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Rafale सौदे पर घिरी मोदी सरकार, CAG रिपोर्ट में ऑफसेट पर सवाल

CAG ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 4.5 पीढ़ी के राफेल विमान देने वाली दसॉल्ट एविएशन कंपनी और यूरोपीय हथियार निर्माता कंपनी एमबीडीए अपने ऑफसेट वादे पर खरा उतर कर नहीं दे रही है.

Updated on: 24 Sep 2020, 10:19 AM

नई दिल्ली:

2019 लोकसभा चुनाव (Loksabha Elections 2019) में राफेल विवाद का मुद्दा भी छाया रहा. तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने 'चौकीदार चोर है' का नारा बुलंद कर राफेल का महंगा सौदा करने समेत ऑफसेट में धांधली का आरोप लगाया. यह अलग बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार (Modi Government) को इस मसले पर राहत दे दी. हालांकि अब फिर से राफेल (Rafale) लड़ाकू विमान सौदा चर्चा में आ गया है. इस बार सबब बनी है नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट. कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 4.5 पीढ़ी के राफेल विमान देने वाली दसॉल्ट एविएशन कंपनी और यूरोपीय हथियार निर्माता कंपनी एमबीडीए अपने ऑफसेट वादे पर खरा उतर कर नहीं दे रही है. इस कंपनी के बनाए उपकरणों का इस्तेमाल राफेल विमानों में किया गया है.

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30 फीसदी ऑफसेट का वादा
संसद में बुधवार को पेश कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत बड़े पैमाने पर विदेशों से हथियारों की खरीद करता है. रक्षा खरीद नीति के तहत 30 फीसदी ऑफसेट प्रावधान लागू किए गए हैं. इसके तहत विदेशी कंपनी को 30 फीसदी रकम भारत में निवेश करनी होती है. इसके साथ ही घरेलू स्तर पर तकनीक की मदद से संबंधित क्षेत्र में विकास करना होता है. राफेल के सौदे की ऑफसेट नीति के तहत दसॉल्ट एविएशन ने सौदे में ऑफसेट वादे पर डीआरडीओ को उच्च तकनीक देने का प्रस्ताव देने को कहा था.

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कावेरी इंजन के विकास में लगानी थी तकनीक
कैग रिपोर्ट के दसॉल्ट एविएशन ने विमानों की सौदे के वक्त 30 फीसदी ऑफसेट प्रावधान के बदले डीआरडीओ को उच्च तकनीक देने का प्रस्ताव किया था. डीआरडीओ को यह तकनीक अपने हल्के लड़ाकू विमान के इंजन कावेरी के विकास के लिए चाहिए थी, लेकिन दसॉल्ट एविएशन ने आज तक अपना वादा पूरा नहीं किया. कैग ने कहा कि हथियार बेचने वाली कंपनियां कांट्रेक्ट पाने के लिए तो ऑफसेट का वादा करती हैं लेकिन बाद में उसे पूरा नहीं करती हैं. इसके चलते ऑफसेट नीति बेमानी हो रही है. इसी सिलिसले में राफेल विमानों की खरीद का भी जिक्र किया गया है, जिसमें 2016 में राफेल के ऑफसेट प्रस्ताव का हवाला दिया गया है.

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एक-तिहाई ऑफसेट कांट्रेक्ट ही हुए पूरे
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2005-2018 के बीच रक्षा सौदों में कुल 46 ऑफसेट कांट्रेक्ट किए गए जिनका कुल मूल्य 66427 करोड़ रुपये था, लेकिन दिसंबर 2018 तक इनमें से 19223 करोड़ के ऑफसेट कांट्रेक्ट ही पूरे हुए. हालांकि रक्षा मंत्रालय ने इसमें भी 11396 करोड़ के क्लेम ही उपयुक्त पाए, बाकी खारिज कर दिए गए. रिपोर्ट में कहा गया है कि 55 हजार करोड़ के ऑफसेट कांट्रेक्ट अभी नहीं हुए हैं. तय नियमों के तहत इन्हें 2024 तक पूरा किया जाना है.

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ऑफसेट प्रावधान ऐसे होते हैं पूरे
ऑफसेट प्रावधानों को कई तरीके से पूरा किया जा सकता है. जैसे देश में रक्षा क्षेत्र में निवेश के जरिये, निशुल्क तकनीक देकर तथा भारतीय कंपनियों से उत्पाद बनाकर. इस क्रम में सीएजी ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में पाया है कि यह नीति अपने लक्ष्यों को हासिल नहीं कर पा रही है. सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि खरीद नीति में सालाना आधार पर ऑफसेट कांट्रेक्ट को पूरा करने का प्रावधान नहीं किया गया है. पुराने मामलों के विश्लेषण से पता चलता है कि आखिर के दो सालों में ही ज्यादातर कांट्रेक्ट पूरे किए जाते हैं.