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Atiq Life: गरीबी दूर करने के लिए खूनी शुरुआत, जिसका हुआ खूनी अंत ... जानें

अतीक को गरीबी से नफरत थी. हाई स्कूल की परीक्षा में असफल होने के बाद उसने अपने तरीके से गरीबी से पार पाने का फैसला किया. शुरुआत में अतीक ने पैसे बनाने के लिए ट्रेनों से कोयला चुराकर उसे बेचना शुरू किया.

Updated on: 16 Apr 2023, 01:43 PM

highlights

  • एक तांगेवाले के बेटे अतीक अहमद पर 17 की उम्र में लगा हत्या का आरोप
  • पढ़-लिख कर गरीबी दूर करने में सक्षम न होते देख चुना अपराध का रास्ता
  • उसके खिलाफ जबरन वसूली, अपहरण और हत्या सहित 100 से अधिक मामले

नई दिल्ली:

माफिया (Mafia) सरगना से रसूखदार नेता का सफर तय करने वाले अतीक (Atiq) अहमद का जन्म 1962 में एक साधारण पृष्ठभूमि वाले परिवार में हुआ था. उसके पिता परिवार का पेट पालने के लिए तांगा चलाते थे. इस आधार पर देखें तो अतीक का उत्थान उतना ही नाटकीय रहा, जितना उसका अंत. अतीक अहमद के उत्थान और पतन की कहानी किसी हिंदी थ्रिलर फिल्म के लिए एक बेहतरीन प्लॉट साबित हो सकती है. सूत्रों के मुताबिक अतीक को गरीबी से नफरत थी. हाई स्कूल की परीक्षा में असफल होने के बाद उसने अपने तरीके से गरीबी से पार पाने का फैसला किया. शुरुआत में अतीक ने पैसे बनाने के लिए ट्रेनों से कोयला चुराकर उसे बेचना शुरू किया. जल्द ही वह रेलवे स्क्रैप धातु (Metal Scrap) के लिए सरकारी ठेके हासिल करने के लिए धमकाने लगा. 1979 में महज 17 साल की उम्र में अतीक पर तत्कालीन इलाहाबाद में हत्या का आरोप लगाया गया था.

शौकत इलाही की मौत से अतीक यूपी अपराध जगत का बना सरगना
जल्द ही अतीक राज्य में कई गैंगस्टरों का नेटवर्क चलाने लगा. उसका दबदबा धीरे-धीरे फूलपुर और कौशांबी सहित आसपास के इलाकों में फैल गया. 1989 में जब अतीक का सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी शौकत इलाही पुलिस मुठभेड़ में मारा गया, तो अतीक अंडरवर्ल्ड का निर्विवादित राजा बन गया. उसी वर्ष अतीक ने अपना पहला चुनाव लड़ा और इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट से एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की. कभी फूलपुर विधानसभा सीट स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री पं जवाहरलाल नेहरू की हुआ करती थी. वास्तव में अतीक ने 1989 से 2002 तक लगातार पांच बार इस सीट पर जीत हासिल की. पहली तीन बार निर्दलीय के रूप में, फिर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में. फिर अपना दल के उम्मीदवार के रूप में वह फूलपुर से विधायक बना.

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जेल में या बाहर रहते हुए अतीक ने यूपी अंडरवर्ल्ड पर पकड़ नहीं पड़ने दी ढीली
अपना दल उम्मीदवार के रूप में विधानसभा चुनाव जीतने के एक साल बाद अतीक समाजवादी पार्टी में वापस चला गया और 2004 में फूलपुर लोकसभा सीट जीती. इस फेर में अतीक को फूलपुर विधानसभा सीट छोड़नी पड़ी, जो बाद में बसपा विधायक राजू पाल की सनसनीखेज हत्या की जड़ बनी. राजू पाल ने इसी सीट पर अतीक के भाई अशरफ को हराया था, जिससे पनपी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता खूनी रंजिश में तब्दील हो गई. राजू पाल की हत्या के मुख्य गवाह उमेश पाल की भी इसी साल 24 फरवरी को हत्या कर दी गई. राजू पाल की हत्या के मामले में अतीक को 2005 में गिरफ्तार किया गया और तीन साल बाद जमानत मिली थी. हालांकि अतीक ने जेल के अंदर या बाहर रहते हुए उत्तर प्रदेश के अंडरवर्ल्ड पर अपनी पकड़ ढीली नहीं पड़ने दी. वह अपने लोगों की रक्षा या विरोधियों के सफाये के अंजाम को बखूबी अंजाम देता रहा. 2007 में जेल में रहने के दौरान अतीक पर मदरसा के कुछ छात्रों के सामूहिक बलात्कार में कथित रूप से शामिल अपने आदमियों को बचाने का आरोप लगा था.

