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Year Ender 2021 : इन टॉप 10 घटनाओं ने बढ़ाया देश का सियासी पारा

साल 2021 खत्म होने से पहले जानते हैं कि देश की राजनीति में ऐसे कौन से अहम घटनाक्रम हुए जिन्होंने न सिर्फ बड़े पैमाने पर लोगों का ध्यान खींचा, बल्कि लंबे समय तक उनकी गूंज और उनका असर दिखता रह सकता है.

Updated on: 21 Dec 2021, 10:06 AM

highlights

  • कोरोना प्रोटोकॉल्स की वजह से कई बड़े राजनीतिक कार्यक्रमों को टालना पड़ा
  • बीजेपी आलाकमान ने साल 2021 में अपने शासन वाले चार राज्यों में नए मुख्यमंत्री दिए
  • कांग्रेस के लिए चुनावों में निराशाजनक परिणाम आए और दिग्गज नेताओं ने साथ छोड़ा

New Delhi:

राजनीतिक घटनाओं के लिहाज से साल 2021 बड़े उतार-चढ़ावों वाला रहा. कोरोना महामारी की दूसरी और बेहद खतरनाक लहर की दहशत और सावधानियों के बीच साल 2021 कई राजनीतिक जगत की कई असाधारण हलचलों (Major Political Events in 2021) का भी गवाह बना. कोरोना प्रोटोकॉल्स में सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से कई बड़े राजनीतिक कार्यक्रमों को टालना पड़ा या फिर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उन्हें पूरा किया जा सका. साल खत्म होने से पहले आइए जानते हैं कि देश की राजनीति में ऐसे कौन से अहम घटनाक्रम हुए जिन्होंने न सिर्फ बड़े पैमाने पर लोगों का ध्यान खींचा, बल्कि लंबे समय तक उनकी गूंज और उनका असर दिखता रह सकता है.

ये रहे साल 2021 के 10 महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम - 

1. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वापस लिए तीनों नए कृषि कानून

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में की गयी अपनी घोषणा के अनुरूप केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक बुलाकर ये प्रस्ताव पारित करा दिया कि सरकार 29 नवंबर से शुरू होने वाले सत्र में ये तीनों कृषि  कानून वापस ले लेगी. सत्र के एजेंडे में ये प्रस्ताव भी आ गया. 19 नवंबर को पीएम मोदी ने कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की और 29 नवंबर को संसद के दोनों सदनों ने कृषि कानून को निरस्त करने वाले कृषि विधि निरसन विधेयक, 2021 को बिना चर्चा के मंजूरी दे दी. एक दिसंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी इसको मंजूरी दी. कृषि कानूनों के रद्द होने के साथ ही किसानों का एक साल से ज्यादा समय से चल रहा आंदोलन भी समाप्त हो गया. वहीं अगले साल पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले विपक्ष के हाथ से केंद्र सरकार पर निशाना साधने वाला बड़ा मुद्दा फिसल गया. वहीं बीजेपी ने इस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस कदम को लेकर बताने की शुरुआत कर दी कि पीएम मोदी अपनी घोषणा के प्रति ईमानदार हैं और किसान हितैषी हैं. सरकार चाहती तो कांग्रेस या यूपीए सरकार की तरह आंदोलनकारियों पर लाठी, गोली चलवा सकती थी. फिर भी उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया.

2. मुंबई में ड्रग्स के खिलाफ कार्रवाई पर राजनीति

मुंबई में एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमयी आत्महत्या के बाद नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) ही  ड्रग्स के खिलाफ एक्टिव हो गयी थी. बॉलीवुड के कई बड़े सितारे ड्रग्स इस्तेमाल करने, उनकी तस्करी, खरीद-बिक्री वगैरह के चक्कर में  फंसते नजर आये. साल खत्म होते-होते इसकी आंच शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान तक पहुंची. ड्रग्स मामले में क्रूज पार्टी के दौरान एनसीबी ने उन्हें गिरफ्तार किया. और इसके साथ ही महाराष्ट्र के साथ देश भर में सियासत तेज हो गई.  महाराष्ट्र सरकार में शामिल शरद पवार की पार्टी एनसीपी के प्रवक्ता नवाब मलिक ने एनसीबी की कार्यवाही पर ही सवाल खड़े कर दिए. एनसीबी के अधिकारी समीर वानखेड़े को बीजेपी का एजेंट बताया. शिवसेना की ओर से संजय राऊत ने केंद्र सरकार को घेरा. इन राजनीतिक लड़ाइयों पर कोर्ट को सुनवाई करनी पड़ी. समीर वानखेड़े से आर्यन खान का केस वापस ले लिया गया और उनकी जांच शुरू हो गई. आर्यन को जमानत मिल गई तब जाकर मामला ठंडा पड़ा.

