Places of Worship Act: समझें SC की टिप्पणी के मायने, जानिए क्या है पूजास्थल कानून और इससे जुड़े विवादित मामले

Places of Worship Act की संवैधानिकता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम सुनवाई है. शीर्ष अदालत ने एक्ट को लेकर बड़ी टिप्पणी करते हुए केंद्र सरकार को 4 हफ्तों में अपना पक्ष रखने को कहा है.

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Ajay Bhartia
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Places of Worship Act: समझें SC की टिप्पणी के मायने, जानिए क्या है पूजास्थल कानून और इससे जुड़े विवादित मामले

Places of Worship Act: प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट-1991 को लेकर आज यानी गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई है. सर्वोच्च अदालत ने एक्ट की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए बड़ी टिप्पणी की है. CJI संजीव खन्ना ने कहा, ‘जब तक हम इस मामले पर सुनवाई कर रहे हैं, तब तक देश में धार्मिक स्थलों को लेकर कोई नया मामला दाखिल नहीं किया जाएगा. जो केस पेंडिंग हैं, कोर्ट फाइनल ऑर्डर नहीं देंगे.’ साथ ही मामले में केंद्र सरकार से 4 हफ्ते में अपना पक्ष रखने को कहा गया है. ऐसे में आइए जानते हैं कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट क्या है, जिसको लेकर हिंदू-मुस्लिम पक्ष में विवाद क्यों है. साथ ही कोर्ट की इस बड़ी टिप्पणी के मायने भी समझते हैं.

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किस बेंच ने की सुनवाई?

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई सीजेआई संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली 3 सदस्यीय स्पेशल बेंच ने की, जिसमें CJI के अलावा जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन शामिल रहे. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाएं दायर की गई हैं. एक्ट के खिलाफ इंडियन मुस्लिम लीग, सीपीआईएम, आरजेडी सांसद मनोज कुमार झा, एनसीपी (शरद पवार गुट) सुप्रीमो शरद पवार समेत 6 पार्टयों ने याचिकाएं लगाई हैं. 

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SC की टिप्पणी के मायने?

  • प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पर केंद्र सरकार के जवाब आने तक मामले में सुनवाई नहीं होगी. सीजेआई संजीव खन्ना ने साफ कहा कि हम केंद्र के जवाब के बिना फैसला नहीं कर पाएंगे. 

  • SC ने केंद्र सरकार को 4 हफ्तों के अंदर अपना जवाब दाखिल करने का समय दिया है. मामले में अगली सुनवाई 8 हफ्ते बाद होगी.

  • SC ने आदेश दिया कि अगली तारीख तक कोई मुकदमा दाखिल नहीं हो. तब तक के लिए एक्ट से जुड़े जो केस पेंडिंग हैं, कोर्ट फाइनल ऑर्डर नहीं देंगे. 

क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट?

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट-1991 के अनुसार, 

  • 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए पूजा स्थल को बदला नहीं जा सकता. किसी धर्म के पूजा स्‍थान को दूसरे धर्म के पूजा स्‍थान में नहीं बदल सकता, वो चाहे मस्जिद हो, मंदिर, चर्च या अन्य सार्वजनिक पूजा स्थल सभी उपासना स्थल इतिहास की परंपरा के मुताबिक ज्यों का त्यों बने रहेंगे.

  • यह किसी भी अदालत या सरकार की तरफ से बदला नहीं जा सकता. एक्ट में पूजा स्थलों के चरित्र को संरक्षित करने के लिए कहा गया था. साथ ही इस संदर्भ में इस बात पर जोर दिया गया था कि इतिहास और उसकी गलतियों को वर्तमान, भविष्य में नहीं बदला जाएगा.

  • यदि कोई इस एक्ट का उल्लंघन करने का प्रयास करता है, तो उसे जुर्माना और 3 साल तक की जेल भी हो सकती है. बता दें कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को तत्कालीन पीवी नरसिंह राव की सरकार लेकर आई थी, जिसे 1991 में कांग्रेस सरकार ने बनाया. 

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किस धारा में क्या लिखा ?

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की धाराएं

धारा - 2 में धार्मिक स्थल में बदलाव पर कोर्ट में लंबित केस को रोका जाएगा.

धारा- 3 में पूजा स्थल को दूसरे धर्म के पूजा स्थल में परिवर्तित नहीं होगा.

धारा – 4 (1): 15 अगस्त 1947 तक अस्तित्व में आए धर्मों के पूजा स्थलों का चरित्र बरकरार रखा जाएगा.

धारा – 4 (2): 15 अगस्त 1947 तक अस्तित्व में पूजा स्थलों की धार्मिक प्रवृत्ति बदलने से जुड़े मामले रद्द किए जाएंगे. उन पर आगे कई भी सुनवाई नहीं होगी.

धारा- 5: यह अधिनियम रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद और इससे जुड़े किसी भी मामले पर लागू नहीं होगा. 

हिंदू-मुस्लिम पक्ष में विवाद क्यों?

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर हिंदू और मुस्लिम पक्ष में विवाद है. हिंदू पक्ष इस एक एक्ट को असंवैधानिक बताया है जबकि मुस्लिम पक्ष का तर्क है कि एक्ट के खिलाफ याचिकाओं पर विचार करने से पूरे देश में मस्जिदों के खिलाफ मुकदमों की बाढ़ आ जाएगी.

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पूजास्थल विवाद के चर्चित मामले

  • अजमेर शरीफ दरगाह को शिव मंदिर बताए जाने के दावा है. ये विवाद काफी दिनों से चर्चा में है.   

  • संभल की शाही जामा मस्जिद के हरहरि मंदिर होने का दावा है. मामला कोर्ट में लंबित है, हाल ही में इसको लेकर संभल में हिंसा भी हुई.

  • वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद भी कई सालों से बना हुआ है. इस तरह से मुथरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शादी ईदगाह मस्जिद विवाद भी है. ये दोनों ही मामले में सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं.

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