परमाणु डील पर मनमोहन सरकार के पक्ष में जेल से वोट देने लोकसभा पहुंचा था अतीक
इस कांड पर मची हाय-तौबा और बढ़ते आक्रोश को देख समाजवादी पार्टी ने अतीक को सपा से फिर निष्कासित कर दिया. यह उस समय की बात है जब बसपा प्रमुख मायावती उत्तर प्रदेश की सत्ता में लौटी थीं. बसपा शासन में पुलिस ने अतीक और उसके भाई पर दबाव बनाया. अंततः दोनों ने 2008 में आत्मसमर्पण कर दिया और जेल चले गए. जब ​​भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते पर 2008 में मनमोहन सिंह सरकार संसद में अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रही थी, तो यूपीए संकट प्रबंधकों ने गंभीर आरोपों पर जेल में बंद कुछ सांसदों की ओर रुख किया. अतीक उनमें से एक था, जो फर्लो हासिल कर मतदान करने के लिए आया और यूपीए सरकार को गिरने से बचा लिया. हालांकि अतीक प्रतापगढ़ से अपना दल के उम्मीदवार के रूप में 2009 के संसदीय चुनाव हार गया.

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2012 विधानसभा चुनाव के लिए जेल से भरा था नामांकन पत्र
हालांकि चुनावी हार का मतलब यह नहीं था कि अतीक का दबदबा कम हो गया. 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में अतीक ने जेल से अपना नामांकन पत्र दाखिल किया.  उसने चुनाव प्रचार करने के लिए जमानत हासिल करने इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. हालांकि अदालत में अतीक की जमानत याचिका को भारी मात्रा में विरोध का सामना करना पड़ा. दस जजों ने उसकी जमानत अर्जी पर सुनवाई से इंकार कर दिया. 11वें जज ने सुनवाई की और अतीक बाहर आ गया. हालांकि वह मारे गए बसपा विधायक राजू पाल की पत्नी पूजा पाल से चुनाव हार गया. यूपी में समाजवादी पार्टी के सत्ता में आने के एक साल बाद 2013 में अतीक को फिर जेल से रिहा कर दिया गया था. उसने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में श्रावस्ती से 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन फिर से चुनावी समर में अतीक को मुंह की खानी पड़ी.

नकलची छात्रों पर कार्रवाई से गुस्साए अतीक ने मिशनरी स्कूल में भी की हिंसा 
अपने गुस्सैल स्वभाव के लिए कुख्यात अतीक ने दिसंबर 2016 में अपने साथियों के साथ एक ईसाई मिशनरी स्कूल के कर्मचारियों पर हमला किया. उनका कसूर सिर्फ इतना था कि उन्होंने दो छात्रों को नकल करते पकड़े जाने के बाद उन्हें परीक्षा देने से रोक दिया था. हालांकि हिंसा की यह वारदात कैमरे में कैद हो गई. जनवरी 2017 में जब अखिलेश यादव ने अपने पिता मुलायम सिंह यादव से समाजवादी पार्टी का नियंत्रण छीना, तो इसके साथ ही अतीक को सपा का समर्थन भी छिन गया. अखिलेश सपा की राजनीति से अपराधियों को दूर रखना चाहते थे. इसी बीच अतीक को गिरफ्तार नहीं करने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी यूपी पुलिस को जमकर फटकार लगाई. ऐसे में अखिलेश को अपनी इच्छा पूरी करने के लिए अब न्यायिक आधार भी मिल गया. उस वक्त अतीक को फिर गिरफ्तारी हुई और तब से वह जेल में था.

