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Vaivasvata Saptami 2022 Katha: जब ब्रह्म रात में भगवान विष्णु ने इस रूप में पढ़ाया सूर्य देव के पुत्र को पाठ

Vaivasvata Saptami 2022 Katha: हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को वैवस्वत सूर्य की पूजा का विधान है. इस बार 6 जुलाई 2022 शुक्रवार को है सूर्य सप्तमी. इस दिन सूर्य देव के वरूण रूप की पूजा करने की परंपरा है.

Updated on: 06 Jul 2022, 01:33 PM

नई दिल्ली :

Vaivasvata Saptami 2022 Katha: हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को वैवस्वत सूर्य की पूजा का विधान है. ये दिन सूर्य देव के पुत्र वैवस्वत मनु को समर्पित है. मान्यता है कि सूर्य सप्तमी के दिन वैवस्वत मनु की पूजा और व्रत करने से आरोग्य, धन में वृद्धि और दुश्मनों पर जीत पाने का वरदान मिलता है. इस बार 6 जुलाई 2022 शुक्रवार को है सूर्य सप्तमी. इस दिन सूर्य देव के वरूण रूप की पूजा करने की भी परंपरा है. आइए जानते हैं वैवस्वत सप्तमी की रोचक कथा. 

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भगवान सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु की पौराणिक कथा
'मत्स्य पुराण' के अनुसार सत्यव्रत नाम के राजा एक दिन कृतमाला नदी में जल से तर्पण कर रहे थे. उस समय उनकी अंजुलि में एक छोटी सी मछली आ गई. सत्यव्रत ने मछली को नदी में डाल दिया तो मछली ने कहा कि इस जल में बड़े जीव-जंतु मुझे खा जाएंगे.  यह सुनकर फिर राजा ने मछली को फिर जल से निकाल लिया और अपने कमंडल में रख लिया और आश्रम ले आए. रात भर में वह मछली बढ़ गई. तब राजा ने उसे बड़े मटके में डाल दिया. मटके में भी वह बढ़ गई तो उसे तालाब में डाल दिया अंत में सत्यव्रत ने जान लिया कि यह कोई मामूली मछली नहीं, इसमें कुछ बात है. तब उन्होंने उस मछली को ले जाकर समुद्र में डाल दिया. 

समुद्र में डालते समय मछली ने कहा कि समुद्र में मगर रहते हैं, वहां मत छोड़िए. राजा ने हाथ जोड़कर कहा कि आप मुझे कोई मामूली मछली नहीं जान पड़ती हैं, आपका आकार तो अप्रत्याशित तेजी से बढ़ रहा है बताएं कि आप कौन हैं? तब मछली रूप में भगवान विष्णु ने प्रकट होकर कहा कि आज से सातवें दिन प्रलय के कारण पृथ्वी समुद्र में डूब जाएगी. तब मेरी प्रेरणा से तुम एक बहुत बड़ी नौका बनाओ, और जब प्रलय शुरू हो तो तुम सप्त ऋषियों सहित सभी प्राणियों को लेकर उस नौका में बैठ जाना तथा सभी अनाज उसी में रख लेना. अन्य छोटे बड़े बीज भी रख लेना. नाव पर बैठ कर लहराते महासागर में विचरण करना. प्रचंड आंधी के कारण नौका डगमगा जाएगी. तब मैं इसी रूप में आ जाऊंगा. तब वासुकि नाग द्वारा उस नाव को मेरे सींग में बांध लेना.

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जब तक ब्रह्मा की रात रहेगी, मैं नाव समुद्र में खींचता रहूंगा. उस समय जो तुम प्रश्न करोगे मैं उत्तर दूंगा. इतना कह मछली गायब हो गई. राजा तपस्या करने लगे. मछली का बताया हुआ समय आ गया. वर्षा होने लगी. समुद्र उमड़ने लगा. तभी राजा ऋषियों, अन्न, बीजों को लेकर नौका में बैठ गए और फिर भगवान रूपी वही मछली दिखाई दी. उसके सींग में नाव बांध दी गई और मछली से पृथ्वी और जीवों को बचाने की स्तुति करने लगे. मछली रूपी श्री विष्णु ने उसे आत्मतत्व का उपदेश दिया. मछली रूपी विष्णु ने अंत में नौका को हिमालय की चोटी से बांध दिया. नाव में ही बैठे-बैठे प्रलय का अंत हो गया. यही सत्यव्रत वर्तमान में महाकल्प में विवस्वान या वैवस्वत (सूर्य) के पुत्र श्राद्धदेव के नाम से विख्यात हुए तथा वैवस्वत मनु के नाम से भी जाने गए.