पाकिस्तान का प्रोपगंडा और ऑपरेशन जिब्राल्टर का सच, क्यों खास है 6 सितंबर?

Operation Gibraltar: पाकिस्तान हर साल 6 सितंबर को राष्ट्रीय रक्षा दिवस के रूप में सेलिब्रेट करता है. जिसे पड़ोसी मुल्क अपना 'शौर्य दिवस' बताया है. लेकिन इसकी सच्चाई कुछ और है. चलिए जानते हैं...

Operation Gibraltar: पाकिस्तान हर साल 6 सितंबर को राष्ट्रीय रक्षा दिवस के रूप में सेलिब्रेट करता है. जिसे पड़ोसी मुल्क अपना 'शौर्य दिवस' बताया है. लेकिन इसकी सच्चाई कुछ और है. चलिए जानते हैं...

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Madhurendra Kumar
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Operation Gibraltar

पाकिस्तान का प्रोपगंडा और ऑपरेशन जिब्राल्टर का सच Photograph: (MOD Archive)

Operation Gibraltar: हर साल पाकिस्तान 6 सितंबर को राष्ट्रीय रक्षा दिवस मनाता है. इस दिन को पाकिस्तान अपने लिए “शौर्य दिवस” बताता है, जबकि सच्चाई यह है कि यह तारीख उसकी नाकाम सैन्य रणनीतियों और भारत के हाथों मिली पराजय का प्रतीक है. कश्मीर में घुसपैठ की नाकाम कोशिश और उसके बाद भारत द्वारा निर्णायक जवाबी कार्रवाई ने पाकिस्तान के सपनों को चकनाचूर कर दिया. पाकिस्तान का प्रोपगंडा आज भी अपनी जनता को यह कहानी सुनाता है कि उसने भारत को रोका और बराबरी पर युद्ध खत्म हुआ. हकीकत यह है कि 1965 में सितंबर का महीना भारत की सैन्य क्षमता, आत्मविश्वास और कश्मीर के प्रति उसकी अटूट प्रतिबद्धता को दुनिया के सामने स्थापित करता है.

पाकिस्तान की गलतफ़हमी और ऑपरेशन जिब्राल्टर

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1965 के युद्ध की जड़ें पाकिस्तान की ग़लत धारणाओं में छिपी थीं. अमेरिका से मिली सैन्य मदद, आधुनिक हथियार और 1962 में चीन से भारत की हार ने पाकिस्तान को यह भ्रम दे दिया था कि भारतीय सेना कमजोर है. इसी आत्मविश्वास में पाकिस्तान ने ऑपरेशन जिब्राल्टर शुरू किया, जिसके तहत हजारों पाकिस्तानी सैनिक और गुप्तचर स्थानीय नागरिकों के वेश में जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ कराए गए. योजना यह थी कि कश्मीरी जनता विद्रोह करेगी और पाकिस्तान का साथ देगी. लेकिन हुआ इसका उलटा, आम कश्मीरियों ने घुसपैठियों को भारतीय सेना के हवाले कर दिया. भारत ने न केवल इस साजिश को नाकाम किया बल्कि रणनीतिक रूप से अहम हाजीपीर पास पर कब्ज़ा कर लिया.

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Operation Gibraltar Photograph: (MOD Archive)

भू-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य

1965 के युद्ध को केवल सीमाई संघर्ष के रूप में नहीं देखा जा सकता. इसे बड़े भू-राजनीतिक संदर्भ में समझना ज़रूरी है. पाकिस्तान का यह दुस्साहस किसी एक क्षणिक निर्णय का परिणाम नहीं था. वर्षों से उसे अमेरिका की सैन्य मदद, आधुनिक हथियार और प्रशिक्षण मिलता रहा. इससे पाकिस्तान को यह विश्वास हो गया कि उसकी सेना पेशेवर क्षमता और ताक़त में भारत से कहीं आगे है. इसी दौरान, उसी वर्ष रण ऑफ कच्छ में हुई सीमित मुठभेड़ में पाकिस्तान ने भारतीय अर्धसैनिक बलों के खिलाफ कुछ सफलता हासिल की. इससे राष्ट्रपति अय्यूब ख़ान और उनकी जनरल लॉबी को यह झूठा भरोसा मिला कि भारत कमजोर और हिचकिचाने वाला है.

इसी भ्रम ने सीधे-सीधे ऑपरेशन जिब्राल्टर को जन्म दिया. पाकिस्तान ने हजारों हथियारबंद घुसपैठिए कश्मीर भेजकर विद्रोह भड़काने की कोशिश की. लेकिन कश्मीर की जनता ने इन्हें खारिज कर दिया और भारतीय सेना को सूचित किया. पाकिस्तान की जनविद्रोह वाली सोच जमीन पर फलीभूत होने  से पहले ही धराशायी हो गई. भारतीय सेना ने मोर्चा संभाला और हाजीपीर पास पर कब्ज़ा कर लिया, जिससे पाकिस्तान की घुसपैठ की राहें बंद हो गईं. पाकिस्तान का नेतृत्व आवाक रह गया.

