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कोरोना के 'अदृश्य दूत' जो पहले से भी हैं ज्यादा खतरनाक, कहीं आप भी तो नहीं इसके शिकार

इनमें सीवियर मरीजों को आईसीयू में रखना पड़ता है जबकि क्रिटिकल मरीजों को वेंटिलेटर पर रखने के सिवा कोई दूसरा चारा नहीं. इनके अलावा मॉडरेट पेशेंट को जनरल वॉर्ड में रखकर इलाज करना संभव है.

Updated on: 20 Apr 2020, 04:36 PM

नई दिल्ली:

कोरोना वायरस (Coronavirus) पूरी दुनिया में कहर मचा रहा है. वो लगातार लोगों को अपनी चपेट में ले रहा है वो भी अलग-अलग तरीके से. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) इसे लेकर चिंता जताई है. वहीं, कुछ दिन पहले मोदी सरकार भी इसे लेकर अपनी चिंता जता चुके हैं. 8 अप्रैल को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 'एसिम्प्टोमैटिक'मरीजों को बड़ी चुनौती बताते हुए कहा था कि आने वाले दिनों में ऐसे मरीज कोरोना के बड़े कैरियर बन सकते हैं.

सवाल यह है कि 'एसिम्प्टोमैटिक' यानी बिना लक्षण वाले मरीज कौन है. इससे जानने से पहले ये जान लीजिए कि कोरोना वायरस के मरीज कितने तरह के होते हैं-
क्रिटिकल - बेहद गंभीर लक्षण
सीवियर - गंभीर लक्षण
मॉडरेट - सामान्य लक्षण
माइल्ड - हल्के लक्षण
एसिम्प्टोमैटिक - कोई लक्षण नहीं

ऐसे होता है इनका इलाज 

इनमें सीवियर मरीजों को आईसीयू में रखना पड़ता है जबकि क्रिटिकल मरीजों को वेंटिलेटर पर रखने के सिवा कोई दूसरा चारा नहीं. इनके अलावा मॉडरेट पेशेंट को जनरल वॉर्ड में रखकर इलाज करना संभव है. जबकि माइल्ड सिम्पटम वाले पेशेंट को भी क्वैरेंटीन कर सामान्य रूप से इलाज किया जाता है.

मरीजों को फेफड़ों में इंफेक्शन की वजह से सांस लेने में काफी दिक्कत होती

क्रिटिकल और सीवियर केस वाले मरीजों को फेफड़ों में इंफेक्शन की वजह से सांस लेने में काफी दिक्कत होती है. पर मॉडरेट केस में मरीजों को बुखार और सर्दी खांसी जैसी शिकायत होती है. जहां तक माइल्ड केस का सवाल है तो ये ऐसे मरीज होते हैं जिनमें साफ तौर पर कोई लक्षण नहीं दिखता पर कभी हल्का बुखार या थोड़ा कफ हो सकता है.

एसिम्प्टोमैटिक मरीज में कोई लक्ष्ण नहीं होता है

इन चारों तरह के मरीजों के मुकाबले एसिम्प्टोमैटिक मरीज बिल्कुल अलग होते हैं क्योंकि उनमें सर्दी-खांसी या बुखार जैसा कोई भी लक्षण नहीं होता. हां कुछ केसेस में ये जरूर पाया गया है कि ऐसे मरीजों की सूंघने या स्वाद की क्षमता काफी कम हो जाती है. पर कई बार इसके बारे में खुद मरीज को भी नहीं पता होता. इसलिए एसिम्पमैटिक मरीजों के बारे में पता लगा पाना काफी मुश्किल होता है.

चीन में विस्तृत जांच रिपोर्ट हुई प्रकाशित 

ऐसे मरीजों के बारे में सबसे पहली विस्तृत जांच रिपोर्ट चीन में प्रकाशित हुई है.15 अप्रैल को चीन के नेशनल हेल्थ कमीशन की रिपोर्ट आई थी. 6764 एसिम्प्टोमैटिक मरीजों की जांच पर आधारित रिपोर्ट तैयार की गई थी. इनमें सिर्फ 1297 मरीजों में ही बाद में बीमारी के लक्षण दिखे.

यानी कोरोना पॉजिटिव मरीजों में सिर्फ 20 फीसदी मरीजों में ही बाद में बीमारी का लक्षण दिखा, बाकी मरीजों में ऐसा कोई लक्षण नजर नहीं आया. इनमें से करीब एक हजार मरीजों को फिलहाल क्वैरेंटीन सेंटर्स में रखा गया है. जबकि करीब साढ़े चार हजार मरीजों को डिस्चार्ज भी कर दिया गया है.

