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Bhopal Gas Tragedy के 38 साल बाद सरकार अब क्यों कर रही और मुआवजे की मांग ?

इस साल अक्टूबर में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह भोपाल गैस त्रासदी मामले में अतिरिक्त मुआवजे के लिए एक याचिका आगे बढ़ाने को उत्सुक है. सरकार की दलील थी कि वह प्रभावित लोगों के परिवारों और दोषियों को यूं ही नहीं छोड़ सकती.

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Nihar Saxena
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Bhopal Gas Tragedy

भोपाल गैस त्रासदी के जख्म आज भी रिस रहे हैं.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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अब तक की सबसे बड़ी औद्योगिक आपदाओं में से एक 2 दिसंबर 1984 की दुर्भाग्यशाली रात मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल (Bhopal) में शुरू हुई. इसकी शुरुआत यूनियन कार्बाइड (Union Carbide) कारखाने के कीटनाशक संयंत्र से जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) गैस के रिसाव से शुरू हुई, जिसकी परिणिति भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) के रूप में हुई. गैस रिसाव के शुरुआती कुछ दिनों में ही अनुमानित 3,000 लोग मारे गए. समय के साथ-साथ गैस के दुष्प्रभाव से जीवन भर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करने वालों की भयावह संख्या सामने आई और अभी भी आ रही है. भारत में पहली बार इस त्रासदी ने नीति-नियंताओं को आम लोगों और पर्यावरण को औद्योगिक दुर्घटनाओं के भयावह परिणामों से बचाने की जरूरत पर ध्यान देने के लिए प्रेरित किया. इसके बाद सरकार ने कई नए कानून पेश किए गए. हालांकि जिन लोगों ने प्रत्यक्ष रूप से गैस रिसाव के दुष्प्रभावों का सामना किया वे इस बात पर जोर दे रहे हैं कि यूनियन कार्बाइड ने उचित मुआवजा (Compensation) देने के मामले में अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं की. गौरतलब है कि यूनियन कार्बाइड अब डॉव जोन्स का एक हिस्सा है. मुआवजे पर सहमति बनने के लगभग 19 साल बाद भारत सरकार ने 2010 में डॉव जोन्स से अतिरिक्त मुआवजे की मांग के लिए एक उपचारात्मक याचिका (क्यूरेटिव पिटीशन) दायर की. इस क्यूरेटिव पिटीशन में 1989 में दी गई मुआवजा राशि से दस गुना अधिक मुआवजे की मांग की गई थी. इस साल अक्टूबर में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह भोपाल गैस त्रासदी मामले में अतिरिक्त मुआवजे के लिए एक याचिका आगे बढ़ाने के लिए उत्सुक है. सरकार की दलील थी कि वह प्रभावित लोगों के परिवारों और दोषियों को यूं ही नहीं छोड़ सकती. ऐसे में औद्योगिक आपदा कैसे हुई और मुआवजे की हालिया मांग क्या हम बताते हैं.

पीढ़ी दर पीढ़ी भुगत रही है त्रासदी का अभिशाप
यूनियन कार्बाइड (इंडिया) लिमिटेड (यूसीआईएल) एक अमेरिकी निगम यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (यूसीसी) की सहायक कंपनी थी. यूसीआईएल का कीटनाशक बनाने वाला कारखाना भोपाल के बाहरी इलाके में स्थित था. 2 दिसंबर की रात संयंत्र से अत्यधिक जहरीली एमआईसी गैस का रिसाव शुरू हुआ. इसके संपर्क में आते ही आस-पास के इलाकों में रहने वाले लोगों ने अपनी आंखों में जलन और सांस लेने में कठिनाई के साथ-साथ कई लोगों के होश खोने की शिकायत की. इस जहरीली गैस का दुष्प्रभाव ऐसा था कि कम समय में ही हजारों लोगों को जान गंवानी पड़ी. इसके अलावा यह गैस सांस के जरिये जिन-जिन लोगों के शरीर के भीतर गई थी, उनमें बीमारी और अन्य दीर्घकालिक समस्याएं समय बीतने के साथ सामने आने लगीं. गैस रिसाव के बहुत बाद में इससे हुए पर्यावरण प्रदूषण का पैमाना भी स्पष्ट हुआ. उदाहरण के लिए कारखाने के आसपास के पानी के स्रोतों को इस्तेमाल के लिए अनुपयुक्त माना गया. इसके बाद कई हैंडपंपों को सील कर दिया गया. आज तक भोपाल की कई महिलाओं का प्रजनन स्वास्थ्य प्रभावित हुआ है. गैस के संपर्क में आई महिलाओं के गर्भ से जन्म लेने वाले बच्चों को जन्मजात स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा है.

