Teachers Day 2022: डॉ. राधाकृष्णन के जन्मदिवस पर ही क्यों मनाया जाता है शिक्षक दिवस?
महान शिक्षक एवं दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का 5 सितंबर को जन्मदिन होने के कारण यह निर्णय किया गया था.
highlights
- शिक्षक दिवस मनाने की शुरुआत डॉ. राधाकृष्णन के राष्ट्रपति बनने के साथ हुई
- शिक्षकों के सम्मान में हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है
- डॉ. राधाकृष्णन को सन् 1954 में भारत रत्न से अलंकृत किया गया था
नई दिल्ली:
किसी भी समाज में शिक्षकों का स्थान बहुत ऊंचा है. भारतीय परंपरा में गुरु को भगवान से भी बड़ा कहा गया है. किसी का शिक्षित होना एक पीढ़ी का शिक्षित होना है. इसलिए शिक्षक को हमारे देश में बहुत महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है. देश भर में शिक्षको सम्मान देने के लिए वर्ष में एक दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह दिन 5 सितंबर होता है. सन 1962 से हर वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है. महान शिक्षक एवं दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का 5 सितंबर को जन्मदिन होने के कारण यह निर्णय किया गया था. शिक्षक दिवस की प्रेरणा भले ही सिर्फ डॉ. राधाकृष्णन हों,लेकिन देश के हर शिक्षक के सम्मान में मनाया जाता है.
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षक, दार्शनिक, राजनयिक और राजनेता थे. वह हमारे देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति थे. दरअसल 13 मई, 1962 को जब वह राष्टर्पति बने तो उनके छात्रों ने बड़े स्तर पर उनका जन्मदिन मनाने की स्वीकृति मांगी. इस पर राधाकृष्णन ने कहा कि अगर वे इस दिन को देशभर के शिक्षकों के सम्मान में शिक्षक दिवस के रूप में मनाएं तो मुझे गर्व होगा. इस तरह देशभर में पहली बार 5 सितंबर 1962 में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के अवसर पर शिक्षक दिवस मनाने की शुरुआत हुई.
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का प्रारम्भिक जीवन
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर 1888 को मद्रास प्रेसीडेन्सी के चित्तूर जिले के तिरूत्तनी ग्राम के एक तेलुगुभाषी ब्राह्मण परिवार में हुआ था. राधाकृष्णन के पुरखे पहले कभी 'सर्वेपल्ली' नामक ग्राम में रहते थे और 18वीं शताब्दी के मध्य में उन्होंने तिरूतनी ग्राम की ओर निष्क्रमण किया था. परिवार निर्धन था लेकिन परिवार में विद्या का महत्व था. उनके पिता राजस्व विभाग में काम करते थे. परिवार बड़ा था. इसलिए सीनित आय में घर चलाने में परेशानी होती थी.
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प्रारम्भिक शिक्षा गांव में पूरी करने के बाद उन्होंने 1902 में मैट्रिक स्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की और उन्हें छात्रवृत्ति भी प्राप्त हुई. दर्शनशास्त्र में एमए करने के पश्चात् 1918 में वे मैसूर महाविद्यालय में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त हुए. बाद में उसी कॉलेज में वे प्राध्यापक भी रहे. डॉ. राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचित कराया. डॉ. राधाकृष्णन को सन् 1954 में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया था.
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