Shri Krishna Janmashtami: जन्माष्टमी से जुड़ी हैं ये अनोखी परंपराएं, जानें इनका महत्व और रस्म

जन्माष्टमी के पावन अवसर पर एक खास परंपरा निभाई जाती है, कहीं पांच दिन तक शयन आरती नहीं होती तो कहीं खीरे से भगवान कृष्ण का जन्म कराया जाता है. इसमें गहरा संदेश भी छुपा है.

जन्माष्टमी के पावन अवसर पर एक खास परंपरा निभाई जाती है, कहीं पांच दिन तक शयन आरती नहीं होती तो कहीं खीरे से भगवान कृष्ण का जन्म कराया जाता है. इसमें गहरा संदेश भी छुपा है.

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Deepak Kumar Singh
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Shri Krishna Janmashtami

Janmashtami unique tradition Photograph: (Canva)

जन्माष्टमी का पर्व पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन भक्त उपवास रखते हैं और श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप लड्डू गोपाल की पूजा करते हैं. लेकिन इससे जुड़ी कुछ खास परंपराएं भी हैं. तो आइए जानते हैं इस बारे में. मध्यप्रदेश के उज्जैन स्थित प्रसिद्ध गोपाल मंदिर में जन्माष्टमी पर 115 साल पुरानी परंपरा निभाई जाती है. गौरतलब है कि यहां श्रीकृष्ण जन्म के बाद पांच दिन तक शयन आरती नहीं होती, क्योंकि मान्यता है कि नवजात बालक का सोने-जागने का समय निश्चित नहीं होता. जन्माष्टमी से बछबारस तक भगवान को बालभाव से सेवा दी जाती है. द्वादशी तिथि पर माखन-मटकी की लीला के बाद ही भगवान को शयन कराया जाता है.

जन्माष्टमी से जुड़ी एक और परंपरा है, 
जिसमें खीरे से कान्हा का जन्म कराया जाता है. यह परंपरा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि इसमें गहरा संदेश भी छुपा हुआ है.

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जिस प्रकार बच्चा जन्म के समय अपनी मां के गर्भनाल से जुड़ा होता है, उसी प्रकार खीरा डंठल से जुड़ा रहता है. जब तक डंठल खीरे से जुड़ा होता है, उसे गर्भ का प्रतीक माना जाता है. जैसे ही डंठल काटा जाता है, यह बच्चे के जन्म लेने की प्रक्रिया का प्रतीक बन जाता है. यही वजह है कि जन्माष्टमी की रात खीरे से भगवान कृष्ण का जन्म कराया जाता है.

कैसे की जाती है यह रस्म?

जन्म की यह रस्म बड़ी श्रद्धा और भक्ति से निभाई जाती है. खीरे को बीच से हल्का काटकर उसमें लड्डू गोपाल की प्रतिमा रखी जाती है और उन्हें पीले वस्त्र से ढक दिया जाता है. रात 12 बजे, जब श्रीकृष्ण के जन्म का समय होता है, तभी खीरे का डंठल काटकर उन्हें गर्भ से बाहर आने का प्रतीक माना जाता है. इसके बाद पीला वस्त्र हटाकर खीरे से लड्डू गोपाल को बाहर निकाला जाता है. फिर चरणामृत से उनका स्नान कराया जाता है और झूले पर बैठाकर भगवान का जन्मोत्सव मनाया जाता है.

सरलता और भक्ति का संदेश

खीरे से कान्हा का जन्म कराना यह बताता है कि भगवान को प्रसन्न करने के लिए महंगे आभूषण या भव्य सजावट की आवश्यकता नहीं होती. सच्ची भक्ति, प्रेम और सरलता ही भगवान को सबसे प्रिय होती है.

सुख-समृद्धि का प्रतीक

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, खीरा समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक है. यह रस्म पूरी करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है और परिवार में खुशियां व समृद्धि आती है.

इस प्रकार, खीरे से कान्हा का जन्म कराना सिर्फ एक धार्मिक रस्म नहीं, बल्कि श्रीकृष्ण के जन्म, प्रेम, भक्ति और सरलता का सुंदर प्रतीक है.

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है. यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए न्यूज नेशन उत्तरदायी नहीं है.


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