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केशुभाई ने गुजरात में बीजेपी को जमाया, फिर छोड़ी पार्टी

केशुभाई मुश्किल से 07 महीने ही सीएम रह पाए थे. उन्हें सात महीने बाद ही सुरेश मेहता को बागडोर सौंपनी पड़ी था. दरअसल, केशुभाई के खिलाफ बीजेपी के ही शंकरसिंह बाघेला गुट ने विद्रोह कर दिया था.

Updated on: 29 Oct 2020, 03:00 PM

अहमदाबाद:

गुजरात में भारतीय जनता पार्टी की जड़ें जमाने वाले पूर्व सीएम केशुभाई पटेल का एक वक्त में का सितारा सूबे की सियासत में बुंलद था. वह  गुजरात में बीजेपी के पहले सीएम बने थे. एक जमाना था कि राज्य में बगैर उनकी मर्जी से बीजेपी में कोई काम नहीं होता था. उन्हें सियासत में कुछ लोग गुजराज में बीजेपी का लौहपुरुष भी मानते थे, किन्तु एक वक्त के बाद उनका सियासी सितारा ऐसा ढला कि फिर हाशिए पर चले गए.

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दरअसल, बात साल 1995 की है जब बीजेपी ने गुजरात में पहली बार सरकार बनाई और केशुभाई सीएम बने थे. इससे पहले सूबे में कांग्रेस की ही सरकार बनती आ रही थी. बस दो-एक बार जनता पार्टी या जनता मोर्चा ने वहां सरकार बनाई थी. भारी भरकम पर्सनालिटी वाले केशुभाई की जहां राज्य के असरदार पटेलों में जबरदस्त पकड़ थी, वहीं उन्हें मजबूत संगठनकर्ता और जनता के बीच लोकप्रिय नेता माना जा रहा था.

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केशुभाई मुश्किल से 07 महीने ही सीएम रह पाए थे. उन्हें सात महीने बाद ही सुरेश मेहता को बागडोर सौंपनी पड़ी था. दरअसल, केशुभाई के खिलाफ बीजेपी के ही शंकरसिंह बाघेला गुट ने विद्रोह कर दिया था. 1998 के विधानसभा चुनाव में केशुभाई पटेल की अगुवाई में बीजेपी फिर सरकार में लौटी. उन्होंने दोबारा 4 मार्च 1998 को गुजरात के सीएम पद की शपथ ली थी. 2 अक्टूबर 2001 को केशुभाई पटेल ने अपने ख़राब सेहत की वजह से सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. तब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे.

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केशुभाई पटेल बीजेपी के स्थापना के शुरुआती सदस्यों में से एक थे. उनकी जड़ें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में काफी मजबूत थी. वह साल 1945 में ही आरएसएस से जुड़ गए थे. केशुभाई ने संघ के लिए जमीनी स्तर पर बहुत काम किया. वहीं, जब देश में साल 1975 में आपातकाल लगा तो वो जेल भी गए थे. साल 1960 में जब जनसंघ की स्थापना हुई तो वो उसके संस्थापक सदस्यों में थे.1975 में जब पहली बार कांग्रेस को राज्य की सत्ता से बाहर होना पड़ा, तब वो उस जनता मोर्चा में शामिल थे, जिसने तब सरकार बनाई थी. ये मोर्चा जनसंघ और कांग्रेस (ओ) ने मिलकर बनाया था.