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Operation Gibraltar Photograph: (MOD Archive)

ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम और कमान का विवाद

ऑपरेशन जिब्राल्टर की विफलता के बाद पाकिस्तान ने ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम शुरू किया, जिसका लक्ष्य अखनूर पर कब्ज़ा कर भारत की आपूर्ति लाइन काटना था. लेकिन इस अभियान का सबसे बड़ा झटका पहले दिन ही लगा, जब अचानक कमान बदल दी गई. मेजर जनरल अहमद मलिक से कमान लेकर मेजर जनरल याह्या ख़ान को सौंप दी गई. याह्या ख़ान ने साहसिक “बाईपास” योजना छोड़कर धीमी और क्रमिक बढ़त अपनाई. इस रणनीतिक भूल ने पाकिस्तान का अभियान को और कमजोर कर दिया और भारत को अपनी स्थिति मजबूत करने का मौका मिल गया.

भारत का जवाब : सीमाओं से परे हमला

पाकिस्तान को पूरा भरोसा था कि भारत केवल रक्षात्मक ढंग से लड़ेगा. लेकिन भारतीय नेतृत्व ने निर्णायक कदम उठाते हुए अंतरराष्ट्रीय सीमा पार की और ऑपरेशन रिडल तथा ऑपरेशन नेपाल के तहत सीधे लाहौर की ओर मोर्चा खोल दिया. डोगराई, फिल्लौरा, असल उत्तर और हाजीपीर जैसी लड़ाइयों में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को गहरे झटके दिए. वहीं उत्तर की टैंक लड़ाई में पाकिस्तान की मशहूर आर्मर्ड डिवीजन को भारी नुकसान हुआ, जो भारतीय सैनिकों की बहादुरी और रणनीति की मिसाल है.

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सैनिकों के साथ पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री Photograph: (MOD Archive)

पाकिस्तान का प्रोपगंडा बनाम हार की हकीकत

जमीनी सच्चाई यह थी कि पाकिस्तान के सभी रणनीतिक उद्देश्य ध्वस्त हो चुके थे. लेकिन पाकिस्तान ने अपने नागरिकों को यह यक़ीन दिलाने के लिए ISPR (इंटर-सर्विस पब्लिक रिलेशंस) का सहारा लिया कि उसने भारत को रोक दिया और युद्ध बराबरी पर खत्म हुआ. असलियत यह है कि पाकिस्तान की “अजेय सेना” की छवि बुरी तरह टूट गई, जबकि भारत ने अपने क्षेत्र की रक्षा की और पाकिस्तान के भीतर तक पहुंचकर अपनी सैन्य क्षमता साबित की.

वॉर हिस्ट्री की टाइमलाइन

5 अगस्त 1965– पाकिस्तान ने ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ के तहत हज़ारों घुसपैठिये कश्मीर भेजे.

15–20 अगस्त– कश्मीरियों ने पाक घुसपैठियों की सूचना भारतीय सेना को दी. भारत ने हाजीपीर पास पर कब्ज़ा किया.

1 सितंबर 1965– पाकिस्तान ने ‘ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम’ शुरू किया, लक्ष्य: अखनूर पर कब्ज़ा.

6 सितंबर 1965– भारत ने अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर लाहौर की ओर हमला बोला. युद्ध का निर्णायक मोड़.

8–10 सितंबर 1965– डोगराई की लड़ाई, भारतीय सेना लाहौर के बाहरी इलाके तक पहुँची.

10–11 सितंबर 1965– फिल्लौरा और असल उत्तर की टैंक लड़ाई, पाकिस्तान को भारी नुकसान.

22 सितंबर 1965- संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से युद्धविराम लागू.

6 सितंबर का असली मतलब

6 सितंबर का दिन पाकिस्तान अपनी जनता को “रक्षा दिवस” के रूप में सुनाता है. लेकिन असल में यह उसकी नाकाम घुसपैठ, रणनीतिक भूलों और भारत के दृढ़ जवाब की याद दिलाता है. इस दौरान युद्ध के अंत में फ़ील्ड मार्शल अय्यूब ख़ान का यह बयान वर्ल्ड हिस्ट्री में दर्ज है - "पाकिस्तान को 5 मिलियन कश्मीरियों के लिए 50 मिलियन पाकिस्तानियों की ज़िंदगी दांव पर नहीं लगानी चाहिए"

इस बयान ने पाकिस्तान की हकीकत और कश्मीर को लेकर असल सोच को भी उजागर कर दिया. भारत के लिए यह केवल सैन्य जीत नहीं थी, बल्कि नैतिक और मनोवैज्ञानिक विजय भी थी. 1962 की हार के बाद यह युद्ध भारत के आत्मविश्वास को बहाल करने वाला बना और पूरी दुनिया को दिखा दिया कि भारत किसी भी आक्रामक दुस्साहस का डटकर मुकाबला करने में सक्षम है.

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