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2017 में गणतंत्र दिवस समारोह में किया गया था पहली बार प्रदर्शित.( Photo Credit : न्यूज नेशन)
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2017 में गणतंत्र दिवस समारोह में किया गया था पहली बार प्रदर्शित.( Photo Credit : न्यूज नेशन)
मोदी सरकार (Modi Government) ने रक्षा खरीद नीति में आमूल-चूल बदलाव करते हुए ‘बाय-ग्लोबल’ की श्रेणी समाप्त करने का फैसला किया है. इसी श्रेणी के तहत विदेश में बने रक्षा से जुड़े साजो-सामान का आयात होता है. इसके बजाय मेक इन इंडिया के तहत तमाम रक्षा उपकरणों का भारत में ही निर्माण किया जाएगा. इस कड़ी में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने एक और कदम बढ़ा भी दिया है. डीआरडीओ ने भारत में 155 मिमी/52 कैल एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम (ATAGS) का सफल परीक्षण किया है. इस परीक्षण को 26 अप्रैल से 2 मई के बीच पोखरण फील्ड फायरिंग रेंज में अंजाम दिया गया है.
बोफोर्स होवित्जर का स्थान ले सकता है टोड
भारतीय थल सेना के स्वदेशी आधुनिकीकरण के लिहाज से यह एक महत्वपूर्ण कदम है. वास्तव में आधुनिक सुविधाओं से लैस हथियार भारतीय सेना की ताकत दुगनी कर रहे हैं. इसी कड़ी में स्वदेशी टोड आर्टिलरी गन सिस्टम डीआरडीओ के मिशन मोड की एक बड़ी उपलब्धि है. डीआरडीओ के इस मिशन को दो अन्य कंपनियां टाटा फोर्ज और टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड की दो फर्मों ने निर्मित किया गया है. माना जा रहा है कि आधुनिक सुविधाओं से लैस बंदूक भारतीय सेना के टावर होवित्जर बेड़े का मुख्य आधार होगी, जिसका इस्तेमाल बोफोर्स होवित्जर को बदलने के लिए भी हो सकता है.
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रक्षा उपकरणों का 68 फीसद स्वदेशीकरण
इसके सफल परीक्षण के साथ ही मोदी सरकार ने स्वदेशी उपकरणों की दिशा में एक कदम और बढ़ा दिया है. सूत्रों के हवाले से दावा किया गया है कि भारत में रक्षा उपकरणों का 68 फीसदी तक स्वदेशीकरण हो चुका है. वहीं नौसेना अपनी 95 फीसदी जरूरतें देश में ही पूरी कर रही है. भारतीय वायुसेना भी लड़ाकू विमानों, हेलीकॉप्टर, परिवहन विमान और ड्रोन का देश में ही उत्पादन किए जाने के पक्ष में है. भारतीय रक्षा प्रतिष्ठान विदेश से सीधे होने वाले रक्षा सौदों की समीक्षा कर रहा है. इनमें से 65 हजार करोड़ रुपए की रक्षा खरीदारी के संभावित प्रस्ताव रोक लिए गए हैं. 30 हजार करोड़ रुपए के कुछ अन्य रक्षा सौदों को भी फिलहाल होल्ड कर दिया गया है.
सैन्य उपकरणों में आत्मनिर्भरता की ओर भारत
रक्षा सौदों के लिए नियमों में नए और ऐतिहासिक बदलाव के बाद रक्षा बजट का पूरा कैपिटल आवंटन भारत में ही खर्च होगा. भारत में रक्षा सुविधाएं स्थापित करने की इच्छुक विदेशी कंपनियों और उनसे साझेदारी करने वाली भारतीय कंपनियों के लिए ‘लेवल प्लेइंग फील्ड’ की व्यवस्था होगी. इसके साथ ही भारतीय कंपनियों की साझेदारी में बने रक्षा से जुड़े साजो-सामान के दूसरे देशों को निर्यात की शर्तों में उदारता लाई जाएगी. हालांकि, कुछ ऐसे देशों की निगेटिव लिस्ट रखी जाएगी, जिनको देश में बना रक्षा उत्पाद निर्यात नहीं किया जा सकता. इसके अलावा उत्पादों की टेस्टिंग और सर्टिफिकेशन के लिए स्वतंत्र निकाय की व्यवस्था होगी.
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रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद नए अंतरराष्ट्रीय समीकरण
बताया जा रहा है कि दो महीने से ज्यादा समय से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद भारत सरकार ने अपने इस फैसले को लिए जाने में तेजी दिखाई है. क्योंकि रूस से रक्षा सौदे को लेकर कई बड़े देश लगातार भारत से रिश्ते को लेकर अपनी मंशा जाहिर करते रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय संबंधों में विदेशी धरती पर बने सैन्य उपकरणों पर निर्भरता के कारण देश के कूटनीतिक विकल्प सीमित होने का अंदेशा रहता है. दूसरी ओर दुनिया की बड़ी सामरिक ताकतें अपने यहां बने हथियारों का ही इस्तेमाल करती हैं. रूस में भी बाहरी देश में बने हथियारों के इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक है. इसलिए भारत-रूस के संयुक्त उपक्रम के तहत बनी ब्रह्मोस मिसाइल को रूस की सेना में शामिल नहीं किया गया है.
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