पुतिन से मुलाकात कर शी जिनपिंग साधेंगे एक तीर से कई निशाने
यूक्रेन पर हमले से पहले इसके पहले बीजिंग में जनवरी में दोनों के बीच बातचीत हुई थी. इस मुलाकात के बाद साझे बयान में दोनों ने परस्पर संबंधों को 'सीमाओं से परे' करार दिया था.
highlights
- उजबेकिस्तान के समरकंद में हो सकती है पुतिन-जिनपिंग की मुलाकात
- पुतिन से मुलाकात कर अपनी राष्ट्रवादी छवि को और धार देंगे जिनपिंग
- कोविड-19 महामारी के बाद शी जिनपिंग की यह पहली विदेश यात्रा होगी
बीजिंग:
कोविड 19 महामारी शुरू होने के बाद चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग पहली बार विदेश यात्रा पर इस महीने उजबेकिस्तान (Uzbekistan) जा रहे हैं. इस दौरान वह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) से भी मुलाकात करेंगे. 69 वर्षीय शी जिनपिंग (Xi Jinping) वीडियो लिंक के जरिये अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस में हिस्सा ले सकते थे. हालांकि अंतरराष्ट्रीय राजनीति और व्यापार के लिहाज से शी जिनपिंग ने विदेश दौरा करना अधिक बेहतर समझा. ब्रितानी सत्ता से बीजिंग को हांगकांग के हस्तांतरण की 25वीं वर्षगांठ पर अपने संबोधन के लिए 1 जुलाई को शी जिनपिंग महज एक दिन के लिए चीन से बाहर गए थे. 2019 में लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों के बाद शी जिनपिंग ने नागरिक अधिकारों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते कई कदम उठाए. इसके तहत विपक्षी सुरों को या तो कैद किया जा रहा है, निर्वासन में रहने मजबूर किया जा रहा है या डरा-धमका कर चुप कराया जा रहा है.
पुतिन से हो सकती है मुलाकात
शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के उजबेकिस्तान में हो रहे शिखर सम्मेलन में व्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंग की मुलाकात हो सकती है. यूक्रेन पर हमले से पहले इसके पहले बीजिंग में जनवरी में दोनों के बीच बातचीत हुई थी. इस मुलाकात के बाद साझे बयान में दोनों ने परस्पर संबंधों को 'सीमाओं से परे' करार दिया था. उसके बाद से यूक्रन पर रूसी हमले की न तो बीजिंग ने निंदा की और न ही किसी तरह की कोई टिप्पणी. यद्यपि मॉस्को के खिलाफ लगाए गए प्रतिबंधों की निंदा करते हुए स्थिति हाथ से निकलने के लिए वॉशिंगटन और नाटो देशों को जिम्मेदार जरूर ठहराया.
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राजनीतिक स्तर पर बेहद शक्तिशाली नेता
कम्युनिस्ट पार्टी के नेता और चीनी राष्ट्रपति पद के लिए लगातार तीसरी बार चुने जाने की प्रबल संभावनाओं के बीच शी जिनपिंग राजनीतिक कैरियर के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं. माओत्से तुंग की एकतरफा तानाशाही के दौर के बाद शी जिनपिंग पहले कम्युनिस्ट नेता बन कर उभरे हैं, जो राष्ट्रपति पद पर लगातार तीसरी बार विराजमान होंगे. इसके लिए कम्युनिस्ट पार्टी के बेहद शक्तिशाली पोलित ब्यूरो के संविधान में भी फेरबदल किया गया. इसके पहले महज दो बार लगातार राष्ट्रपति बना जा सकता था. जाहिर है पार्टी में शी जिनपिंग के नेतृत्व को कोई परोक्ष-अपरोक्ष खतरा नहीं है. किसी भी तरह के विरोध को दबाकर शी जिनपिंग ने राजनीति, सूचनाओं औऱ मीडिया पर पूर्ण आधिपत्य स्थापित कर रखा है. भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े और व्यापक अभियान के जरिये शी जिनपिंग ने राजनीतिक विरोधियों को किनारे लगा दिया है. यदा-कदा मतभेद जरूर सामने आ जाते हैं अन्यथा किसी तरह का कहीं कोई विरोध नहीं है. हालांकि सत्ता पर एकाधिकार शक्ति स्थापित करने वाले शी जिनपिंग के लिए कई अन्य मोर्चों पर स्थितियां सहज नहीं हैं. अर्थव्यवस्था में सुस्ती आ रही है. कोरोना कहर के खिलाफ जीरो कोविड नीति अपना कड़े लॉकडाउन वाले प्रतिबंध, क्वारंटीन नियमों, कोविड-19 परीक्षणों का असर समाज और अर्थव्यवस्था पर पड़ा है.