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योगी आदित्यनाथ सरकार में कसा कानून का शिकंजा
मार्च 2017 में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार बनी. योगी ने अपने चुनावी वादों में 'अपराधियों के साम्राज्य' को ध्वस्त करने का वादा किया था. ऐसे में अतीक को उसके गढ़ इलाहाबाद से हटा देवरिया जेल ले जाया गया. देवरिया जेल से भी अतीक का अपना अंडरवर्ल्ड साम्राज्य चलता रहा. देवरिया जेल में रहते हुए ही अतीक के कहने पर लखनऊ के एक व्यापारी मोहित जायसवाल का अपहरण कर जेल लाया गया. देवरिया जेल में बिल्कुल फिल्मी अंदाज में अतीक ने मोहित जायसवाल को बेरहमी से पीट संपत्ति से जुड़े कागजों पर जबरन हस्ताक्षर करवा लिए. इसके बाद अतीक को बरेली जेल ले जाया गया. बरेली जेल के अधीक्षक घबरा गए थे और अतीक को वहां नहीं रखना चाहते थे. नतीजतन अप्रैल 2019 में कड़ी सरक्षा के बीच योगी सरकार ने अतीक को प्रयागराज की नैनी जेल में शिफ्ट कर दिया.

अंडरवर्ल्ड साम्राज्य बचाने-बढ़ाने के लिए राजनीति का इस्तेमाल
इस समय तक सुप्रीम कोर्ट ने देवरिया जेल में मोहित जायसवाल कांड पर अपना फैसला सुना दिया और गुजरात में साबरमती जेल अतीक अहमद का नया पता बन गया. अतीक अहमद के खिलाफ जबरन वसूली, अपहरण और हत्या सहित 100 से अधिक मामले दर्ज थे. हालांकि राजू पाल की हत्या के एक गवाह उमेश पाल के अपहरण में उसे पहली बार पिछले महीने सजा सुनाई गई. विडंबना यह रही कि उमेश पाल की हत्या के एक महीने बाद अतीक को सजा सुनाई गई. अतीक अहमद का अपराध और राजनीति के बीच नजदीकी संबंध रहा है, लेकिन वह अपनी राजनीति से ज्यादा अपराध के लिए जाना गया. अतीक ने अपने अंडरवर्ल्ड साम्राज्य को बचाने और उसे फैलाने के लिए बेहद चतुराई के साथ राजनीति का इस्तेमाल किया. चूंकि जेल में अतीक को लंबे समय तक रहना था, उसने अपनी पत्नी शाइस्ता परवीन को बसपा में शामिल करा दिया. हालांकि किस्मत उसके पक्ष में फिर भी नहीं आई. उमेश पाल अपहरण और हत्या मामले में आरोपी होने के कारण शाइस्ता परवीन को मेयर चुनावों में टिकट नहीं दिया गया था. 

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बेटे भी अतीक के नक्शेकदम पर
अतीक के बेटे भी उसके नक्शेकदम पर चल रहे थे, जो उनके वर्तमान पतों से स्पष्ट है. अतीक का सबसे बड़ा बेटा उमर वर्तमान में 2018 में लखनऊ के एक व्यवसायी मोहित जायसवाल से जबरन वसूली, हमला करने और अपहरण के आरोप में जेल में है. पिछले साल अगस्त में उमर ने सीबीआई के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था. वह इस समय लखनऊ की जेल में है. अतीक का दूसरा बेटा अली भी जेल में है. उसके खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया गया था, जिसे हाल ही में उस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिली थी. हालांकि अली के खिलाफ फिरौती का एक और मामला दर्ज है. अली प्रयागराज में शहर के एक प्रापर्टी डीलर से पांच करोड़ रुपये की रंगदारी मांगने के आरोप में नैनी जेल में बंद है. तीसरे बेटे असद को पिछले हफ्ते एक मुठभेड़ में मार दिया गया, जो उमेश पाल हत्या में वांछित और फरार चल रहा था. अतीक के दो नाबालिग बेटे किशोर आश्रय गृह में बंद हैं. शनिवार की रात प्रयागराज के एक अस्पताल परिसर में तीन युवकों ने अतीक और उसके भाई अशरफ की गोली मारकर हत्या कर दी गई. अतीक को अपनी मौत का पूर्वाभास पहले हो गया था. अतीक ने खुद आशंका जताई थी कि उसे यूपी में मार दिया जाएगा. हालांकि बेटे असद के मारे जाने के 72 घंटे के भीतर ऐसा हो जाएगा, इसकी उसने उम्मीद नहीं की थी. कह सकते हैं कि एक खूनी शुरुआत का अंत हमेशा खूनी ही होता है.