तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान गुस्से हैं. दिनों दिन उनका रोष बढ़ रहा है. पिछले 6 दिन से हजारों की संख्या में किसान दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर डटे हुए हैं. इन कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे किसानों के समर्थन में पंजाब के सिंगर से लेकर हरियाणा की खापें भी उतर आई हैं. कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल भी किसानों का समर्थन करते हुए केंद्र की मोदी सरकार पर हमलावर हैं. इन कानूनों के बारे में किसानों को आशंका है कि इससे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) समाप्त हो जाएगा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में कितने किसान एनएसपी का इस्तेमाल करेंगे. चलिए, हम आपको बताते हैं, एक अनुमान के मुताबिक, देशभर में महज 6 फीसदी किसानों को एमएसपी मिलता है. तो फिर से इसका विरोध क्यों हो रहा है, इसकी वजह भी हम बताते हैं. लेकिन उससे पहले न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के बारे में समझ लीजिए.
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क्या है एमएसपी और कैसी होता है तय?
एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य वह न्यूनतम मूल्य होता है, जिस पर सरकार किसानों द्वारा बेची गई फसल की पूरी मात्रा खरीद करने के लिए तैयार रहती है. एमएसपी की व्यवस्था किसानों के हितों की रक्षा करने के लिए लागू की गई. इसे सरल भाषा में ऐसे समझिए कि अगर फसलों की कीमत बाजार के हिसाब से गिर भी जाए, तब भी सरकार तय एमएसपी पर ही किसानों से फसल खरीदती है, जिससे अन्नदाता को नुकसान न हो. देशभर में किसी फसल की एमएसपी एक होती है. भारत सरकार के कृषि मंत्रालय की ओर से कृषि लागत और मूल्य आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर एमएसपी को तय किया जाता है.
कितने किसानों को मिलता है एमएसपी?
एमएसपी के तहत फिलहाल 23 फसलों की खरीद हो रही है, जिनमें गेहूं, धान, ज्वार, कपास, बाजरा, मक्का, मूंग, मूंगफली, सोयाबीन और तिल जैसी फसलें हैं. एक अनुमान के मुताबिक, देश में महज 6 फीसदी किसान ही एमएसपी लाभ लेते हैं. इन किसानों में सबसे ज्यादा हरियाणा और पंजाब किसान हैं. यही वजह है कि हरियाणा और पंजाब के किसान कृषि कानूनों के खिलाफ सबसे ज्यादा विरोध कर रहे हैं.
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किसानों को क्या है डर?
एमएसपी को लेकर कृषि कानूनों के विरोध की वजह क्या है, वो भी हम आपको बताते हैं. दरअसल, किसानों का मामना है कि इन तीनों कृषि कानूनों से एमएसपी खत्म हो जाएगी. उन्हें यह आशंका भी है कि वे इन कानूनों से निजी कंपनियों के चंगुल में फंस जाएंगे. पंजाब के एक किसान रणवीर सिंह कहना है, 'मैंने एपीएमसी (कृषि उपज बाजार समिति) मंडी में लगभग 125 क्विंटल खरीफ धान बेचा है और अपने बैंक खाते में एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) का भुगतान प्राप्त किया है, लेकिन क्या गारंटी है कि अगर मंडियों के बाहर इस तरह के व्यापार की अनुमति रही तो यह (एमएसपी की व्यवस्था) जारी रहेगी. यह हमारी चिंता है.'
एमएसपी पर सरकार का पक्ष
नए कृषि कानूनों को लेकर सरकार कह रही है कि इनसे किसानों को कई अधिकार मिले हैं, जिससे उन्हें आने वाले वक्त में लाभ मिलेगा. सरकार की ओर से कई बार कहा जा चुका है कि इन नए कानूनों से एमएसपी खत्म नहीं होगी. यहां तक की खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एमएसपी की व्यवस्था पहले की तरह जारी रहने की बात कह चुके हैं. सितंबर महीने में पीएम मोदी ने ट्वीट के जरिए कहा था, 'मैं पहले भी कहा चुका हूं और एक बार फिर कहता हूं कि MSP की व्यवस्था जारी रहेगी, सरकारी खरीद जारी रहेगी. हम यहां अपने किसानों की सेवा के लिए हैं. हम अन्नदाताओं की सहायता के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे और उनकी आने वाली पीढ़ियों के लिए बेहतर जीवन सुनिश्चित करेंगे.'
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उन्होंने एक अन्य ट्वीट में कहा था, 'MSP तो घोषित होता था, लेकिन MSP पर खरीद बहुत कम की जाती थी. सालों तक MSP को लेकर छल किया गया. किसानों के नाम पर बड़े-बड़े कर्जमाफी के पैकेज घोषित किए जाते थे. लेकिन छोटे और सीमांत किसानों तक ये पहुंचते ही नहीं थे. यानि कर्जमाफी को लेकर भी छल किया गया.'
तो फिर विवाद कहां?
किसानों आने वाले समय में न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था समाप्त होने की चिंता सता रही है. तो सरकार ऐसी आशंकाओं से इनकार कर रही है. सरकार कह रही है कि एमएसपी की व्यवस्था जारी है. तो फिर विवाद कहां, इस बारे में भी आपको बताते हैं. दरअसल, सरकार सिर्फ यह बातें मौखिक रूप से कह रही है. जबकि नए कानूनों से एमएसपी खत्म नहीं होगा, इस पर सरकार लिखकर देने को तैयार नहीं है. सरकार की ओर से दलील दी जा रही है कि पहले के कानूनों में भी ये बात लिखित में नहीं थी. बस यही वजह है, जिससे किसान नाखुश हैं, जो एमएसपी पर उनकी आशंकाओं को बढ़ा रही है.