एसिम्प्टोमैटिक मरीजों की संख्या ने वहां की सरकार को सकते में डाल दिया है

चीन में कोरोना के संक्रमण पर करीब करीब अंकुश लगा लेने के दावे के बाद ऐसे एसिम्प्टोमैटिक मरीजों की संख्या ने वहां की सरकार को सकते में डाल दिया है. क्योंकि विशेषज्ञों का दावा है कि ऐसे मरीज दूसरे मरीजों के मुकाबले कहीं तेजी से वायरस का संक्रमण फैला सकते हैं. इसी खतरे को देखते हुए चीन सरकार ने एसिम्प्टोमैटिक मरीजों का रैंडम टेस्ट किया था.

खास बात ये कि ये मरीज सिर्फ बुजुर्ग हों ये जरूरी नहीं

टेस्ट के लिए वुहान में 11 हजार लोगों को चुना गया. इनमें 100 अलग अलग शहरों से आए लोग शामिल थे. टेस्ट रिपोर्ट में 6774 मरीज कोरोना पॉजिटिव निकले. ऐसा माना जा रहा है कि ऐसे एसिम्प्टोमैटिक मरीजों की संख्या कई गुना ज्यादा हो सकती है. और खास बात ये कि ये मरीज सिर्फ बुजुर्ग हों ये जरूरी नहीं.

कोलंबिया यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट की मानें तो चीन में कोरोना वायरस से संक्रमित करीब 86 फीसदी मरीज ऐसे थे जो कभी बीमार नहीं पड़े थे. जाहिर है चीन के बाद अब भारत में भी एसिम्प्टोमैटिक मरीजों की बढ़ती संख्या बड़ी चुनौती बन गई है.

अब तक रैंडम टेस्ट के जरिये कोरोना के संदिग्ध मरीजों की पहचान की जा रही थी पर ऐसे हालात में जब मरीजों में इसके लक्षण ही नहीं दिख रहे तो मरीजों को ढूंढना और क्वैरंटीन करना कितनी बड़ी चुनौती बन गई है.

एसिम्प्टोमैटिक मरीज कोरोना वायरस का संक्रमण काफी तेजी से फैला सकते हैं

विश्व स्वास्थ्य संगठन भी कह चुका है कि एसिम्प्टोमैटिक मरीज कोरोना वायरस का संक्रमण काफी तेजी से फैला सकते हैं. और इसके कई उदाहरण भी सामने आ चुके हैं. ब्रिटेन के डायमंड प्रिंसेस क्रूज शिप में हुए कोरोना वायरस का संक्रमण याद ही होगा.

डायमंड प्रिंसेस क्रूज में 104 लोग संक्रमित हुए थे. मरीजों को जापान के अस्पताल में भर्ती किया गया.10 दिन तक सभी मरीजों की निगरानी की गई. उनमें से 33 मरीजों में कोई लक्षण नहीं दिखा.

33 मरीजों में कोरोना वायरस तो मौजूद था पर उनमें इस बीमारी का कोई लक्षण नहीं दिखा

कहने का मतलब ये कि इन 33 मरीजों में कोरोना वायरस तो मौजूद था पर उनमें इस बीमारी का कोई लक्षण नहीं दिखा. यानी करीब एक तिहाई मरीज ऐसे थे जिनमें कोरोना वायरस होते हुए भी वो बीमार या अस्वस्थ नहीं थे. पर दूसरे लोगों को आसानी से संक्रमित कर सकते हैं. ऐसे में भारत जैसे देश में जहां टेस्टिंग की रेट अभी काफी कम है. वहां चुनौती वाकई बड़ी है.

अमेरिका और यूरोप के कोरोना प्रभावित कई देशों में जहां प्रत्येक दस लाख की आबादी पर करीब दस से बीस हजार लोगों को टेस्ट किया जा रहा है वहीं भारत में अभी भी ये दर 300 से भी कम है. ये कमी कैसे दूर होगी.

एसिम्प्टोमैटिक मरीजों की संख्या बढ़ रही है

अब सवाल है कि एसिम्प्टोमैटिक मरीजों की संख्या कितनी हो सकती है. इसे लेकर अलग अलग अनुमान और आंकड़े सामने आ रहे हैं. कोलंबिया यूनिवर्सिटी की रिसर्च के मुताबिक करीब 25 फीसदी लोग ऐसे हो सकते हैं जो कोरोना वायरस का कैरियर होते हुए भी बीमार नहीं दिखेंगे यानी एसिम्पमैटिक होंगे.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक चीन में सामने आए कोरोना के मरीजों में 75 फीसदी ऐसे थे जिनमें पहले इसका कोई सिम्पटम नहीं दिखा. अमेरिका के वॉशिंगटन में हुए एक शोध में 23 पॉजिटिव मरीजों में से सिर्फ 10 में इस बीमारी के सिम्पटम दिखे थे. यानी पचास फीसदी से भी ज्यादा मरीज एसिम्प्टोमैटिक निकले.