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संयंत्र में नहीं थे पर्याप्त सुरक्षा उपाय
2019 में संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट में कहा गया कि कम से कम 30 टन जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) गैस ने 6 लाख से अधिक श्रमिकों और आसपास के निवासियों को प्रभावित किया. इस रिपोर्ट में भोपाल गैस त्रासदी को 1919 के बाद दुनिया की प्रमुख औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक भी करार दिया गया. कई विश्लेषणों में आरोप लगाया है कि जहरीली गैस का रिसाव सुरक्षा नियमों में बरती गई लापरवाही का परिणाम था. यही नहीं, श्रमिकों के प्रशिक्षण में एमआईसी के खतरों से जुड़े पहलुओं की भी जानकारी नहीं दी गई. तमाम श्रमिक गैस के दुष्प्रभावों से अनजान थे. सरकार के वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के महानिदेशक डॉ. एस वरदराजन ने उस समय कहा था कि संयंत्र में एमआईसी गैस से जुड़े कामों को पर्याप्त सुरक्षा उपायों या आपात स्थिति से जुड़ी योजनाओं और व्यवस्थाओं के बगैर किया जा रहा था.

भोपाल गैस त्रासदी के बाद बने कई महत्वपूर्ण कानून
भोपाल गैस त्रासदी इस तरह के मामलों से निपटने में भारत में विशिष्ट कानूनों की कमी को भी सामने लाई. पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च का लेख भी बताता है कि भोपाल आपदा के बाद कानूनी स्थिति में बदलाव आया. 1984 से कई प्रमुख कानून मसलन पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 पारित हुए. इसने केंद्र सरकार को पर्यावरण और सार्वजनिक सुरक्षा के लिए प्रासंगिक उपाय करने और औद्योगिक गतिविधियों को कानून सम्मत बनाने के लिए अधिकृत किया. 1991 में इसके बाद एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया गया, जिसके तहत सार्वजनिक दायित्व बीमा अधिनियम लाया गया. यह अधिनियम किसी भी खतरनाक पदार्थ से जुड़े कामकाज के दौरान होने वाली दुर्घटना से प्रभावित व्यक्तियों को तत्काल राहत प्रदान करने के लिए सार्वजनिक देयता बीमा प्रदान करता है.

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गैस त्रासदी के बाद मुआवजे की मांग
इस गैस आपदा के बाद भोपाल गैस रिसाव आपदा (दावों की प्रक्रिया) अधिनियम 1985 में पारित किया गया. इसमें मुआवजा दावों को निपटाने के लिए भारत सरकार को कुछ अधिकार दिए गए थे. इसके तहत केंद्र सरकार के पास मुआवजा दावों से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करने और उसके हवाले से दावा करने का विशेष अधिकार मिला. फिर यूनियन कार्बाइड के खिलाफ मामला दर्ज किया गया. भारत आने पर यूनियन कार्बाइड के तत्कालीन अध्यक्ष वॉरेन एंडरसन को गिरफ्तार भी किया गया था, लेकिन जल्द जमानत पर रिहा कर दिया गया. जमानत पर रिहा होते ही वॉरेन एंडरसन भारत छोड़कर चले गए. यूनियन कार्बाइड के अन्य उच्च अधिकारियों को भी जमानत पर रिहा कर दिया गया. यह मामला कुछ समय के लिए अमेरिकी अदालत में भी चला, लेकिन बाद में इसे भारत स्थानांतरित कर दिया गया था. दिसंबर 1987 तक सीबीआई ने एंडरसन के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी. बार-बार सम्मन की अनदेखी करने पर दो साल बाद वॉरेन एंडरसन के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया गया. हालांकि एंडरसन कभी भारत नहीं लौटे और 2014 में उनकी मृत्यु हो गई. 

