logo-image

Ramayan Story: जब माता सीता के अंतर मन में उतर गए हनुमान, किया ये चौंका देने वाला काम

जब माता सीता (mata sita) लंका की अशोका वाटिका (ashok vatika) में थीं. यहां गोस्वामी तुलसीदास जी माता सीता जी के संबंध में कह रहे हैं, कि उनके नयन अपने श्रीचरणों में थे और वे श्रीराम जी (ramayan story) के पावन श्रीचरणों में लीन थीं.

Updated on: 06 Jul 2022, 02:50 PM

नई दिल्ली:

जब माता सीता (mata sita) लंका की अशोका वाटिका (ashok vatika) में थीं. तब वहां हनुमान जी पहुंच गए. जहां वो माता जानकी की स्थिति (ramayan interesting story) देखकर बहुत दुखी हुए. वे उनकी अवस्था देखकर मन ही मन अत्यंत दुखी होकर पीडित होने लगे. यहां गोस्वामी तुलसीदास जी माता सीता जी के संबंध में कह रहे हैं, कि उनके नयन अपने श्रीचरणों में थे और वे श्रीराम जी (ramayan story) के पावन श्रीचरणों में लीन थीं.     

यह भी पढ़े : Devshayani Ekadashi 2022 Avoid These Things: देवशयनी एकादशी के बाद इन कामों न करने में ही है आपका भला, भगवान विष्णु होंगे प्रसन्न और दूर होगी हर बला

इसी बीच रावण ने वहां पहुंच कर तरह-तरह का लालच देते हुए विवाह करने पर पटरानी बनाने का वादा तक किए किंतु दृढ़ प्रतिज्ञ सीता जी ने उसे फटकार दिया कि वह ऐसा सोचना भी बंद कर दे क्योंकि वह तो श्री रघुनाथ जी के अलावा अन्य किसी पुरुष के बारे में मन में विचार भी नहीं ला सकती हैं. उसने वहां की सुरक्षा में तैनात राक्षसियों को एक माह में राजी कराने का आदेश दिया और चला गया. इसी बीच त्रिजटा नाम की रक्षसी ने अन्य राक्षसियों  को अपना सपना बताया जिसमें एक बंदर ने लंका को जला दिया है. लंका का शासन विभीषण के हाथों में आने के साथ ही रावण यमपुरी को चला गया. त्रिजटा ने विश्वासपूर्वक कहा कि उसका सपना कुछ ही दिनों में सच होकर रहेगा. त्रिजटा के सपने की बातें सुन कर सभी राक्षसियां डर गई और जानकी जी के चरणों (ram charit manas) में गिर पड़ीं.    

यह भी पढ़े : Vaivasvata Saptami 2022 Katha: जब ब्रह्म रात में भगवान विष्णु ने इस रूप में पढ़ाया सूर्य देव के पुत्र को पाठ

माता सीता की पीड़ा देखकर हनुमान जी ने अंगूठी गिरा दी

सीता जी मन ही मन सोचने लगीं कि आकाश में तो अंगारे दिख रहे हैं पर एक भी तारा नीचे नहीं आ रहा है. चंद्रमा अग्निमय है किंतु वह भी मानो मुझे हतभागिनी जानकर आग नहीं बरसाता है. इसके बाद उन्होंने अशोक के पेड़ को संबोधित करते हुए कहा कि हे वृक्ष तुम ही मेरी विनती सुनो, मेरा शोक हर कर अपना नाम सत्य करो. सीता की विरह पीड़ा पेड़ के पत्तों के बीच छिपकर बैठे हनुमान जी से भी नहीं देखी गई और उन्होंने वहीं से अंगूठी (hanuman ji dropped ring) गिरा दी.   

यह भी पढ़े : Vastu Tips For House: घर की इन चीजों का रखें खास ख्याल, वरना धीरे-धीरे हो जाएंगे कंगाल

त्रिजटा ने सीता माता को समझाने की कोशिश की

सीता माता के चिता बनाने के आग्रह को सुनकर त्रिजटा को बहुत दुख हुआ. उसने उन्हें समझाने की कोशिश की. सीता माता के चरण पकड़ते हुए प्रभु श्री राम के प्रताप, बल और सुयश के बारे  में बताया  कि, हे सुकुमारी सुनों रात के समय आग नहीं मिलेगी और ऐसा कहते हुए वह अपने घर को चली गयी. सीता जी मन ही मन कहने लगीं कि हे विधाता मैं क्या करूं, न आग मिलेगी और न ही पीड़ा (trijta rakshasi) मिटेगी.