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बिहार स्पेशल : आखिर भाजपा ने नीतीश कुमार को रोकने की कोशिश क्यों नहीं की?

Bihar Political Crisis : 2013 की तरह 2022 में भी एक बार फिर से नीतीश कुमार ने भाजपा का साथ छोड़ कर अपने धुर विरोधी लालू यादव का दामन थाम लिया है, लेकिन 2013 और 2022 में एक बड़ा अंतर है, जिसे समझने की जरूरत है.

Updated on: 10 Aug 2022, 07:12 AM

नई दिल्ली:

Bihar Political Crisis : 2013 की तरह 2022 में भी एक बार फिर से नीतीश कुमार ने भाजपा का साथ छोड़ कर अपने धुर विरोधी लालू यादव का दामन थाम लिया है, लेकिन 2013 और 2022 में एक बड़ा अंतर है, जिसे समझने की जरूरत है. दरअसल, 2013 और 2022 का यह अंतर अपने आप में यह बताने के लिए काफी है कि नीतीश कुमार की अहमियत बिहार की राजनीति में क्या और कितनी रह गई है? 2013 में नरेंद्र मोदी के विरोध के नाम पर नीतीश कुमार ने एक झटके में भाजपा का साथ छोड़ दिया था, लेकिन उस समय उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की बजाय तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी सहित भाजपा कोटे के सभी मंत्रियों को अपनी सरकार से बर्खास्त कर दिया था. उस समय भाजपा की तरफ से यह कहा गया था कि नीतीश कुमार ने जल्दबाजी में गठबंधन छोड़ने का फैसला किया.

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लेकिन, इस बार तो सब कुछ-कुछ साफ-साफ नजर आ रहा था. नीतीश कुमार क्या करने जा रहे हैं इसका अंदाजा राजनीतिक हल्कों में लंबे समय से लगाया जा रहा था. भाजपा के नेताओं को भी इस बात की जानकारी थी कि नीतीश कुमार उनका साथ छोड़ने वाले हैं, लेकिन सबसे दिलचस्प और आश्चर्यजनक बात तो यह रही कि सटीक जानकारी होने के बावजूद भाजपा ने इस बार अपनी तरफ से नीतीश कुमार को मनाने की कोई कोशिश नहीं की.

यहां तक कि सोमवार को जब जेडीयू खेमे की तरफ से सूत्रों के हवाले से यह खबर चलवाने की कोशिश की गई कि भाजपा के एक बड़े नेता ने नीतीश कुमार से बात की है तो भाजपा के हवाले से तुंरत इसका खंडन भी कर दिया गया.

दरअसल, इस बार भाजपा ने कई वजहों से नीतीश कुमार को मनाने की कोशिश नहीं की, क्योंकि उन्हें यह लग गया कि नीतीश कुमार अब राष्ट्रीय राजनीति में अपनी भूमिका बढ़ाने का मन बना चुके हैं और इसके लिए इन्हें बिहार में लालू यादव और दिल्ली में कांग्रेस की मदद की जरूरत पड़ेगी ही. सबसे बड़ी बात यह है कि भाजपा को यह लग रहा है कि नीतीश कुमार की लोकप्रियता बिहार में तेजी से कम हुई है.

बिहार भाजपा के एक बड़े नेता ने बताया कि 2020 के विधानसभा चुनाव के नतीजों से ही यह साबित हो गया था कि नीतीश कुमार की पकड़ बिहार के मतदाताओं पर ढ़ीली पड़ गई है और जनता को अब सिर्फ भाजपा से ही उम्मीद नजर आ रही है. भाजपा के एक नेता ने तो यहां तक कहा कि अपनी महत्वाकांक्षाओं, स्वार्थ और जिद के कारण नीतीश कुमार बिहार के हितों को नुकसान पहुंचा रहे थे.

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भविष्य की संभावनाओं और नीतीश की जिद को देखते हुए भाजपा नेताओं ने नीतीश कुमार को मनाने, एनडीए गठबंधन में बनाए रखने और सरकार बचाने की कोई कोशिश अपनी तरफ से नहीं की, लेकिन केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे और बिहार भाजपा प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल सहित पार्टी के अन्य नेताओं की तरफ से आ रहे बयानों से यह साफ जाहिर हो रहा है कि भाजपा नीतीश कुमार के इस धोखे को भुनाने के लिए बड़े स्तर पर रणनीति के तहत बिहार में अभियान चलाने जा रही है.