Mahakumbh 2025: हिंदू धर्म में कुंभ को दान-पुण्य, मोक्ष प्राप्ति और पापों से मुक्ति पाने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. इतिहासकारों की माने तो 16 वर्ष की आयु में राजा बने हर्षवर्धन ने कुंभ मेले की शुरुआत कराई थी. सम्राट हर्षवर्धन 7वीं शताब्दी के एक महान भारतीय शासक थे जो अपनी उदारता, धर्मपरायणता और प्रजा के प्रति समर्पण के लिए जाने जाते हैं. वे 606 ईस्वी से 647 ईस्वी तक शासन करते रहे और उनकी राजधानी कन्नौज (वर्तमान उत्तर प्रदेश) थी. आज कुंभ दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला कहलाता है.
भारत का आखिरी महान सम्राट हर्षवर्धन कुंभ के दौरान जमकर दान करते थे. लेकिन ये बात कम लोग जानते हैं कि वो दान से पहले भगवान सूर्य, शिव और बुध की उपासना किया करते थे. ऐसा बताया गया है कि वो दान को चार भागों में बांटते थे, पहला शाही परिवार फिर सेना/प्रशासन इसके बाद धार्मिक निधि और अंत में गरीबों के लिए वो अपना सारा धन लुटा दिया करते थे. साक्ष्यों के आधार पर इस 2000 वर्ष पुराने धार्मिक मेले का महत्व समय के साथ-साथ और भी बढ़ता जा रहा है.
कुंभ मेले में दान की परंपरा
सम्राट हर्षवर्धन (Emperor Harshvardhan) हर पांच साल में कुंभ मेले के अवसर पर संगम (प्रयागराज) में अपनी समस्त संपत्ति दान कर देते थे. कहा जाता है कि वह दान करने के बाद केवल एक वस्त्र रख लेते थे. उनके दान का उद्देश्य धर्म और समाज की भलाई करना था. ये परंपरा उनके न्यायप्रिय शासन और समाज के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाती है. राजकोष दान करने की कहानियां बेहद दिलचस्प हैं. राजा हर्षवर्धन ने ये सुनिश्चित किया कि उनकी संपत्ति से धर्म और समाज को लाभ पहुंचे. चीनी यात्री ह्वेनसांग जो उनके शासनकाल में भारत आए थे उन्होने भी हर्षवर्धन के इस दान का उल्लेख किया है. उनके अनुसार सम्राट ने अपनी संपत्ति तब तक दान की जब तक राजकोष पूरी तरह खाली नहीं हो गया.
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धार्मिक और सांस्कृतिक योगदान
पुष्यभूति वंश के राजा हर्षवर्धन का साम्राज्य उत्तरी भारत के अधिकांश हिस्सों तक फैला हुआ था. उन्होंने थानेश्वर और कन्नौज से शासन किया और अपने शासनकाल में राजनीतिक और सांस्कृतिक समृद्धि को बढ़ावा दिया. उनकी उदारता और धर्मपरायणता ने उन्हें इतिहास में अमर बना दिया. हर्षवर्धन शैव, बौद्ध और वैदिक परंपराओं का समान रूप से सम्मान करते थे. उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय और बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में भी योगदान दिया. उनकी उदारता और धर्मप्रेम ने उन्हें भारतीय इतिहास में अद्वितीय स्थान दिया. सम्राट हर्षवर्धन (Emperor Harshvardhan) भारतीय इतिहास में केवल एक शासक ही नहीं, बल्कि एक ऐसा उदाहरण हैं, जिन्होंने धर्म, परोपकार और समाजसेवा को अपने शासन का केंद्र बनाया. कुंभ (kumbh) में उनकी दान की परंपरा उनकी उदारता और सामाजिक चेतना का प्रमाण है.
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