-सरकारी संगठन सेंटर फॉर रिसर्च एंड सिक्योरिटी स्टडीज (CRSS) द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तान (Pakistan) में 2022 में आतंकवादी और विद्रोही हमलों (Terror Attack) ने 282 सुरक्षा बलों के जवानों की जान ले ली. इसके उलट दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट फॉर कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट (ICM) द्वारा रिपोर्ट किए गए आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल मारे गए 47 भारतीय सुरक्षा कर्मियों की तुलना में पाकिस्तान का यह आंकड़ा छह गुना अधिक है. जहां पिछले दो दशकों में भारत में आतंकवाद (Terrorism) जबर्दस्त रूप से कम हुआ है, वहीं पाकिस्तान के लिए खतरा बढ़ गया है. विशेषकर इसकी उत्तर-पश्चिमी सीमाओं पर सक्रिय तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) जिहादियों से. आईसीएम के निदेशक अजय साहनी कहते हैं, 'पाकिस्तान में हिंसा का स्तर अभी भी 2009 की तुलना में बहुत कम है, जब उत्तर पश्चिम में आतंकवादी समूहों के खिलाफ संघर्ष अपने चरम पर था. हालांकि काबुल में तालिबान (Taliban) के सत्ता में आने के बाद से आतंकी हिंसा में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है.'
पाकिस्तान में आतंकी संघर्ष पर आधिकारिक आंकड़ों की कमी
यहां यह भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि पाकिस्तान में घरेलू मोर्चे पर आतंकी संघर्षों पर बहुत कम आधिकारिक डेटा मौजूद है. इस कड़ी में विश्वसनीय जानकारी प्रदान करने के लिए सीआरएसएस जैसे संगठन कुछ ही हैं. भारत का गृह मंत्रालय अपनी वार्षिक रिपोर्ट में आंतरिक हिंसक संघर्षों पर डेटा जारी करता है. हालांकि पिछले साल की रिपोर्ट अभी तक प्रकाशित नहीं हुई है, फिर भी भारत के लिए ये रिपोर्टें अस्पष्ट हैं. मसलन 2021-22 की रिपोर्ट में माओवादी हिंसा के आंकड़ों को पूरी तरह से छोड़ दिया गया, लेकिन आमतौर पर संख्याएं आईसीएम द्वारा प्रदान किए गए आंकड़ों के करीब ही बैठती हैं. सीआरएसएस और आईसीएम के डेटा में विसंगतियां हैं. पाकिस्तान में पिछले साल 379 सुरक्षा कर्मियों की मौत की संख्या बताई गई है. साहनी कहते हैं, 'आईसीएम अपनी जानकारी पूरी तरह से ओपन-सोर्स डेटा, जैसे अखबारों और डिजिटल मीडिया से इकट्ठा करता है.' सीआरएसएस डेटा स्रोत का खुलासा नहीं करता है.
पाकिस्तान के लिए दिसंबर बना कहर
दोनों देशों के आकार-प्रकार और उनकी आबादी में अंतर को देखते हुए कह सकते हैं कि भारत और पाकिस्तान में हिंसा का तुलनात्मक पैमाना काफी पेचीदा है. फिर भी सीआरएसएस की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में आतंकी हिंसा मुख्यतः खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान प्रांतों में केंद्रित रही. यहां अफगानिस्तान पर काबिज तालिबान और आईएस से प्रेरित और संबद्ध तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) जैसे जिहादी समूहों द्वारा बड़े पैमाने पर आतंकी हिंसा को अंजाम दिया गया. पाकिस्तान के लिए दिसंबर सबसे कहर भरा रहा. सीआरएसएस की रिपोर्ट में कहा गया है कि 28 नवंबर को टीटीपी के साथ संघर्ष विराम की समाप्ति के बाद सिर्फ दिसंबर के महीने में दो दर्जन से अधिक आतंकी हमलों के साथ खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में आतंकवादी हिंसा का एक अभूतपूर्व दौर शुरू हुआ. सीआरएसएस के अनुसार पिछले साल पाकिस्तान में आतंकवाद और उग्रवाद के कारण 311 नागरिकों की मौत हुई थी. आईसीएम आतंकी हमलों में नागरिकों की मौत का आंकड़ा 229 बताता है. देखा जाए तो दोनों ही के आंकड़े भारत में मारे गए 97 लोगों से काफी अधिक हैं. आईसीएम के आंकड़ों के मुताबिक भारत के सबसे अशांत क्षेत्र कश्मीर में पिछले साल आतंकी हिंसा में 30 सुरक्षा बल के जवान और 30 अन्य नागरिक मारे गए.
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ऐतिहासिक रुझान
सीआरएसएस ने दस साल पहले आतंकी हिंसक संघर्ष का डेटा प्रकाशित करना शुरू किया था, लेकिन आईसीएम की इस पर रखी गई निगरानी से पता चलता है कि 2009 में पाकिस्तान में आतंकी हिंसा चरम पर थी. उस समय 1,012 सुरक्षा बल के जवान मारे गए, साथ ही 2,154 नागरिक और 7,884 विद्रोही और आतंकवादी भी खेत रहे. आतंकी हिंसा में आया यह उछाल टीटीपी के अस्तित्व में आने और फिर बढ़ती सक्रियता की देन था. अमेरिकी राजनीतिक वैज्ञानी नेता क्रॉफर्ड ने 2015 की एक रिपोर्ट में लिखा है कि पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में हिंसक संघर्ष के कारण 2001 और 2014 के बीच बड़े पैमाने पर नागरिक विस्थापन और कस्बों के कस्बों का विध्वंस हुआ. सीआरएसएस के अनुसार 2019 में सुरक्षा बलों के 193 और 2020 में 163 जवान मारे गए थे. 2021 में यह आंकड़ा फिर से बढ़कर 270 हो गया. इस्लामाबाद स्थित संघर्ष निगरानी संगठन आतंकी हिंसा में आई तेजी को अफगानिस्तान में तालिबान के दो दशकों बाद सत्ता पर फिर से काबिज होने से जोड़ कर देखता है. अफगान तालिबान की सफलता ने देश के भीतर और बाहर सक्रिय पाकिस्तानी आतंकवादियों के मनोबल को बढ़ाया है. यही नहीं, पाकिस्तान में उग्रवादियों और आतंकवादियों द्वारा मारे गए जवानों और आम लोगों की संख्या भारत की तुलना में लगातार अधिक रही है. आईसीएम के अनुसार भारत में सुरक्षा बल के नुकसान के संबंधित आंकड़े 2019 में 132, 2020 में 106 और 2021 में 104 थे. पाकिस्तान की तुलना में नागरिकों की मृत्यु भी कम थी. यानी आतंकी हिंसा का क्रूर पंजा पाकिस्तान पर हर गुजरते दिन के साथ कसता जा रहा है. दूसरे शब्दों में कहें तो पाकिस्तान ने आतंकवाद को अपनी विदेश नीति बनाया था, जो अब उसके लिए ही भस्मासुर बन चुका है.
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