धर्म के नाम पर हुआ कंगाल, ऐसा दानवीर राजा जिसने अंतिम समय में जिया भिखारियों जैसा जीवन

जीवन में दान-धर्म करना अच्छी बात होती है, लेकिन आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दान उतना ही करना चाहिए जिससे आप कंगाल न हो जाएं. इतिहास में ऐसी कई कहानियां हैं जिनमें धर्म के नाम पर कई राजा कंगाल हो गए.

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Inna Khosla
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King Harishchandra

King Harishchandra Photograph: (News Nation)

भारत का इतिहास दानवीरों की गाथाओं से भरा हुआ है. एक से बढ़कर एक ऐसे कई दानवीर राजा हुए जो धर्म के नाम पर कंगाल हो गए. उन्होने दान-धर्म में अपनी धन-संपत्ति इस तरह से लुटायी कि आखिरी समय में उन्हें भिखारियों की तरह जीवन जीना पड़ा. आज हम आपके एक ऐसे ही राजा के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें सत्य का पर्याय माना जाता है. राजा हरिश्चंद्र एक ऐसे राजा थे जिनका वचन अटल था. उन्होंने सत्य के मार्ग पर चलते हुए अपनी सारी संपत्ति, राज्य और यहां तक कि अपनी पत्नी और पुत्र को भी दान कर दिया था.

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राजा हरिश्चंद्र की कहानी (The Story of King Harishchandra)

सत्य, धर्म, और त्याग के प्रतीक राजा हरिश्चंद्र की कहानी भारतीय पौराणिक कथाओं में यह सिखाने के लिए सुनाई जाती है कि सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने के लिए कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है. राजा हरिश्चंद्र ने हर परिस्थिति में सत्य और धर्म का पालन करने का वचन दिया था. उनकी परीक्षा लेने के लिए ऋषि विश्वामित्र ने उनसे राज्य और धन का दान मांग लिया. सत्य की रक्षा के लिए उन्होंने अपना पूरा साम्राज्य, खजाना और धन दान कर दिया. उनका त्याग केवल भौतिक संपत्ति तक सीमित नहीं था; उन्होंने अपनी पत्नी और पुत्र के साथ स्वयं को भी बेच दिया.

कैसे हुए कंगाल?

ऋषि विश्वामित्र ने राजा से सम्पूर्ण राज्य और खजाना दान में मांग लिया. सत्य और धर्म के प्रति अडिग रहते हुए राजा ने अपनी समस्त संपत्ति और अधिकार त्याग दिए. राज्य छोड़ने के बाद आजीविका के लिए राजा हरिश्चंद्र ने स्वयं को काशी के श्मशान के एक डोम (श्मशान संचालक) के हाथों बेच दिया. उनकी पत्नी तारामती और पुत्र रोहिताश्व भी अलग-अलग जगहों पर दास बन गए.

धर्म और सत्य के नाम पर सब दान कर चुके राजा हरिश्चंद्र और उनके परिवार को कई कष्टों का सामना करना पड़ा. उनके बेटे रोहिताश्व की सांप के काटने से मृत्यु हो गई. उनकी पत्नी अंतिम संस्कार के लिए पैसे जुटाने के लिए संघर्ष करती रही, लेकिन हरिश्चंद्र ने अपने नियमों और सत्य के प्रति समर्पण में कोई समझौता नहीं किया. हालांकि पौराणिक कथाओं में ऐसा बताया जाता है कि उनके सत्य और धर्म के प्रति अडिग रहने से देवता प्रसन्न हुए. यमराज और अन्य देवताओं ने उनकी परीक्षा पूरी होने पर उनका राज्य और परिवार उन्हें लौटा दिया. हरिश्चंद्र के जीवन की कठिनाइयां उनकी सत्यनिष्ठा और त्याग की अमर मिसाल बन गईं.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

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