इस व्रत कथा के बिना पूरा नहीं होता जन्माष्टमी का व्रत, जरूर करना चाहिए पाठ

Krishna Janmashtami 2025: कृष्ण जन्माष्टमी का अगर आप व्रत करते हैं, तो एक खास कथा का पाठ भी करना चाहिए, क्योंकि इसके बिना जन्माष्टमी का व्रत पूरा नहीं होता.

Krishna Janmashtami 2025: कृष्ण जन्माष्टमी का अगर आप व्रत करते हैं, तो एक खास कथा का पाठ भी करना चाहिए, क्योंकि इसके बिना जन्माष्टमी का व्रत पूरा नहीं होता.

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Sonam Gupta
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Krishna Janmashtami 2025

Krishna Janmashtami 2025 Photograph: (SOCIAL MEDIA)

Krishna Janmashtami 2025: 16 अगस्त, शनिवार को भारत में जन्माष्टमी का त्यौहार हर्षों-उल्लास के साथ मनाया जा रहा है. इस पावन मौके पर भक्तों ने श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए उपवास रखा है. कई बार जन्माष्टमी पर लोग पूजा-पाठ तो कर लेते हैं, लेकिन वह पूजा के दौरान कथा पढ़ना भूल जाते हैं, जिससे उन्हें उनके व्रत के फल की प्राप्ति नहीं हो पाती है. मगर, इस बार आप ये गलती ना करें और अगर आपने जन्माष्टमी का व्रत रखा है, तो यहां बताई गई कथा का पाठ जरूर करें.

व्रत में करें इस कथा का पाठ

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कथा की शुरुआत होती है....'द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था. उसके आततायी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा. कंस की एक बहन देवकी थी, जिनका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था. एक समय कंस अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था.

रास्ते में आकाशवाणी होती है, 'हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है. इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा.' यह सुनकर कंस वसुदेव को मारने के लिए उद्यत हुआ.

तब देवकी ने उससे विनयपूर्वक कहा- 'मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी. बहनोई को मारने से क्या लाभ है?'

कंस ने देवकी की बात मान ली और फिर मथुरा वापस चला आया. उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया.

वसुदेव-देवकी के एक-एक करके 7 बच्चे हुए और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला. अब आठवां बच्चा होने वाला था. कारागार में उन पर कड़े पहरे बैठा दिए गए. उसी समय नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था.

वसुदेव-देवकी के दुखी जीवन को देख उन्होंने आठवें बच्चे की रक्षा का उपाय रचा. जिस समय वसुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जो और कुछ नहीं सिर्फ 'माया' थी.

जिस कोठरी में देवकी-वसुदेव कैद थे, उसमें अचानक से प्रकाश हुआ और उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए हुए चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए. दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े. तब भगवान ने उनसे कहा- 'अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं.

तुम मुझे इसी समय अपने दोस्त नंदजी के घर वृंदावन में भेज आओ और उनके यहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस के हवाले कर दो. इस समय वातावरण कुछ अनुकूल नहीं है. फिर भी तुम चिंता न करो. जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे, कारागृह के फाटक अपने आप खुल जाएंगे और उफनती अथाह यमुना तुमको पार जाने के लिए रास्ता दे देगी.'

उसी समय वसुदेव नवजात शिशु-रूप श्रीकृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और पूरी यमुना नदी को पार कर नंदजी के घर पहुंचे. वहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए. कारागृह के फाटक पूर्ववत बंद हो गए.

अब कंस को सूचना मिली कि वसुदेव-देवकी को बच्चा पैदा हुआ है.

उसने बंदीगृह में जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा, परंतु वह कन्या आकाश में उड़ गई और वहां से कहा- 'अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारनेवाला तो वृंदावन में जा पहुंचा है. वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा.' इसी के साथ कथा का अंत होता है.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.) 

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