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Shani Pradosh Vrat 2021: शनि दोष होगा दूर, शिवजी की मिलेगी विशेष कृपा, जानें प्रदोष व्रत का महत्व

आज यानि कि शनिवार को शनि प्रदोष का व्रत है. इस दिन उपवास रख के भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है.  मान्यताओं के मुताबिक, शनि प्रदोष का व्रत करने से भोलेनाथ की विशेष कृपा प्राप्त होती है.

आज यानि कि शनिवार को शनि प्रदोष का व्रत है. इस दिन उपवास रख के भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है.  मान्यताओं के मुताबिक, शनि प्रदोष का व्रत करने से भोलेनाथ की विशेष कृपा प्राप्त होती है.

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Vineeta Mandal
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शनि प्रदोष 2021

शनि प्रदोष 2021( Photo Credit : सांकेतिक चित्र)

आज यानि कि शनिवार को शनि प्रदोष का व्रत है. इस दिन उपवास रख के भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है.  मान्यताओं के मुताबिक, शनि प्रदोष का व्रत करने से भोलेनाथ की विशेष कृपा प्राप्त होती है. इसके साथ ही व्रत करने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है. इसके अलावा अगर किसी की कुंडली में शनि दोष है तो वह भी दूर हो जाता है.  शनि प्रदोष व्रत करने से भगवान महादेव के साथ ही शनिदेव का भी आशीर्वाद मिलता है. बता दें कि प्रदोष काल उस समय को कहा जाता है, जब दिन छिपने लगता है, यानी सूर्यास्त के ठीक बाद वाले समय और रात्रि के प्रथम प्रहर को प्रदोष काल कहा जाता है.

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शनि प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त

पूजा का शुभ मुहूर्त- 08 मई शाम 07 बजकर रात 09 बजकर 07 मिनट तक.

त्रयोदशी तिथि प्रारंभ- 08 मई 2021 शाम 05 बजकर 20 मिनट से होगी

त्रयोदशी तिथि समाप्त- 09 मई 2021 शाम 07 बजकर 30 मिनट पर होगी.

शनि प्रदोष व्रत की पूजा विधि

  • सुबह जल्दी उठ कर स्‍नान करें.  
  • मंदिर की साफ सफाई करें.
  • इसके बाद महादेव को फूलों की माला पहनाएं.
  •  शनिदेव को प्रणाम करें और मंत्रों का जाप करें.
  • शनिदेव को एक रुपये अर्पित करें और सरसों का तेल अर्पित करें. व्रत का संकल्प लें.
  • अब दीप और धूप जलाएं.
  • शनि प्रदोष के दिन शिव चालीसा, शिव स्‍तुति और शिव आरती करें.

शनि प्रदोष व्रत का महत्व

  • शनि प्रदोष के दिन शनि और भगवान शंकर की एकसाथ पूजा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है.
  • शनि प्रदोष व पुष्य नक्षत्र के योग में शनिदेव की पूजा कर ब्राह्मणों को तेल का दान करने से भी शनि दोष में राहत मिलती है.
  • मान्यता है कि यह व्रत करने से संतान प्राप्ति में आ रही बाधा भी दूर होती है.

शनि प्रदोष व्रत की कथा-

पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीनकाल में एक नगर सेठ थे. सेठजी के घर में हर प्रकार की सुख-सुविधाएं थीं लेकिन संतान नहीं होने के कारण सेठ और सेठानी हमेशा दुःखी रहते थे. काफी सोच-विचार करके सेठजी ने अपना काम नौकरों को सौंप दिया और खुद सेठानी के साथ तीर्थयात्रा पर निकल पड़े. अपने नगर से बाहर निकलने पर उन्हें एक साधु मिले, जो ध्यानमग्न बैठे थे. सेठजी ने सोचा, क्यों न साधु से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा की जाए. सेठ और सेठानी साधु के निकट बैठ गए. साधु ने जब आंखें खोलीं तो उन्हें ज्ञात हुआ कि सेठ और सेठानी काफी समय से आशीर्वाद की प्रतीक्षा में बैठे हैं. साधु ने सेठ और सेठानी से कहा कि मैं तुम्हारा दुःख जानता हूं. तुम शनि प्रदोष व्रत करो, इससे तुम्हें संतान सुख प्राप्त होगा.

साधु ने सेठ-सेठानी प्रदोष व्रत की विधि भी बताई और भगवान शंकर की यह वंदना बताई.  इसके बाद दोनों साधु से आशीर्वाद लेकर तीर्थयात्रा के लिए आगे चल पड़े. तीर्थयात्रा से लौटने के बाद सेठ और सेठानी ने मिलकर शनि प्रदोष व्रत किया जिसके प्रभाव से उनके घर एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ.

भगवान शंकर की वंदना -

हे रुद्रदेव शिव नमस्कार.
शिवशंकर जगगुरु नमस्कार..
हे नीलकंठ सुर नमस्कार.
शशि मौलि चन्द्र सुख नमस्कार..
हे उमाकांत सुधि नमस्कार.
उग्रत्व रूप मन नमस्कार..
ईशान ईश प्रभु नमस्कार.
विश्‍वेश्वर प्रभु शिव नमस्कार..

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