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Budget 2023 आयकर देने वाले वेतनभोगी वर्ग को निर्मला सीतारमण से यह हैं बड़ी उम्मीदें... जानें

Budget 2023 को लेकर आम लोगों खासकर वेतनभोगी करदाताओं की ऐसी ख्वाहिश है कि सरकार आगामी बजट में आयकर की वार्षिक बुनियादी छूट सीमा को मौजूदा 2.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दे.

Updated on: 12 Jan 2023, 10:47 AM

highlights

  • आमजन खासकर वेतनभोगी वर्ग को आमचुनाव से पहले आ रहे बजट से हैं खास उम्मीदें
  • खासकर नई और पुरानी कर व्यवस्था के तहत आयकर की बुनियादी वार्षिक छूट सीमा बढ़े
  • होम लोन, बाल शिक्षा भत्ता, स्वास्थ्य बीमा भत्ता में भी और राहत मिलने की है सभी की ख्वाहिश

नई दिल्ली:

Budget 2023 आने वाला है और साल 2023 बस अभी-अभी शुरू हुआ है. ऐसे में करदाताओं खासकर आम और वेतनभोगी वर्ग को आयकर (Income Tax) के मोर्चे पर कुछ खुशी मिलने की उम्मीद है. 2024 आम चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) का साल है, ऐसे में इस वर्ग की आने वाले केंद्रीय बजट (Union Budget 2023) से उम्मीदें थोड़ी बढ़ गई हैं. संभावना जताई जा रही है कि सरकार एक ऐसा बजट पेश कर सकती है, जिससे देश के आर्थिक विकास को बढ़ावा तो मिले ही साथ-साथ करदाताओं की उम्मीदें भी पूरी हो सकें. खासकर ऐसे समय में जब देश एक वैश्विक महामारी से उबर रहा है. हालांकि पिछले बजट में मोदी सरकार  (Modi Government) ने नई आयकर व्यवस्था शुरू करने और मानक कटौती में वृद्धि के मामले में वेतनभोगी वर्ग के लिए कुछ बदलाव किए गए थे. इसके बावजूद वेतनभोगी आयकर दाताओं को छूट का लाभ नहीं मिल सका था. ऐसे में आम चुनाव से पहले आ रहे मोदी सरकार-2.0 के आखिरी बजट से उनकी उम्मीदें बढ़ना स्वाभाविक ही हैं. 

बजट 2023 से आयकर मद से जुड़ी शीर्ष 6 उम्मीदें
आम व्यक्ति से लेकर वेतनभोगी वर्ग के करदाताओं को 2023 के बजट से संभावित उम्मीदें कुछ इस प्रकार से हैं...