बिगड़ते अंतरराष्ट्रीय संबंध
घरेलू मोर्चे पर जहां शी जिनपिंग बेहद शक्तिशाली हुए हैं, वहीं चीन के मानवाधिकार रिकॉर्ड, आक्रामक कूटनीति, दक्षिण चीन सागर में अपना दावा करना और ताइवान पर आक्रमण की धमकी से अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और अधिकांश यूरोपीय देशों से ड्रैगन के संबंध अच्छे नहीं रह गए हैं. इन सब कारणों से भी शी जिनपिंग विदेश दौरों से सकुचाते रहे. कोरोना महामारी के बाद यात्रा से जुड़ी चिंताओं की वजह से भी शी जिनपिंग अन्य देशों के दौरों और अंतरराष्ट्रीय बैठकों में हिस्सा लेने से परहेज करते रहे.
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अमेरिका-नाटो देशों का विकल्प बन रहा एससीओ
आठ सदस्यीय शंघाई सहयोग संगठन में ज्यादातर पूर्व सोवियत संघ शासित मध्य एशियाई देशों समेत भारत और पाकिस्तान भी शामिल हैं. शंघाई सहयोग संगठन पर चीन और रूस का ही गहरा प्रभाव है. इसके जरिये चीन ने मॉस्को का गलियारा करार दिए देशों में भी अपना प्रभाव बढ़ाने में सफलता हासिल की है. बीजिंग इस संगठन के बलबूते सदस्य देशों के साथ सैन्य अभ्यास कर अपनी सशस्त्र सेना की नुमाइश भी करता रहता है. इसके अतिरिक्त चीन इस गठबंधन को एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका नॉटो साझेदारी का विकल्प मान कर चल रहा है.
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बदलते समीकरण और जिनपिंग की छवि
अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज की वापसी और यूक्रेन पर रूस के हमले ने क्षेत्रीय समीकरणों को बदल कर रख दिया है. रूस के यूक्रेन पर हमले की एससीओ देशों ने ठंडी प्रतिक्रिया ही दी. ऐसे में जब व्यापार, टेक्नोलॉजी, ताइवान और अन्य मसलों पर अमेरिका से संबंधों में तनाव बढ़ रहा है, तो शी जिनपिंग को लग रहा है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात घरेलू मोर्चे पर उनकी छवि मजबूत करने वाली साबित होगी. इस मुलाकात से जिनपिंग अपनी राष्ट्रवादी छवि को और धार दे सकेंगे, जो रूस के खिलाफ खड़े होने के पश्चिमी देशों के दबाव के बावजूद अपने पक्ष पर कायम रहा. पार्टी कांग्रेस के ऐन पहले हो रहे इस विदेश दौरे से शी जिनपिंग यह भी दर्शाने में सफल रहेंगे कि उन्हें 96 मिलियन पार्टी सदस्यों को समर्थन यूं ही नहीं हासिल है. पोलित ब्यूरो के आधा दर्जन महासचिवों, पार्टी की सैन्य इकाई पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सक्षम सर्वेसर्वा के रूप में शी जिनपिंग हर लिहाज से सशक्त नेता हैं. गौरतलब है कि कम्युनिस्ट पार्टी का कामकाज रहस्यों के आवरण में ही रहता है. खासकर उसके नेताओं के विदेश दौरे की तारीख ऐन मौके तक सार्वजनिक नहीं की जाती है. यही गोपनीयता दौरे से वापसी के दौरान भी बरती जाती है.
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यहां भी हो सकते हैं जिनपिंग शामिल
बीजिंग में रूसी राजदूत एंद्रई डेनिसोव के मुताबिक व्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंग की मुलाकात 15-16 सितंबर को उजबेकिस्तान के समरकंद में प्रस्तावित है. विश्व की दूसरी सबसे सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सेलफोन-डिशवॉशर सरीखे उत्पादों के लिए मजबूत आपूर्ति श्रंखला वाला देश चीन नवंबर के मध्य में इंडोनेशिया में 20 अग्रणी और विकासशील देशों की जी-20 बैठक में शामिल होंगे. इससे इतर चीन ने थाईलैंड को भी सूचित कर दिया है कि यदि कोई और व्यस्तता नहीं रही, तो जी-20 की बैठक के बाद शी जिनपिंग बैंकॉक में एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग मोर्चा (एपेक) की बैठक में भी शामिल हो सकते हैं. जी-20 और एपेक का दौरा जुड़ा हुआ रहेगा. हालांकि बीजिंग की ओर से इनमें शी जिनपिंग के भाग लेने की आधिकारिक पुष्टि नहीं की है.
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