3. बीजेपी ने चार राज्यों में अपने मुख्यमंत्री बदले 

बीजेपी आलाकमान ने साल 2021 में अपने शासन वाले चार राज्यों में नए मुख्यमंत्री दिए. इसके लिए गुजरात, कर्नाटक, उत्तराखंड राज्यों में मुख्यमंत्रियों को आलाकमान ने बदला. गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने अचानक इस्तीफा दे दिया. भूपेंद्र भाई पटेल को नया सीएम बनाया गया. रूपाणी से पहले कर्नाटक में जुलाई में बीएस येदियुरप्पा को कुर्सी छोड़नी पड़ी. बीएस येदियुरप्पा से पार्टी के कई नेता नाराज चल रहे थे. वहां बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया गया. इससे पहले उत्तराखंड में भी त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इस्तीफे के बाद तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया लेकिन कुछ ही महीने बाद कुर्सी तीरथ सिंह रावत से वापस लेकर पुष्कर सिंह धामी को सौंप दी गई. इसके पहले असम में बीजेपी ने नए नेतृत्व में चुनाव लड़कर वहां सीएम बदला था. पांच साल के बाद सर्बानंद सोनेवाल की जगह हिमंत बिस्व सरमा को मुख्यमंत्री के तौर पर पेश किया था.

4. पंजाब कांग्रेस में अमरिंदर सिंह, सिद्धू, चन्नी की रार

पंजाब में राज्य सरकार और सत्तारुढ़ कांग्रेस पार्टी साल 2021 के आखिरी कुछ महीनों में राजनीतिक चर्चा के केंद्र में रहे. पंजाब कांग्रेस में फूट पड़ी और इसका बड़ा असर राज्य सरकार पर दिखा. मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह बनाम प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की जुबानी जंग बढ़ कर पार्टी की टूट तक पहुंच गई. गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी को लेकर शुरू हुई जुबानी जंग दोनों नेताओं के अहम का टकराव बन गई. कांग्रेस के आलाकमान की कोशिशों से पंजाब में अंदरूनी कलह दबती, ठीक होती और फिर बिगड़ती रही. आखिर में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मुख्यमंत्री पद और कांग्रेस पार्टी दोनों से इस्तीफा दे दिया.  पंजाब के मुख्यमंत्री के पद से कैप्टन के इस्तीफा देने के बाद पंजाब कांग्रेस के विधायक दो भागों में बट गये. कांग्रेस में फूट पड़ गई. नए और पांजाब के पहले दलित सीएम बने चरणजीत सिंह चन्नी से भी नवजोत सिंह सिद्धू की अदावत शुरू हो गई. प्रदेश के डीजीपी बदलने को लेकर सिद्धू ने इस्तीफा दिया और फिर मनाने पर वापस ले लिया. अगले साल 2022 में पंजाब में विधानसभा चुनाव होने वाला है. माना जा रहा है कि पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह और बीजेपी साथ मिलकर चुनाव लड़ सकते हैं. वहीं कैप्टन अमरिंदर सिंह के पार्टी छोड़ने से कांग्रेस को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है. 

5. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की ऐतिहासिक जीत

साल 2021 में देश और दुनिया की राजनीति में पश्चिम बंगाल विधानसभा का चुनाव सबकी निगाहों में अव्वल था. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने 200 से ज्यादा सीटें जीती. इसके साथ ही ममता बनर्जी लगाातर तीसरी बार प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं. उनका खेला होबे का नारा बीजेपी के दो मई ममता दीदी गई.., अबकी बार दीदी का सूपड़ा साफ... जैसे नारों पर भारी पड़ गया. जीत के मामले में बीजेपी शतक लगाने से चूक गई. उसके सभी बड़े नेताओं के दावे फेल हो गए. वहीं ममता बनर्जी और रणनीतिक सलाहकार प्रशांत किशोर ने बाजी मार ली.

6. देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव

पश्चिम बंगाल के अलावा देश में साल 2021 मे ही चार अन्य राज्यों में भी विधानसभा चुनाव हुआ था. साल की शुरूआत में ही इसका असर दिखने लगा था. राजनीति के लिहाज से साल 2021 सभी पार्टियों के लिए अहम था. साल 2021 में पांच राज्यों पश्चिम बंगाल, असम, केरल, पुडुचेरी और तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव के दौरान दल बदल की राजनीति भी चरम पर थी. चुनाव प्रचार अभियान भी रोमांचक साबित हुआ. बीजेपी को पश्चिम बंगाल में अपनी सरकार बनाने की उम्मीद थी, लेकिन वह कामयाब नहीं हो पाई. वहीं असम में उसकी सरकार में वापसी हुई. पुडुचेरी में पहली बार बीजेपी सरकार में आई. केरल में वामपंथी सरकार की वापसी हुई और तमिलनाडु में स्टालिन मुख्यमंत्री बने.