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  • वेतनभोगी वर्ग समेत आमजन की पहली इच्छा तो यही है कि सरकार आगामी बजट में पुरानी और नई कर व्यवस्था दोनों के तहत आयकर की वार्षिक बुनियादी छूट सीमा को मौजूदा 2.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दे. 60 वर्ष से कम आयु के व्यक्तिगत करदाताओं के लिए पुरानी और नई कर व्यवस्था दोनों के तहत 2.5 लाख रुपये की मौजूदा आयकर वार्षिक बुनियादी छूट सीमा में  वित्त वर्ष 2014-15 से कोई बदलाव नहीं किया गया है. जीवन जीने से जुड़ी जरूरतों को पूरा करने वाली चीजों की कीमतों में वृद्धि, महंगाई, कर रिटर्न दाखिल करने वाले करदाताओं की संख्या, सरकार द्वारा छोड़े गए कर राजस्व आदि जैसे कई कारकों पर विचार करते हुए मोदी सरकार इस सीमा पर फिर से विचार कर सकती है.
  • वित्त वर्ष 2014-15 से आयकर अधिनियम 1961 की धारा 80C के तहत कटौती की सीमा को 1.5 लाख रुपये पर कैप किया गया है. धारा 80 सी के तहत अधिकांश कटौती करदाताओं को सार्वजनिक भविष्य निधि (पीपीएफ), राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) और सावधि जमा जैसे लंबी अवधि की बचत में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करती है, जो देश में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए दीर्घकालिक वित्त पोषण का जरिया बनती है. इसके अलावा करदाता होम लोन चुकाने समेत स्वयं और आश्रितों के लिए बीमा कवर और बच्चों की शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण राशि भी खर्च करते हैं. ऐसे में यह एक लोकप्रिय इच्छा है कि कटौती की सीमा को 1.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 3 लाख रुपये किया जा सकता है.
  • वित्त वर्ष 2018-19 से स्टैंडर्ड डिडक्शन योजना लागू करके टैक्स-फ्री मेडिकल रीइंबर्समेंट और यात्रा भत्ता छूट वापस ले ली गई थी. यह अलग बात है कि तब से आज तक कटौती की मात्रा तो स्थिर बनी हुई है, लेकिन चिकित्सा व्यय और ईंधन की कीमतों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. इस प्रकार इस मद में भी मानक कटौती को 50,000 रुपये की मौजूदा सीमा से बढ़ाकर 1 लाख रुपये करने पर सरकार उदार हृदय दिखा सकती है. इसके अलावा नई वैकल्पिक कर व्यवस्था के तहत कराधान का विकल्प चुनने वाले करदाताओं को मानक कटौती का लाभ प्रदान करने के लिए भी इसका मूल्यांकन किया जा सकता है, क्योंकि ये खर्च किसी भी वेतनभोगी करदाता के लिए जरूरी हैं.
  • वर्तमान में  स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम के लिए कटौती की सीमा 25,000 रुपये है, जिसमें स्वयं, पति/पत्नी और आश्रित बच्चों के लिए प्रिवेंटिव जांच शामिल हैं. इसके अलावा माता-पिता के लिए 50,000 रुपये सीमा है, जिनमें से कम से कम एक का वरिष्ठ नागरिक होना जरूरी है. यह देखते हुए कि विगत सालों में अस्पताल में भर्ती होने की लागत और चिकित्सा व्यय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, ऐसे में इन सीमाओं को क्रमशः 50,000 रुपये और 1 लाख रुपये तक बढ़ाया जा सकता है.
  • बाल शिक्षा भत्ता के तहत वर्तमान में अधिकतम दो बच्चों की शिक्षा और छात्रावास व्यय के लिए क्रमशः 100 रुपये और 300 रुपये प्रति बच्चा प्रति माह की ही छूट प्राप्त है. छूट की ये सीमा करीब दो दशक पहले तय की गई थी इसलिए हाल के दिनों में शिक्षा की लागत में वृद्धि को देखते हुए इन छूट की सीमा को क्रमशः कम से कम 1,000 रुपये और प्रति बच्चे प्रति माह 3,000 रुपये तक बढ़ाया जा सकता है.
  • होम लोन पर ब्याज के लिए कटौती वर्तमान में 2 लाख रुपये है. ब्याज दरों में वृद्धि और आवास पर ब्याज के लिए उपलब्ध कटौती को 2 लाख रुपये तक सीमित किए जाने के साथ होम लोन लेकर घर लेने वालों को गैर-कर कटौती योग्य ब्याज के मामले में एक चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. इसको ध्यान में रखते हुए इस कटौती को 2 लाख रुपये की मौजूदा सीमा से बढ़ाकर 5 लाख रुपये किया जा सकता है. साथ ही नई कर व्यवस्था के तहत स्वयं के मालिकान हक वाली संपत्ति पर होम लोन पर ब्याज छूट की अनुमति नहीं है. यह देखते हुए कि घर खरीदना एक दीर्घकालिक वित्तीय सौदा है, इसका मूल्यांकन नई कर व्यवस्था के तहत भी इस कटौती की सुविधा वेतनभोगी वर्ग को दी जा सकती है.

एक तरफ उपरोक्त सभी प्रस्ताव आमजन या वेतनभोगी करदाताओं के दृष्टिकोण से आकर्षक हो सकते हैं, दूसरी तरफ प्रत्यक्ष कर संग्रह पर पड़ने वाले इसके प्रभाव का सावधानीपूर्वक अध्ययन और मूल्यांकन करने की आवश्यकता होगी. इसके बाद ही मोदी सरकार इसे लागू कर सकती है.