फरवरी 1989 में भारत सरकार और यूनियन कार्बाइड में आउट ऑफ कोर्ट समझौता
फरवरी 1989 में भारत सरकार और यूनियन कार्बाइड ने अदालत के बाहर एक समझौता किया. इसके तहत यूनियन कार्बाइड ने 470 मिलियन डॉलर का मुआवजा दिया. सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने एक फैसले में इसे बरकरार रखा. गुजरते सालों में सरकार ने धीरे-धीरे मुआवजे की धनराशि जारी भी की, लेकिन प्रभावित लोगों के लगातार विरोध के चलते मुआवजा देने की प्रक्रिया में देरी होती गई. गैस आपदा से प्रभावित और उनसे जुड़े लोगों में से कई इस मामले पर याचिका पर याचिका दायर करते रहे. 2010 में सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट के 1996 के एक फैसले पर पुनर्विचार की मांग की थी. इस फैसले में कंपनी के खिलाफ आरोप को कम कर 'उतावलेपन और लापरवाही को मौत का कारण' बताया गया था.

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मुआवजा दावों पर सरकार की नई याचिका
1999 में अरबों डॉलर की संपत्ति वाले डॉव जोन्स ने यूनियन कार्बाइड का नियंत्रण अपने हाथों ले लिया. अब वह भोपाल गैस त्रासदी से जुड़ी कानूनी कार्यवाही का केंद्र बन गया. डॉव जोन्स ने मुआवजे के दावों पर फिर से खोलने का विरोध किया. डॉव लंबे समय से कहता आ रहा है कि उसका इस आपदा से कोई संबंध नहीं है और वह भोपाल गैस त्रासदी से जुड़ी किसी भी कानूनी कार्यवाही से संबंध नहीं रखता है. डॉव जोन्स ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बना कर तर्क दिया कि चूंकि सरकार पहले की मुआवजे राशि से संतुष्ट थी, इसलिए अब कोई मामला नहीं बनता है. डॉव जोन्स ने 2010 की याचिका पर कहा, 'सरकार की अनुचित कार्रवाई भारत की छवि को प्रभावित करेगी. एक राष्ट्र के रूप में भारत कानूनी सिद्धांतों और कानून के शासन को बढ़ावा देने और उनका पालन करने के लिए प्रतिबद्ध है. अगर याचिका पर फिर सुनवाई शुरू होती है, तो भारत की कानून सम्मत राष्ट्र की छवि कमजोर होगी. इससे भारत में निवेश करने वाले हिचकिचाएंगे.' डॉव जोन्स की इस दलील पर अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने अक्टूबर 2022 में सुप्रीम कोट के पांच-न्यायाधीशों की पीठ को बताया कि अन्यत्र के कई और उदाहरणों पर गौर करने पर ऐसे काफी दस्तावेज और फैसले मिलते हैं कि अदालतों ने पहले हुए समझौतों को दरकिनार कर मामले पर फिर से सुनवाई शुरू की. हालांकि निर्णय पारित होने के बाद कई वर्षों की देरी ने यथास्थिति में किसी भी बदलाव की संभावना कम कर दी है. वारविक विश्वविद्यालय के कानून के प्रोफेसर उपेंद्र बक्शी ने भी लिखा है कि किसी भी अंतिम परिणाम तक पहुंचने के लिए एक वीरतापूर्ण प्रयास की आवश्यकता होगी.

HIGHLIGHTS

  • भोपाल गैस त्रासदी में 3 हजार से अधिक लोग शुरुआती दिनों में मारे गए
  • प्रभावित परिवारों की पीढ़ी दर पीढ़ी आज भी भुगत रही हैं दुष्परिणाम
  • अक्टूबर में भोपाल गैस त्रासदी में अतिरिक्त मुआवजे के लिए एक नई याचिका 
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