7. कोरोनावायरस की दूसरी लहर में चुनाव प्रचार

साल 2021 में कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने पांच राज्यों के चुनाव प्रचार में काफी बाधाएं पेश की. यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा कि चुनाव प्रचार में कोरोना प्रोटोकॉल्स का उल्लंघन हो रहा है. वहीं इस बार कोरोनावायरस भी काफी खतरनाक होकर आया था.  रोजाना संक्रमण की संख्या लाख के पार हो गई.  वहीं चुनाव प्रचार में जनसैलाब उमड़ रहा था. मरीजों को अस्पताल के बेड और ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं मिल पा रहा था. राजनीतिक पार्टियों का चुनाव अभियान चरम पर था. रैलियां, जन सभाएं लगातार चल रही थी. लॉकडाउन लगाने और चुनाव को टालने की मांग जोरों पर थी. कोरोना ने मार्च से लेकर जुलाई तक खूब कोहराम मचाया. देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत बिगड़ने लगी और आखिरकार कई राज्य सरकारों ने लॉकडाउन लगाना शुरू कर दिया था. इस बीच जिन राज्यों में चुनाव हुए वहां भी बाद में केस बढ़े. लोगों ने महामारी के बीच चुनाव अभियान को असंवेदनशीलता करार दिया.

8. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला कैबिनेट विस्तार 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला कैबिनेट विस्तार भी साल 2021 की प्रमुख राजनीतिक घटनाओं में एक रहा. जुलाई महीने में कैबिनेट का विस्तार इस लिए भी चर्चा का विषय रहा था क्योंकि पीएम मोदी ने कई प्रयोग किए. इस बार पीएम मोदी ने यूथ, एक्सपीरियंस और प्रोफेशनल्स पर फोकस किया था. विपक्ष को आलोचना का कम से कम मौका मिले इसलिए  कैबिनेट में बड़े पैमाने पर फेरबदल की गई. इसमें 36 नए चेहरों को शामिल किया गया, जबकि सात मौजूदा राज्यमंत्रियों को प्रमोशन देकर मंत्रिमंडल में शामिल किया गया. आठ नए चेहरों को भी कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया. राष्ट्रपति भवन में हुए शपथ ग्रहण समारोह में 43 नेताओं ने मंत्री पद की शपथ ली. इनमें 15 कैबिनेट और 28 राज्यमंत्री शामिल थे. इस बार चुनावी राज्यों, जातियों, अनुभवों, साथी दलों वगैरह के प्रतिनिधित्व का खासा ख्याल रखने का भी सरकार ने दावा किया था.

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9. पेगासस जासूसी कांड मामले पर संसद ठप

केंद्र सरकार के लिए साल 2021 मिला जुला असर वाला रहा. क्योंकि इस साल बीजेपी को पश्चिम बंगाल चुनाव में मिली हार के तुरंत बाद पेगासस जासूसी कांड को लेकर विपक्ष के हमले का सामना करना पड़ा. केंद्र सरकार पर विपक्ष ने आरोप लगाया था कि पेगासस स्पाईवेयर के इस्तेमाल से देश के कई बड़े पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के मोबाइल फोन हैक करके उनकी जासूसी की गई है. निजता का हनन बताकर इस मुद्दे को विपक्ष ने इतना खीचा कि संसद का मानसून सत्र एक दिन भी नहीं चल सका. संसद में कार्यवाही शुरू होते ही पेगासस को लेकर विपक्ष हंगामा शुरू कर देता था. पेगासस पर विपक्ष सरकार से जवाब चाहता था. वहीं सरकार अपने जवाब में लगातार बता रही थी कि "लॉफ़ुल इंटरसेप्शन" या कानूनी तरीके से फोन या इंटरनेट की निगरानी या टैपिंग की देश में एक स्थापित प्रक्रिया है जो बरसों से चल रही है. जवाब से विपक्ष बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हो रहा था. इस वजह से संसद का पूरा मानसून सत्र बिना किसी काम के खत्म हो गया. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और जांच के लिए एक उच्चस्तरीय समिति का गठन भी किया गया. 

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10. सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के लिए बुरा रहा साल

साल 2021 राजनीति जगत के लिए काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा. वहीं देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के लिए बेहद बुरा साबित हुआ. कांग्रेस के लिए चुनावों में निराशाजनक परिणाम आए वहीं कई दिग्गज नेताओं ने  पार्टी को अलविदा कह दिया. इनके इस्तीफे से राजनीतिक गलियारों में हलचल मची और लोगों का ध्यान खींचा. पाला बदलने वाले ज्यादातर कांग्रेस के नेता कभी पार्टी आलाकमान के काफी खास माने जाते रहे थे. इन बड़े नामों में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, उत्तर  प्रदेश के बड़े ब्राह्मण चेहरे जितिन प्रसाद, सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली की विधायक अदिति सिंह,  प्रियंका बडेरा के करीबी ललितेश पति त्रिपाठी, महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रह चुकीं सुष्मिता देव, कीर्ति झा आजाद, केरल के बड़े चेहरे पीसी चाको जैसे नेताओं ने कांग्रेस से किनारा कर लिया. वहीं आलाकमान की ओर से खासकर राहुल गांधी ने इन लोगों के जाने को लेकर तंज कसा.